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शहीद RPF कॉन्‍स्टेबल राणा को मिले बहादुरी सम्मान, परिवार को इंतजार

शहीद राणा के परिवार को उम्मीद है कि रोहित को आरपीएफ में नौकरी दी जाएगी.

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रेलवे सुरक्षा बल के 50 वर्षीय कॉन्‍स्टेबल जगबीर सिंह राणा ने 21 अप्रैल को दिल्ली के आजादपुर रेलवे स्टेशन पर अपनी जान पर खेलकर पटरियों पर चल रहे चार लोगों की जान बचाई. लेकिन इस कोशिश में कॉन्‍स्टेबल राणा की जान चली गई और उनकी मौके पर ही मौत हो गई. आरपीएफ के शहीद राणा के परिवार को आज भी इंतजार है कि उन्हें उनकी बहादुरी के लिए सम्मानित किया जाए.

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क्या हुआ था उस शाम को?

आजादपुर गांव में रेलवे की पटरियों के किनारे रहने वाले लोग जो इस घटना के गवाह थे, वे इस बारे में बताते हैं. 21 अप्रैल की रात लगभग 9 बजे एक शख्‍स की जान चली गई थी, जब वो पटरी पर चल रहे चार लोगों को बचाने की कोशिश कर रहा था. उस घटना के एक गवाह कृष्णा का सिर अब भी उस सीन को याद कर घूम जाता है.

कौन थे कॉन्‍स्टेबल जगबीर सिंह राणा?

हरियाणा के जटौला गांव के रहने वाले कॉन्‍स्टेबल जगबीर सिंह राणा अपने पीछे पत्नी, दो बेटे और दो बेटियां छोड़ गए हैं. इसके अलावा उनके घर में उनके माता-पिता हैं. दो बहने हैं, जिनकी शादी हो चुकी है. उनका पूरा परिवार आज भी सदमे में है.

राणा की पत्नी सुनीता उस दिन को याद करती हैं. उन्होंने बताया कि उनके पति रोज की तरह शाम को लगभग 5 बजे घर से निकल अपने ड्यूटी पर चले गए थे. रात 9:40 बजे उन्हें फोन आया कि उनके पति का देहांत हो गया है.

उनके परिवारवालों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है, जब राणा लोगों को पटरियों पर बचाने के लिए चले गए थे. उनके सहयोगी और रेलवे में सिग्नलमैन का काम करने वाले चरणजीत ने द क्विंट को बताया कि राणा एक नेकदिल और प्यारे इंसान थे. वो हमेशा लोगों की मदद करने की कोशिश करते थे.

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‘उनकी कोई भी तारीफ कम होगी'

रेलवे में कॉन्‍स्टेबल के पद पर काम करने वाले जगबीर सिंह राणा ने अपने काम के लिए पहले कई पुरस्कार जीते थे. आरपीएफ इंस्पेक्टर होशियार सिंह जिनके अंडर वो अपनी ड्यूटी कर रहे थे, उन्‍होंने उनकी इस बहादुरी के लिए वीरता सम्मान के लिए उनके नाम की सिफारिश की है. उन्हें उम्मीद है कि उनके साथी को सम्मानित करने से उनके विभाग की प्रतिष्ठा बढ़ेगी. सिंह ने राणा की वीरता के बारे में बताया, "उनकी कोई भी तारीफ कम होगी".

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परिवार का बोझ अब राणा के बेटे रोहित पर

परिवार को चलाने की जिम्मेदारी राणा के बड़े बेटे 21 साल के रोहित के युवा कंधों पर आ गई है. द क्विंट से मुलाकात होने पर उनके चेहरे पर हताशा और चिंता की लकीर दिख रही थी. राणा परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे, जिनके पास बहुत कुछ नहीं था. वे चले गए, अब उनका परिवार अपनी जीविका को आगे बढ़ाने के बारे में चिंतित है. उनके पास कुछ जमीन है, लेकिन यह केवल घरेलू जरूरतों के लिए पर्याप्त है. उनके पास अपनी जमीन पर अच्छी तरह से खेती करने के लिए भी पैसे नहीं हैं.

परिवार को उम्मीद है कि अगर कुछ नहीं, तो रोहित को ही आरपीएफ में नौकरी दे दी जाएगी. राणा की पत्नी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि दिल्ली के सीएम केजरीवाल और हरियाणा के सीएम मनोहरलाल खट्टर उनकी बहादुरी को पहचानेंगे और उन्हें सम्मानित करने के लिए कुछ कदम उठाएंगे.

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राणा की बेटी मोनिका ने द क्विंट को बताया कि वे चाहते हैं कि उन्हें 15 अगस्त को सम्मानित किया जाए. उसने कहा, “हम चाहते हैं कि हमारे पिता को 15 अगस्त को सम्मानित किया जाए क्योंकि उन्होंने अपना जीवन खोने से पहले चार लोगों की जान बचाई थी. यह सरकार से हमारी अपील है कि उसे बहादुरी पुरस्कार मिलना चाहिए.”

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इस तरह आरपीएफ ने की उनके परिवार की मदद

आरपीएफ ने परिवार की आर्थिक मदद करने की कोशिश की है. उत्तर रेलवे ने भी कुछ दिनों के भीतर ही 2 लाख रुपये से अधिक की राशि जमा की. राणा के सीनियर होशियार सिंह ने ये रकम राणा की पत्नी सुनीता को दी. साथ ही अखिल भारतीय आरपीएफ ने भी लगभग 19 लाख रुपये जमा किये, जो उनकी पत्नी सुनीता के नाम पर खोले गए अकॉउंट में ट्रांसफर कर दिए गए. इस बात को राणा के बेटे रोहित ने द क्विंट को बताया.

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