राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में डॉक्टरों का आंदोलन तेज होता जा रहा है. सोमवार को प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों और उनके परिवार के सदस्यों ने जयपुर की सड़कों पर प्रदर्शन किया और सरकार के खिलाफ रैली निकाली. डॉक्टर्स का दावा है कि रैली में 30 हजार से ज्यादा डॉक्टर्स शामिल हुए थे.
पैदल मार्च के दौरान डॉक्टर्स ने मेडिकल यूनिटी जिंदाबाद और "NO TO RTH" के नारे लगाए. इससे पहले रविवार को डॉक्टरों के प्रतिनिधिमंडल की मुख्य सचिव उषा शर्मा के साथ बैठक हुई, लेकिन उसमें कोई हल नहीं निकला
डॉक्टर्स बिल वापस लेने की मांग पर अड़े हैं. डाक्टर्स ने सरकार के साथ वार्ता में कहा है कि केवल बिल वापस करने की शर्त पर ही बात की जा सकती है.
सरकार का क्या तर्क?
वहीं, सरकार का कहना है कि प्राइवेट अस्पतालों को सरकार जमीन से लेकर हर सुविधा सस्ते दाम पर उपलब्ध करवाती है. ऐसे में सरकार की तरफ से लागू किए गए बिल को उन्हें हर हाल में मानना होगा.
डॉक्टरों की हड़ताल से मरीजों को हुई परेशानी
इधर, डॉक्टरों के कामकाज ठप करने की वजह से जयपुर सहित दूसरे जिलों के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में सोमवार को भी रेजिडेंट्स हड़ताल पर रहे. इसके कारण मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ा.
विधानसभा से "राइट टू हेल्थ" बिल पास
दरअसल, प्राइवेट डॉक्टरों के विरोध के बावजूद राजस्थान विधानसभा में 21 मार्च को राइट टू हेल्थ विधेयक (Right To Health Bill) पारित हो गया. चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने विधानसभा में कहा कि कुछ निजी बड़े अस्पताल नहीं चाहते हैं कि यह बिल लाया जाए लेकिन सरकार उनसे डरने वाली नहीं है
राजस्थान सरकार बिल वापस लेने के मूड में नहीं!
मीणा ने कहा कि डॉक्टर के प्रतिनिधिमंडल से उनकी मुलाकात हुई है. वे चाहते हैं कि इस बिल को वापस लिया जाए. मंत्री ने कहा कि डॉक्टर कितना भी विरोध कर लें लेकिन हमें कोई परवाह नहीं है, हम गरीब का इलाज करा कर रहेंगे. इस बिल को लेकर सरकार के अधिकारियों का कहना है कि जिन भी अस्पतालों को जमीन दी है उसे निश्चित तौर पर इसके दायरे में लाया जाएगा.
"राइट टू हेल्थ" से आम लोगों को क्या फायदा?
इस विधेयक के पास हो जाने के बाद से अब कोई भी प्राइवेट अस्पताल किसी व्यक्ति के इलाज से इंकार नहीं कर सकेगा. खासतौर पर दुर्घटना या इमरजेंसी कंडीशन में प्राइवेट अस्पतालों को हर हाल में मरीज का इलाज करना ही होगा.
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