समाजवादी पार्टी में जारी घमासान अब चुनाव आयोग पहुंच चुका है. मुलायम सिंह यादव सोमवार शाम 4:30 बजे चुनाव आयोग से मिलने वाले हैं. इस मुलाकात में अमर सिंह और शिवपाल यादव भी मुलायम सिंह के साथ होंगे. वहीं, अखिलेश कैंप की ओर से रामगोपाल यादव भी लखनऊ से दिल्ली पहुंच चुके हैं.
पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी के मुताबिक, इलेक्शन सिंबल ऑर्डर 1968 के अनुसार पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न को फिलहाल के लिए फ्रीज किया जा सकता है. इसके साथ ही पार्टी के दोनों गुटों को एड हॉक पर नाम दिए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए, समाजवादी पार्टी (एम) समाजवादी पार्टी (ए). इसका कारण ये है कि ये एक क्वासी ज्युडिशियल मामला है. चुनाव आयोग ऐसे किसी मामले को स्वयं से संज्ञान में नहीं लेता है. इसलिए पहले पक्ष के पहुंचने के बाद दूसरे पक्ष को नोटिस भेजा जाएगा. इसके बाद चुनाव आयोग दोनों पक्षों को सुनने के बाद ही कोई फैसला लेगा. ऐसे में इसका समाधान निकलने में 4 से 5 महीनों का समय लग सकता है.
आखिर क्या कहता है कानून?
कानूनी आधार पर समाजवादी पार्टी की जंग में मुलायम सिंह यादव ज्यादा मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं. पार्टी के संविधान के मुताबिक, पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने का अधिकार केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष को है.
पार्टी के संविधान के इस हिस्से के मुताबिक, मुलायम सिंह अखिलेश यादव की ताजपोशी को असंवैधानिक ठहराने में सफल हो सकते हैं.
वहीं, सपा के संविधान की धारा - 17 के मुताबिक, अध्यक्ष की अनुपस्थिति में राष्ट्रीय कार्यकारिणी या राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता उपाध्यक्ष करेगा. अखिलेश यादव ने 1 जनवरी के राष्ट्रीय अधिवेशन में किरणमय नंदा को शामिल किया था जो कि पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. इस आधार पर अखिलेश कैंप अधिवेशन की संवैधानिकता सिद्ध करने की कोशिश करेगा.
इस मामले में चुनाव आयोग दोनों पक्षों को बहुमत सिद्ध करने को भी कह सकता है. ऐसे में अखिलेश यादव चुनाव आयोग से बहुमत सिद्ध करने देने की मांग कर सकते हैं. वहीं, मुलायम सिंह यादव मांग करेगा कि अखिलेश यादव की ताजपोशी को अवैध ठहराया जाए और उनके दावे को तरजीह दी जाए.
चुनाव आयोग फ्रीज कर सकता है नाम और चुनाव चिह्न
चुनाव आयोग इस मामले में समय की कमी के चलते चुनाव चिह्न ‘साइकिल’ और ‘समाजवादी पार्टी’ नाम को फिलहाल के लिए फ्रीज कर सकती है. इसका नुकसान दोनों गुटों को उठाना पड़ सकता हैं.
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