सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 3:2 के बहुमत से सबरीमाला मामले पर दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं को 7 जजों की बड़ी बेंच के पास भेज दिया है. ये पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2018 के फैसले के खिलाफ दाखिल हुई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगाई है.
जिस बेंच ने सबरीमाला मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने का फैसला किया है, उसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई, जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा शामिल हैं. इस फैसले पर असहमति जाहिर करने वालों जजों में जस्टिस नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ शामिल हैं.
सीजेआई गोगोई ने कहा है कि धार्मिक स्थान पर महिलाओं पर प्रतिबंध सिर्फ सबरीमाला मंदिर तक ही सीमित नहीं है, यह मस्जिद और पारसी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से भी जुड़ा है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अब बड़ी बेंच सबरीमाला मामले के अलावा मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश और महिलाओं के खतना संबंधी धार्मिक मामलों पर भी सुनवाई करेगी.
क्या था सितंबर 2018 का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 28 सितंबर, 2018 को 4-1 के बहुमत से सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रावधान को गलत ठहराया था, जिसके तहत सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की आयु वाली महिलाओं के प्रवेश पर रोक थी.
इस रोक को लेकर कोर्ट में दलील दी गई थी कि सबरीमाला मंदिर में ब्रह्मचारी देव हैं और इसी वजह से तय आयुवर्ग की महिलाओं की एंट्री पर बैन है.
सुप्रीम कोर्ट में इस तरह आगे बढ़ा मामला
साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट में इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने एक याचिका दाखिल की थी. इस याचिका में 10 से 50 साल तक की आयु वाली महिलाओं को भी सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने की मांग की गई थी. साल 2008 में यह मामला 3 जजों की बेंच के पास चला गया.
अप्रैल 2016 में केरल की यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वो सबरीमाला भक्तों की आस्था और परंपरा को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है. इसके बाद केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार बनी. 7 नवंबर 2016 को इस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वो सबरीमाला मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है.
साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संविधान बेंच के पास भेज दिया. सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाया, जिसके खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल हुई थीं.
अलग-अलग पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 6 फरवरी 2019 को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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