इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने वाली जनहित याचिका (PIL) पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जनवरी में सुनवाई शुरू कर सकता है. एक गैर सरकारी संगठन ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. इस याचिका में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पॉलिटिकल फंडिंग में कथित अपारदर्शिता के चलते बॉन्ड जारी करने पर रोक लगाने की मांग की गई है.
इसके पहले ADR ने अप्रैल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड्स के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. जगदीप छोकर बताते हैं कि कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा, " काफी महत्वपूर्ण मुद्दें उठाए गए हैं जिनका असर देश के इलेक्टोरल सिस्टम पर होता है." छोकर कहते है कि ये सुनवाई 12 अप्रैल 2018 को हुई थी लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ.
हमने कुछ दिन पहले ही एक नई एप्लीकेशन डाली है. RTI से कुछ जानकारियां मिली हैं जो इन बॉन्ड्स को लेकर हमारे शक को पुख्ता करती है. सबसे खतरनाक बात ये है कि एक अनुमान विपक्षी पार्टियों की फंडिंग बंद होने का है और सारा पैसा सत्ताधारी दल को मिल जाए. एक बार कोई सत्ता में आ गया तो उनको हटाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा क्योंकि दूसरी पार्टियों के पास पैसा ही नहीं होगा.जगदीप छोकर
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड्स?
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को मोदी सरकार में जनवरी 2018 में अधिसूचित किया गया था. कहा गया था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता आएगी. लेकिन इसने चुनावी फंडिंग को अपारदर्शी बना गया है. राजनीतिक पार्टियों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड डोनर के बारे में चुनाव आयोग को बताए.
बीजेपी को मिला इलेक्टोरल बॉन्ड से सबसे ज्यादा चंदा
इलेक्शन कमीशन में जमा की गई रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी को साल 2017-18 में सबसे ज्यादा चंदा मिला है. बीजेपी को 210 करोड़ रुपये 2000 रुपये के रूप में मिले. देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए जो चंदा मिला, उसमें से बीजेपी का 94.5% हिस्सा है. जमा की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि बीजेपी को 210 करोड़ रुपये मिले है. चुनावी चंदे के लेनदेन को पारदर्शी बनाने के लिए बने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए इस साल सबसे अधिक चंदा बीजेपी को ही मिला है.
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