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राइट टू प्राइवेसी: 40 साल बाद बेटे ने पलटा पिता का फैसला

राइट टू प्राइवेसी की सुनवाई के दौरान सामने आया पिता का फैसला और फिर....

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राइट टू प्राइवेसी पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और ये संविधान के आर्टिकल 21 के तहत आता है. सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला किया.

दिलचस्प ये है कि ये ऐतिहासिक फैसला देने वाले जजों की बेंच में शामिल जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने ही पिता के फैसले को गलत ठहराते हुए उसे पलट दिया.

दरअसल, जिन मामलों पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू प्राइवेसी का फैसला दिया है उनमें से एक एडीएम जबलपुर मामला है. सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को बहुमत से खारिज कर दिया गया. 40 साल पहले इस फैसले को सुनाने वाली बेंच के चार जस्टिस में से एक खुद जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के पिता वाई वी चंद्रचूड़ थे. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के फैसले को ही गलत ठहराया.

एडीएम जबलपुर केस में बहुमत के साथ सभी चार जस्टिस की ओर से दिया गया फैसला गंभीर रूप से दोषपूर्ण हैं.
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़

क्या है एडीएम जबलपुर मामला?

इंदिरा गांधी सरकार ने 25 जून, 1975 को इमरजेंसी के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था.

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इसी दौरान देशभर में नजरबंदी का दौर भी शुरू हो गया. कुछ गिरफ्तार लोगों ने हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर कीं. बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून के तहत गैर-कानूनी ढंग से हिरासत में लिए गए व्यक्ति की रिहाई के लिए कोर्ट से प्रार्थना की जा सकती है. कोर्ट एक आदेश के जरिए पुलिस को ये आदेश देती है कि वो ऐसे बंदी को कोर्ट में हाजिर करे और उसे हिरासत में लेने की वाजिब वजह बताए. जबकि उस समय स्टेट किसी की जान भी ले लेता तो भी उसके खिलाफ कोई कोर्ट में नहीं जा सकता था. क्योंकि ऐसे मामलों को सुनने के कोर्ट के अधिकार को स्थगित कर दिया गया था.

खैर, उन याचिकाओं पर जबलपुर हाईकोर्ट सहित देश के 9 हाईकोर्ट ने ये कहा कि इमरजेंसी के बावजूद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर करने का अधिकार कायम रहेगा. इसके खिलाफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों की एक साथ सुनवाई करते हुए सरकार के पक्ष में फैसला दिया.

1976 का ये ऐतिहासिक केस एडीएम, जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ल मुकदमे के नाम से चर्चित हुआ. इसके केस में बहुमत से मौलिक अधिकारों को निलंबित करने के पक्ष में फैसला दे दिया गया. उस बेंच के सदस्य थे चीफ जस्टिस ए एन राय, जस्टिस एच आर खन्ना, एम एच बेग, वाई वी चंद्रचूड़ और पी एन भगवती.

ये काफी दिलचस्प रहा कि वाई वी चंद्रचूड़ के ही उस फैसले को पलटते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने राइट टू प्राइवेसी का ऐतिहासिक फैसला देश के नागरिकों के हित में दिया.

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