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रूस के खिलाफ वोट क्यों नहीं? क्या सदियों पुराने दोस्त को खोना नहींं चाहता भारत

UN परिषद में रूस के यूक्रेन के खिलाफ हमले के प्रस्ताव पर भी भारत ने न इसके पक्ष में वोट किया और न ही इसका विरोध किया

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यूक्रेन पर रूसी हमले को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लाए गए निंदा प्रस्ताव और उसकी वोटिंग में भारत द्वारा हिस्सा न लेने की खबरें गत रोज से छाई हुई हैं. यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करने और यूक्रेन से रूस की फौज की तत्काल वापसी की मांग इस प्रस्ताव में उठाई गई थी. इस प्रस्ताव पर भी भारत ने न तो इसके पक्ष में वोट किया न ही इसका विरोध किया. चीन और यूएई ने भी इसे लेकर वोट नहीं दिया.

भारत के इस निर्णय के कई कारण है, इन पर चर्चा करने से पहले हम भारत के उस बयान को देख लें जिसमें उसने बताया कि रूस के यूक्रेन पर हमले के खिलाफ प्रस्ताव पर उसने वोट क्यों नहीं किया.

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बयान में सुरक्षा परिषद में भारत के प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने कहा कि यूक्रेन के हाल के घटनाक्रम से भारत बेहद परेशान है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि कूटनीतिक बातचीत के जरिए मामला सुलझाने का रास्ता छोड़ दिया गया है. भारत आग्रह करता है कि हिंसा को जल्द से जल्द समाप्त किया जाए. हम यूक्रेन में बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों समेत भारतीय समुदाय के लोगों की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं. समसामयिक वैश्विक व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और अलग-अलग देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर आधारित है. सभी सदस्य देशों को रचनात्मक तरीके से आगे बढ़ने के लिए इन सिद्धांतों का सम्मान करने की जरूरत है.

भारत का निष्पक्ष रुख

रूस-यूक्रेन संकट पर भारत ने तटस्थ रुख अपनाया है. अमेरिका और रूस दोनों देशों से भारत के रिश्ते काफी अच्छे हैं. भारत की जीडीपी का 40 फीसदी हिस्सा फॉरेन ट्रेड से आता है. 1990 के दौर में यह आंकड़ा करीब 15 फीसदी था. भारत का अधिकतर कारोबार अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देशों के अलावा मिडिल ईस्ट से होता है. भारत हर साल पश्चिमी देशों से करीब 350-400 बिलियन डॉलर का कारोबार करता है. वहीं, रूस और भारत के बीच भी 10 से 12 बिलियन डॉलर का कारोबार है.

यूक्रेन और रूस के बीच छिड़े विवाद ने दुनिया को दो हिस्सों में कर दिया है. अमेरिका और नाटो देशों समेत यूरोप के तमाम देश रूस की आक्रामकता का विरोध कर रहे हैं. इसके अलावा भारत और चीन जैसे देश इस मसले पर बेहद कूटनीतिक सावधानी बरत रहे हैं.
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यूक्रेन के पक्ष में न बोलने की वजह

यूक्रेन के पक्ष में खड़ा होकर भारत रूस के साथ अपने दशकों पुराने रिश्ते कमजोर नहीं करना चाहता.

हालांकि यूक्रेन की अपील के कुछ घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की और तत्काल हिंसा रोकने की अपील की. पीएम ने जोर दिया है कि सभी पक्षों को कूटनीतिक बातचीत और संवाद की राह पर लौटना चाहिए.

भारत ने 2014 में भी किसी का पक्ष नहीं लिया था, जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा जमा लिया था. यूक्रेन की संप्रभुता को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश किए गए प्रस्ताव पर वोटिंग से भी भारत ने दूरी बना ली थी.

