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सम्मेद शिखर को लेकर अन्न-जल त्यागने वाले जैन मुनि सुज्ञेय सागर महाराज का निधन

मुनि सुज्ञेय सागर महाराज की अंतिम यात्रा में हजारों की संख्या में स्त्री पुरुष बच्चे शामिल हुए.

Published
भारत
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झारखंड (Jharkhand) में स्थित जैन समाज के तीर्थ सम्मेद शिखर जी (Sammed Sikhar) की रक्षा के लिए पिछले दस दिनों से अन्न त्यागे बैठे मुनिश्री सुज्ञेय सागर महाराज का मंगलवार को निधन हो गया. जैन मुनि के सम्मेद शिखरजी को लेकर देह त्याग की खबर फैल रही है. निधन की खबर के बाद देखते ही देखते सांगानेर में युवाओं का हुजूम इकट्ठा हो गया. हजारों की संख्या में स्त्री पुरुष बच्चे अंतिम यात्रा में शामिल हुए. इसमें शामिल लोगों ने अंतिम समय तक इस आंदोलन को जारी रखने का आह्वान किया.

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महाराज के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए आचार्य सुनील सागर, शशांक सागर महाराज, गणिनी आर्यिका भरतेश्वरमति माताजी ससंघ से आशीर्वाद प्राप्त किया.

इससे पहले गणिनी आर्यिका भरतेश्वरमति माताजी ससंघ मालपुरा रोड स्थित श्री जी नगर से सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ आचार्य श्री ससंघ के दर्शन करने जयपुर के सांगानेर पंहुची.
मुनि सुज्ञेय सागर महाराज की अंतिम यात्रा में हजारों की संख्या में स्त्री पुरुष बच्चे शामिल हुए.

जैन मुनि सुनील सागर ने बताया कि

सम्मेद शिखर हमारी शान है. मुनि सुज्ञेयसागर महाराज को जब मालूम पड़ा था कि सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किया गया है, तो वे इसके विरोध में लगातार उपवास पर थे. अब मुनि समर्थ सागर ने भी अन्न का त्याग कर तीर्थ को बचाने के लिए पहल की है.
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सम्मेद पर कई तीर्थंकरों को मिला मोक्ष

झारखंड का हिमालय माने जाने वाले सम्मेद पर जैनियों का पवित्र तीर्थ शिखरजी स्थापित है. इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की. यहां पर 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था. पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं. जंगलों, पहाड़ों के दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए नौ किलोमीटर की यात्रा तय कर शिखर पर पहुंचते हैं.

2019 में केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखर को इको-सेंसिटिव जोन घोषित किया था. इसके बाद झारखंड सरकार ने एक संकल्प जारी कर जिला प्रशासन की अनुशंसा पर इसे पर्यटन स्थल घोषित किया. गिरिडीह जिला प्रशासन ने नागरिक सुविधाएं डेवलप करने के लिए 250 पन्नों का मास्टर प्लान भी बनाया है.

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