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'स्कूल के पास न हों ठेके'',याचिका पर HC बोला-बच्चों को मजबूत नैतिक शिक्षा दीजिए

आदिवासी छात्रों के लिए स्कूल और हॉस्टल चलाने वाले देवराम मुंडे और दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर की थी.

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बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) के जस्टिस गिरीश कुलकर्णी ने बुधवार को पुणे के एक शिक्षा संस्थान चलानेवाले याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा, "शैक्षणिक संस्थानों के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे छात्रों में मजबूत नैतिक मूल्यों के साथ तैयार करें ताकि उन्हें जीवन में चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया जा सके." पुणे में स्कूलों के आसपास शराब वे बनने के लाइसेंस पर रोक लगाने की गुहार इस याचिका में लगाई गई थी.

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कोर्ट ने कहा कि संस्था को यह राय नहीं बनानी चाहिए की स्कूल द्वारा दी जाने वाली शिक्षा इतनी कमजोर है कि छात्र आसानी से आसपास के रेस्तरां में शराब परोसने से प्रभावित हो सकते हैं.

आदिवासी छात्रों के लिए स्कूल और हॉस्टल चलाने वाले देवराम मुंडे और दो अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा याचिका दायर की गई थी. उन्होंने राज्य के एक्साइज विभाग द्वारा इस साल 22 जून को स्कूल के पास रेस्तरां मूनलाइट को शराब लाइसेंस देने के आदेश के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी.

पुणे के होटल मूनलाइट के मालिक ने अपने FL-III को नगर परिषद की सीमा के भीतर एक शहरी क्षेत्र में स्थित दूसरे परिसर में स्थानांतरित करने के लिए आवेदन किया था.

हालांकि, पुणे जिला कलेक्टर ने 19 नवंबर, 2019 को याचिकाकर्ताओं, शिरूर लोकसभा क्षेत्र के एक सांसद, एक स्थानीय विधायक और जुन्नर में एक आदिवासी शिक्षण संस्थान द्वारा उठाई गई आपत्तियों के आधार पर लाइसेंस के हस्तांतरण की प्रार्थना को खारिज कर दिया था.

हालांकि, हाई कोर्ट ने उल्लेख किया कि जांच अधिकारी की मार्च 2019 की रिपोर्ट पर कलेक्टर की टिप्पणियों ने शैक्षणिक संस्थान के मुख्य द्वार और रेस्तरां के बीच की दूरी को 450 मीटर माना था.

रिपोर्ट में पाया गया कि 10-12 सालों से होटल आनंद नामक एक और रेस्तरां उस इलाके में है, जिसके पास शराब लाइसेंस था और संस्थान के मुख्य प्रवेश द्वार से ये महज 375 मीटर की दूरी पर स्थित था और स्कूल ने उस पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी.

कोर्ट ने कहा कि 'बॉम्बे फॉरेन लिकर रूल्स' के प्रावधानों के मुताबिक, किसी शैक्षणिक या धार्मिक संस्थान से 75 मीटर की दूरी बनाए रखना आवश्यक है.

जिसके बाद, 22 जून को राज्य के एक्साइज विभाग के सचिव ने एक्साइज आयुक्त के आदेश को बरकरार रखा, जिससे याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा.

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