यहां ये भी जानिए कि भारत और यूक्रेन के बीच संबंध कैसे रहे हैं. यूक्रेन, सोवियत यूनियन से 1991 में अलग हुआ था. सोवियत यूनियन के विघटन के बाद यूक्रेन को अलग देश बने करीब 31 साल हो गए हैं. इस दौरान भारत और यूक्रेन के बीच के रिश्ते कुछ खास नहीं रहे हैं. एक बात और ध्यान देने वाली है कि भारत का कोई भी प्रधानमंत्री आज तक यूक्रेन के दौरे पर नहीं गया है.

वहीं यूक्रेन ने किसी भी अहम मसले पर भारत की मदद नहीं की है. जब वर्ष 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किए थे तो दुनियाभर के कई देशों ने भारत की आलोचना की थी, जिसमें यूक्रेन भी शामिल था.तब यूएन में इस परमाणु परीक्षण को लेकर चर्चा हुई थी और रूस ने भारत का साथ दिया था और यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में भारत के पक्ष में वीटो का इस्तेमाल किया.
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दूसरी तरफ भारत--यूक्रेन के रिश्तों के बीच पाकिस्तान भी है क्योंकि, पाकिस्तान के साथ यूक्रेन के मजबूत रक्षा संबंध हैं. यूक्रेन ने पाकिस्‍तान को T-80D टैंक सप्‍लाई किए जिसके बाद भारत को रूस से T-90 टैंक हासिल करने के लिए तेजी दिखानी पड़ी. पाकिस्‍तान के II-78 एयर-टू-एयर रीफ्यूलिंग एयरक्राफ्ट की रिपेयरिंग का ठेका भी साल 2020 में यूक्रेन को मिला था.

भारत ने यूक्रेन से कहा था कि पाकिस्तान को ये टैंक न बेचे जाएं क्योंकि, पाकिस्तान आतंक को बढ़ावा देने वाला देश है और इन टैंकों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद यूक्रेन ने 320 टैंकों को बेचा. इसके अलावा पिछले साल ही यूक्रेन ने पाकिस्तान के साथ 85 मिलियन डॉलर की डील की है जिसके तहत इन टैंकों को फिर से अपग्रेड किया जाएगा.

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भारत और रूस के संबंध

भारत और रूस के बीच के रिश्ते की बात करें तो दोनों ही देशों के बीच रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं. कई अहम मसलों पर रूस ने भारत का साथ दिया है. रूस भारत के लिए अहम साथी है. यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में रूस स्थायी सदस्य है. रूस ने कश्मीर के मुद्दे पर आर्टिकल 370 को लेकर भारत का समर्थन किया था. सबसे अहम बात ये है कि भारत के तकरीबन 70 फीसदी हथियार रूसी हैं और इनके स्पेयर पार्ट्स के लिए हम रूस पर निर्भर हैं.

रूस हमारा वह आजमाया हुआ दोस्त है जिसने कई मौकों पर हमारा साथ दिया है. 1971 के युद्ध में जब पाकिस्तान से जंग लड़ रहे भारत को डराने अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में अपने सातवें बेड़े को भेज दिया था, तब तत्कालीन सोवियत संघ ने भारत को जो सहयोग दिया था, उसे भारत इतनी आसानी से नहींं भुला सकता.

अगर भारत रूस के खिलाफ जाता है तो भारत की विदेश नीति को काफी नुकसान पहुंचेगा. रूस के साथ भारत की स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप है. इसका कारण भारत के रूस के साथ सामरिक संबंध और सैन्य जरूरतों के लिए उस पर निर्भरता है. भारत की 60-70 फीसदी सैन्य उपकरणों की आपूर्ति रूस से होती है.

भारत के राष्ट्रीय हितों पर के मुद्दों पर भी चीन ने काफी बार सकारात्मक बातें कही हैं. यून सिक्योरिटी काउंसिल में ऐसे प्रस्तावों पर रूस ने वीटो पॉवर लगाई है, जिनमें भारत को नीचा दिखाने का प्रयास किया गया है. वह भारत का बेशकीमती दोस्त है, इसलिए भी संभवत: भारत ने उसके खिलाफ वोट देना उचित नहीं समझा.

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