दिल्ली के एक लग्जरी होटल के एक कमरे में मृत मिलीं पत्नी सुनंदा पुष्कर (Sunanda Pushkar Death Case) की मौत के साढ़े सात साल बाद, कांग्रेस सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) को दिल्ली के एक कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने सहित सभी आरोपों से 'सम्मानजनक रूप से बरी' कर दिया.
उनके अपने शब्दों में, पिछले कुछ साल किसी यातना से कम नहीं थे, जहां उन्होंने "निराधार आरोपों और मीडिया की बदनामी का सामना किया."
"ये एक लंबे बुरे सपने का अंत है, जिसने मेरी दिवंगत पत्नी सुनंदा के दुखद निधन के बाद मुझे घेर लिया था."शशि थरूर
लेकिन उनके खिलाफ मीडिया ट्रायल का क्या?
सुनंदा पुष्कर की मौत की खबर को 2014 में मीडिया ने बड़े पैमाने पर कवर किया था. हालांकि, शुरुआती रिपोर्टों में इसे आत्महत्या का मामला माना गया था, लेकिन तब सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी बीजेपी के बीच इस पर खूब राजनीति हुई थी. 2014 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर, इस मामले ने कई सनसनीखेज मोड़ ले लिए.
लेकिन खोजी पत्रकारिता से ज्यादा, अर्णब गोस्वामी जैसे टॉप न्यूज एंकरों ने बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के साथ थरूर के खिलाफ एक शातिर मीडिया ट्रायल शुरू किया. गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी ने जोर देकर कहा कि ये एक हत्या का मामला था. हालांकि, चार्जशीट आत्महत्या के आरोपों पर आधारित थी.
एक समय पर, रिपब्लिक टीवी ने ऑडियो टेप का एक सेट भी जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि थरूर ने अपने सहायक नारायण के साथ मिलकर सुनंदा को मीडिया से बात करने से रोकने की कोशिश की थी. पूरी कवरेज के दौरान, चैनल ने आरोप लगाया कि थरूर का झूठ "पकड़" लिया गया है.
इस पूरे मीडिया ट्रायल में, रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों को पुष्कर की मौत पर सवालों को लेकर, थरूर को परेशान करने के लिए जाना गया.
2017 में ऐसे ही एक मौके पर, कांग्रेस सांसद थरूर, अपने आवास के बाहर एक प्रेस ब्रीफिंग कर रहे थे, जब एक रिपोर्टर आदित्य राज कौल, जो उस समय रिपब्लिक टीवी के साथ काम कर रहे थे, ने पुष्कर की मौत पर प्रतिक्रियाओं को भड़काने की कोशिश वाले सवालों के साथ लगातार सांसद को टोकने की कोशिश की.
इसके बाद, थरूर ने अर्णब गोस्वामी और उनके चैनल के खिलाफ मुकदमा दायर किया, और पुष्कर की मौत की कवरेज में उनके खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए मुआवजे की मांग की.
सुब्रमण्यम स्वामी का बयान, कि जांच "बकवास थी या किसी के प्रभाव में थी" ने शायद जैसे आग में घी डालने का काम किया. उन्होंने पुष्कर की मौत मामले में, कोर्ट की निगरानी में स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम (SIT) गठित करने की मांग करते हुए एक याचिका भी दायर की थी.
मीडिया ट्रायल इतना तेज हो गया था कि 2020 में, दिल्ली हाईकोर्ट को गोस्वामी को संयम बरतने और 'बयानबाजी कम करने' के लिए कहना पड़ा. सुनवाई के दौरान, गोस्वामी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए, जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा, “क्या आप (गोस्वामी) मौके पर थे? क्या आप चश्मदीद गवाह हैं? आपको चल रही जांच की पवित्रता का सम्मान करना चाहिए." स्वामी को भी जस्टिस से फटकार लगी, जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी याचिका "राजनीतिक हित वाली याचिका" थी.
लोगों की मांग- मीडिया ट्रायल के लिए थरूर से मांगी जाए माफी
18 अगस्त को थरूर को क्लीन चिट मिलने के बाद, कई सोशल मीडिया यूजर्स ने मीडिया ट्रायल और सांसद को बदनाम करने की कोशिश के लिए मीडिया से माफी मांगने की भी मांग की.
बार-बार नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कब होगी कार्रवाई?
लेकिन दर्शकों की संख्या और टीआरपी की तलाश में बैठे न्यूज चैनल और टीवी एंकर, मीडिया ट्रायल करने के लिए बार-बार अपराधी हैं.
थरूर पर आए फैसले के बाद, इन मीडिया ट्रायल्स को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. इन मीडिया ट्रायल्स के कारण, लोगों को अपने खिलाफ कुछ भी साबित होने से पहले मानसिक उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है.
ऐसा ही एक मामला है- सुशांत सिंह राजपूत की मौत और उसके बाद रिया चक्रवर्ती का मीडिया ट्रायल. साल 2020 में, सुशांत की मौत को मीडिया ने बड़े पैमाने पर कवर किया था. घंटों चलने वाली डिबेट्स में दिवंगत एक्टर की गर्लफ्रेंड, रिया चक्रवर्ती को 'गोल्ड डिगर' से लेकर 'काला जादू' करने वाली तक घोषित कर दिया गया था. टाइम्स नाउ और रिपब्लिक टीवी के न्यूज एंकर्स ने लीक WhatsApp चैट्स को स्क्रीन पर दिखाया था और मैसेजेस पढ़े थे.
दुर्भाग्य से, सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय मांगने के नाम पर, कंगना रनौत जैसे जाने-माने एक्टर्स भी रिया के खिलाफ तीखे हमले में शामिल हो गए थे. तमाम बदनामी के बावजूद, अभी भी चक्रवर्ती के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के ज्यादा सबूत नहीं मिले हैं.
इसी तरह, आरुषि तलवार हत्याकांड को लगभग एक टीवी सीरियल में बदल दिया गया था और कोर्ट से पहले मीडिया ने अपना फैसला सुना दिया था.
सुशांत सिंह राजपूत केस में, मीडिया ट्रायल को लेकर कोर्ट में कई जनहित याचिकाएं दायर की गईं. इस साल की शुरुआत में, एक फैसले में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने आगाह किया था कि मीडिया ट्रायल के उदाहरण जांच को प्रभावित कर सकते हैं. हालांकि, इसने न्यूज एंकरों या मीडिया घरानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी.
कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा था, ‘‘कोई भी खबर पत्रकारिता के मानकों और नैतिकता संबंधी नियमों के अनुरूप ही होनी चाहिए, नहीं तो मीडिया घरानों को मानहानि संबंधी कार्रवाई का सामना करना होगा.’’
ये उत्पीड़न कभी खत्म नहीं होता है.
2020 में, जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद ने दिल्ली के एक कोर्ट में आरोप लगाया था कि "मीडिया ट्रायल" दिल्ली दंगे मामले में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई के उनके अधिकार को प्रभावित कर रहा था. हाल ही में, पति राज कुंद्रा के पॉर्नोग्राफी मामले में गिरफ्तार होने के बाद, बॉलीवुड एक्टर शिल्पा शेट्टी ने भी ये कहते हुए एक याचिका दायर की थी कि, "हमारा मीडिया ट्रायल नहीं होना चाहिए."
मीडिया ट्रायल जांच और कार्रवाई को प्रभावित कर रहा है, क्या ये कड़ी कार्रवाई करने का सही समय है?
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