केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने की मांग का विरोध किया है. इस संबंध में दायर याचिका पर सरकार ने अपना रूख स्पष्ट करते हुए कहा है कि समलैंगिक विवाह भारतीय पारिवारिक व्यवस्था के अनुरुप नहीं है. मामले की सुनवाई अब 20 अप्रैल को होगी.
केंद्र सरकार का कहना है कि ‘’एक ही लिंग के लोगों का पार्टनर की तरह एक साथ रहना और यौन संबंध बनाने की तुलना भारतीय परिवार से नहीं हो सकती है, जिसमें एक पति, पत्नी और बच्चे होते हैं. इसमें जैविक पुरुष पति होता है, जैविक महिला पत्नी और इनके मिलन से बच्चे पैदा होते हैं.’’ केंद्र सरकार ने इस संबंध में दायर याचिका को खारिज करने की मांग की है.
जस्टिस राजीव सहाई और अमित बंसल ने हिन्दू मैरिज एक्ट और स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मंजूरी दिए जाने की मांग पर केंद्र सरकार से अपना रूख स्पष्ट करने को कहा था।
इस मामले की सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब देते हुए कहा कि हमें लगता है कि यह ‘एक कॉमन इश्यू’ है.
इससे पहले अक्टूबर और नवंबर 2020 में हाईकोर्ट ने समलैंगिक विवाह को लेकर दायर 3 याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस दिया था. जस्टिस राजीव सहाई और संजीव नरुला की बेंच को इस मामले की सुनवाई 8 जनवरी को करनी थी, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से जवाब में देरी की वजह से स्थगित की गई थी.
कौन है याचिकाकर्ता?
समलैंगिक विवाह को मंजूरी दिए जाने से जुड़ी याचिका LGBT कम्युनिटी के सदस्य अभिजीत अय्यर मित्रा, गोपी शंकर, जी ओरवासी और गिती थडानी की ओर से दर्ज की गई थी. इन याचिका में हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को अनुमति देने की मांग की गई है. याचिकाकर्ता का कहना है कि हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 5 में यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी दो हिन्दुओं के बीच विवाह हो सकता है.
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि इस एक्ट में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि शादी एक हिन्दू पुरुष और हिन्दु महिला के बीच हो, इसलिए हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अधिकारियों द्वारा समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार करना कानूनी रूप से गलत है.
कोर्ट में इस मामले से जुड़ी दो और याचिकाएं भी दर्ज हैं, जिनमें समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट और फॉरेन मैरिज एक्ट के तहत मान्यता देने की मांग की गई है.
स्पेशल मैरिज एक्ट से जुड़ी एक याचिका दो महिलाओं, कविता अरोरा और अंकिता खन्ना ने दायर की है. जो कि पिछले 8 सालों से साथ रह रही हैं. इन दोनों महिलाओं ने सितंबर 2020 में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने की कोशिश की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.
इसके पीछे तर्क दिया गया कि यह सेक्सुल ओरिएंटेशन के आधार पर भेदभावपूर्ण है. जिसे संविधान के अनुच्छेद 15 में अनुचित ठहराया गया है. इसमें 2018 में सुप्रीम कोर्ट के IPC के सेक्शन 377 को लेकर दिए गए फैसले का हवाला दिया गया.
फॉरेन मैरिज एक्ट से जुड़ी याचिका दो पुरुषों, वैभव जैन और विजय मेहता की ओर से दायर की गई है. दोनों ने अमेरिका में 2017 में शादी की थी, लेकिन जब उन्होंने फॉरेन मैरिज एक्ट के तहत अपनी शादी का पंजीकरण कराने के लिए दूतावास से संपर्क किया, तो उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया. इन याचिकाकर्ताओं ने भी संविधान में निहित अधिकारों और उनके उल्लंघन व भेदभावपूर्ण रवैये को लेकर याचिका दर्ज की है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)