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CJI के खिलाफ 71 सांसदों का महाभियोग प्रस्ताव, ये हैं 5 आरोप

क्या हैं वो 5 आधार जिनपर चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है?

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भारत
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कांग्रेस की अगुवाई में 7 विपक्षी पार्टियों ने शुक्रवार को राज्यसभा के सभापति एम.वेकैंया नायडू से मुलाकात की और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव सौंपा. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने उपराष्ट्रपति से मुलाकात के बाद कहा कि पार्टियों ने 5 आधार पर जस्टिस दीपक मिश्रा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव सौंपा है.

क्या हैं वो 5 आधार जिनपर चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है?

कांग्रेस समेत 7 विपक्षी पार्टियों ने महाभियोग के जो 5 कारण बताए हैं, वो हैं-

1. एजुकेशन ट्रस्ट से फायदा उठाने का आरोप: ये मामला प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट से जुड़ा है. आरोप है कि संबंधित शख्स को गैरकानूनी लाभ दिया गया. इस मामले को चीफ जस्टिस ने जिस तरह से देखा है उसे लेकर सवाल है. ये रिकॉर्ड पर है कि सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की है. मामले में बिचौलियों के बीच रिकॉर्ड की गयी बातचीत का ब्योरा भी है. प्रस्ताव के अनुसार इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस नारायण शुक्ला के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की इजाजत मांगी और चीफ जस्टिस के साथ सबूत शेयर किए, उन्होंने जांच की इजाजत देने से इनकार कर दिया.

2. दूसरा आरोप उस रिट याचिका को जीफ जस्टिस द्वारा देखे जाने के प्रशासनिक और न्यायिक पहलू के संदर्भ में है जो प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में जांच की मांग करते हुए दायर की गई थी.

3. रोस्टर में ‘मनमानी’ का आरोप: कांग्रेस और दूसरे दलों का तीसरा आरोप भी इसी मामले से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि ये परंपरा रही है कि जब चीफ जस्टिस संविधान पीठ में होते हैं तो किसी मामले को सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश के पास भेजा जाता है. इस मामले में ऐसा नहीं करने दिया गया.

4. जमीन हासिल करने का आरोप: गलत हलफनामा देकर जमीन हासिल करने का आरोप भी लगाया गया है. प्रस्ताव में पार्टियों ने कहा है कि जस्टिस मिश्रा ने वकील रहते हुए गलत हलफनामा देकर जमीन ली और 2012 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बनने के बाद उन्होंने जमीन वापस की, जबकि उस जमीन का आवंटन साल 1985 में ही रद्द कर दिया गया था.

5. पद का दुरुपयोग: इन दलों का 5वां आरोप है कि चीफ जस्टिस ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ अहम और संवदेनशील मामलों को कई पीठ को आवंटित करने में अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग किया.

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महाभियोग प्रस्ताव को किन दलों का समर्थन मिला है?

7 विपक्षी दलों के नेताओं ने नोटिस देते हुए कहा कि ‘संविधान और न्यायपालिका की रक्षा’ के लिए उनको ‘भारी मन से’ ये कदम उठाना पड़ा है. महाभियोग के नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में कांग्रेस, NCP, CPM, CPI, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के सदस्य शामिल हैं. इन नेताओं ने ये भी साफ किया है कि इस कदम के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है और जज बीएच लोया मामले से भी इसका कोई संबंध नहीं है.

चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लेकर उपराष्ट्रपति से मिलने पहुंचे विपक्षी नेताओं में गुलाम नबी आजाद, केटीएस तुलसी, अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल, एनसीपी की वंदना चौहान, सीपीआई के डी. राजा शामिल थे.

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क्या है महाभियोग प्रस्ताव?

राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जस्टिस को पद से हटाना बेहद कठिन प्रक्रिया है. इसका मकसद ये है कि इन पदों पर बैठे लोग निष्पक्ष होकर काम करें, लेकिन अगर गंभीर आरोपों की वजह से इन्हें हटाने की जरूरत पड़े, तो इन्हें सिर्फ महाभियोग प्रस्ताव पास कराकर ही हटाया जा सकता है. संविधान के अनुच्छेद 124(4) में जजों के खिलाफ महाभियोग का जिक्र है. इसके तहत सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी जज पर साबित कदाचार या अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है.

बीजेपी की प्रतिक्रिया क्या है?

बीजेपी के बड़े नेता और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने महाभियोग प्रस्ताव को कांग्रेस का ‘पॉलिटिकल टूल’ बताया है. जेटली ने कहा जज लोया केस में कांग्रेस का झूठ साबित होने के बाद महाभियोग प्रस्ताव को बदले की भावना से लाया गया है. इससे देश की न्यायपालिका को बड़ा नुकसान पहुंचेगा.

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