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आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही अहम सुनवाई, क्या है दलील?

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई

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मराठा आरक्षण के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर आरक्षण को लेकर उनका जवाब मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से पूछा है कि वो आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को बढ़ाए जाने पर क्या सोचते हैं, ये बताएं. 18 मार्च तक पांच जजों की बेंच इस मामले को सुनेगी. बता दें कि कई राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण है, इसे लेकर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 50 फीसदी आरक्षण की लक्ष्मण रेखा को पार नहीं किया जाना चाहिए.

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याचिकाकर्ताओं की क्या है दलील?

जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस एल नागेश्वर राव, एस अब्दुल नाजेर, हेमंत गुप्ता और एस रवींद्र भट शामिल हैं. ये बेंच सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि इंदिरा साहनी मामले में 1992 के 50 प्रतिशत पर आरक्षण का विरोध पुनर्विचार के लिए एक बड़ी बेंच के पास भेजा जा सकता है.

याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने बेंच को बताया कि समानता का अधिकार एक मेटा राइट है, जो सभी अधिकारों से ऊपर है. संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 जो राज्य को आरक्षण का प्रावधान देते हैं. वो समानता को बढ़ावा देना है. उन्होंने कहा कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने पर समाज की स्थापना समानता पर नहीं बल्कि जाति पर आधारित होती है. सभी की बातों को सुनने के बाद पीठ ने फिर से सभी को उपस्थिति होकर अपनी बात रखने का आदेश दिया.

50 फीसदी आरक्षण की सीमा

वर्तमान में केंद्र सरकार ने 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है. जिसके तहत अनुसूचित जनजाति को 7.5, अनुसूचित जाति को 15, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 और 10 फीसदी आरक्षण सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर दिया जा रहा है. जबकि आबादी के हिसाब से राज्य सरकारें अपने प्रदेश में एससी, एसटी और ओबीसी को दे रही हैं.

फिलहाल देश में कई ऐसे राज्य हैं, जहां 50 फीसदी की सीमा से ज्यादा आरक्षण है, इनमें मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, राजस्थान जैसे राज्य शामिल हैं.

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मराठा ही नहीं ये भी कर रहे आरक्षण की मांग

जाट आरक्षण (हरियाणा)

अब मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से इसलिए 50 फीसदी सीमा पर उनकी राय मांगी है, क्योंकि कई और राज्यों में भी आरक्षण को लेकर लगातार प्रदर्शन होते आए हैं. हरियाणा में जाट लगातार खुद के लिए आरक्षण की मांग करते आए हैं. इसे लेकर पिछले कुछ सालों में कई बड़े आंदोलन भी देखने को मिले. जाट समुदाय ओबीसी कैटेगरी में आरक्षण की मांग कर रहा है.

पाटीदार आरक्षण (गुजरात)

ठीक इसी तरह गुजरात का पाटीदार समुदाय भी लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहा है. साल 2015 में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में हुआ पाटीदार आरक्षण आंदोलन हिंसक हो गया था. पाटीदार लगातार ओबीसी सर्वे की मांग करते आए हैं और आरक्षण की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि सर्वे के जरिए ये पता लगाया जाए कि कितने पाटीदार आर्थिक तौर पर कमजोर हैं, जिसके बाद उन्हें सभी क्षेत्रों में आरक्षण का प्रावधान हो.

गुर्जर आरक्षण (राजस्थान)

राजस्थान में गुर्जर समुदाय भी लगातार आरक्षण को लेकर आंदोलन करता आया है. इसे लेकर कई बार गुर्जरों ने हाईवे और रेल ट्रैक पर प्रदर्शन किए. साल 2008, 2010 और 2015 में गुर्जर आंदोलन को देशभर ने देखा. इसके बाद 2015 में कुछ महीनों के लिए अति पिछड़ वर्ग के तहत आरक्षण दिया गया, लेकिन आरक्षण की सीमा को पार किए जाने के चलते हाईकोर्ट ने इसे खत्म करने का आदेश जारी किया. इस समुदाय की मांग है कि उसे 5 फीसदी आरक्षण दिया जाए.

कपू आरक्षण (आंध्र प्रदेश)

आंध्र प्रदेश के कपू समुदाय ने भी आरक्षण को लेकर लगातार आंदोलन किए. टीडीपी ने इस समुदाय को पिछड़ा वर्ग समुदाय में शामिल करने और 5 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया था. इसके लिए 9वीं अनुसूची में संशोधन करने की मांग भी की गई थी, लेकिन केंद्र ने इसे ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि ये आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करता है.

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अब राज्यों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जवाब भी दाखिल किए जा रहे हैं. बताया गया है कि राजस्थान सरकार ने 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण पर अपनी सहमति जताई है, जबकि जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, उन्होंने फिलहाल इस मामले पर अपना स्टैंड साफ करने से मना किया है. उनका कहना है कि इससे चुनावों पर असर पड़ सकता है.

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