विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 14 नवंबर को कहा कि अतीत में पाकिस्तान से निपटने के तौर तरीकों से कई सवाल खड़े होते हैं. हालांकि जयशंकर ने पाकिस्तान से निपटने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘साहसिक कदमों’ की सराहना की. विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान से निपटने के लिए लगातार उस पर दबाव बनाए रखना बहुत जरूरी है क्योंकि उसने ‘‘आतंक का उद्योग’’ खड़ा कर लिया है.
जयशंकर ने चौथे ‘रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान’ देते हुए एक ऐसी विदेश नीति की वकालत की जो यथास्थितिवादी नहीं बल्कि बदलाव की सराहना करती हो. उन्होंने इस संदर्भ में 1962 में चीन के साथ लड़ाई, शिमला समझौते, मुंबई हमले के बाद प्रतिक्रिया ना जताने जैसे भारतीय इतिहास की अहम घटनाओं का जिक्र किया और उसकी तुलना में 2014 के बाद भारत के 'ज्यादा गतिशील' रुख को पेश किया.
जयशंकर ने कहा कि विश्व मंच पर भारत की स्थिति लगभग तय थी लेकिन चीन के साथ 1962 के युद्ध ने उसे काफी नुकसान पहुंचाया.
विदेश मंत्री ने आतंकवाद से निपटने में भारत के नए रुख को रेखांकित करते हुए मुंबई आतंकवादी हमले पर ‘‘प्रतिक्रिया की कमी’’ की तुलना, उरी और पुलवामा हमलों पर की गई कार्रवाई से की. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से भारत के अलग होने पर विदेश मंत्री ने कहा कि खराब समझौते से कोई समझौता नहीं होना बेहतर है.
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