दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने बुधवार, 29 मई को जेएनयू (JNU) छात्र शरजील इमाम (Sharjeel Imam) को 2020 के सांप्रदायिक दंगों के एक मामले में वैधानिक जमानत दे दी है.
दिल्ली दंगों (Delhi Riot) के दौरान दिल्ली के जामिया इलाके और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में शरजील इमाम को राष्ट्रद्रोह और UAPA मामले में गिरफ्तार किया गया था.
निचली अदालत के फैसले को दी थी चुनौती
शरजील इमाम ने मामले में वैधानिक जमानत देने से इनकार करने के निचली अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. मामले में सजा सिद्ध होने पर दी जाने वाली अधिकतम सात साल की सजा की आधी अवधि काट लेने के आधार पर इमाम ने कोर्ट में अपने जमानत की अपील की थी.
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति मनोज जैन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान उन्हें जमानत दे दी. इमाम की ओर से अधिवक्ता तालिब मुस्तफा और अहमद इब्राहिम दलील दे रहे थे जबकि दिल्ली पुलिस की ओर से एसपीपी रजत नायर उपस्थित हुए.
कोर्ट में क्या दलीलें पेश हुईं?
इमाम के तरफ से पेश वकील मुस्तफा ने कोर्ट में दलील दी कि इमाम अधिकतम सात वर्ष के कारावास में से चार वर्ष और सात महीने की सजा पहले ही काट चुका है. हालांकि एसपीपी रजत नायर ने इस बात का खंडन किया और कहा,
"इमाम का मामला पूरी तरह से सीआरपीसी की धारा 436ए के स्पष्टीकरण के अंतर्गत आता है और इसलिए वह किसी भी वैधानिक जमानत का हकदार नहीं है"
लाइव लॉ के रिपोर्ट के मुताबिक, नायर ने यह भी कहा कि मुकदमे से पहले हिरासत में रखने की देरी पूरी तरह इमाम के कारण हुई, जिनके कहने पर 2022 में मुकदमे पर रोक लगा दी गई.
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, शरजील इमाम ने कथित तौर पर 13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया में और 16 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण दिया, जहां उसने असम और शेष पूर्वोत्तर को देश से काटने की धमकी दी.
दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा द्वारा इमाम पर मामला दर्ज किया गया था, इमाम के खिलाफ शुरू में देशद्रोह के अपराध में मामला दर्ज किया गया था और बाद में यूएपीए की धारा 13 लगाई गई थी. वह इस मामले में 28 जनवरी, 2020 से हिरासत में है.
दो जजों की पीठ ने आरोप तय करने और गवाहों की जांच की तारीख सहित विभिन्न तारीखों पर गौर करने के बाद इमाम के जमानत याचिका को स्वीकार कर लिया.
हालांकि, शरजील इमाम यूएपीए के आरोपों से जुड़े दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश के मामले में जेल में ही रहेंगे.
ट्रायल कोर्ट ने जमानत याचिका क्यों की खारिज?
इमाम ने निचली अदालत के समक्ष दावा किया था कि वह पिछले चार वर्षों से हिरासत में हैं और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर अधिकतम सजा 7 वर्ष है.
इमाम ने दावा किया कि धारा 436-ए सीआरपीसी के अनुसार, किसी व्यक्ति को हिरासत से रिहा किया जा सकता है यदि उसने अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा की आधी से अधिक अवधि बिता ली हो.
जिसपर ट्रायल कोर्ट ने कहा था, "हालांकि आवेदक ने किसी को हथियार उठाने और लोगों को मारने के लिए नहीं कहा था लेकिन उसके भाषणों और गतिविधियों ने लोगों को संगठित किया, जिससे शहर में अशांति फैल गई और यह दंगों के भड़कने का मुख्य कारण हो सकता है"
कोर्ट ने आगे कहा कि भड़काऊ भाषणों और सोशल मीडिया के जरिए से, आवेदक ने कुशलता से वास्तविक तथ्यों में हेरफेर किया और शहर में तबाही मचाने के लिए लोगों को उकसाया."
निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष का मामला सुनने के बाद 17 फरवरी को उसे जमानत देने से इनकार करते हुए फैसला सुनाया था कि “असाधारण परिस्थितियों” में आरोपी की हिरासत को आगे की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है.
किन धाराओं के तहत दर्ज है FIR?
2022 में, ट्रायल कोर्ट ने इमाम के खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए (देशद्रोह), 153 ए (शत्रुता को बढ़ावा देना), 153 बी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक अभियोग) और 505 (सार्वजनिक शरारत के लिए बयान) और यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत आरोप तय किए.
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