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आसनसोल: BJP की 'मित्रा' को ममता के 'शत्रु' ने किया खामोश! पर रिजल्ट कुछ बोल गया

एक तो ममता की पार्टी से हार, ऊपर से पुराने आचोलक शत्रुघ्न सिन्हा से पराजय, यह तो BJP के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा

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भारत
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पश्चिम बंगाल (West Bengal) की आसनसोल लोकसभा सीट पर हुए उप-चुनाव (Asansol by election) में टीएमसी के टिकट पर लड़ेड़े बॉलीवुड स्टार शत्रुघ्न सिन्हा ने बीजेपी की प्रत्याशी अग्निमित्रा पॉल को हराकर 3 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल कर ली. इस उपचुनाव को लेकर लगभग वैसी ही बातें कहीं जा रही थीं जो पश्चिम बंगाल में हुए पिछले विधानसभा चुनाव से पहले कहीं जा रही थीं, यानी कि तृणमूल और बीजेपी दोनों के बीच कड़ा मुकाबला होगा.

विधानसभा चुनाव की ही तरह इस उपचुनाव का परिणाम सामने आया. ममता की टीएमसी की इकतरफा जीत और बीजेपी कहीं मुकाबले में नजर ही नहींं आई. जब इस जीत, मतप्रतिशत, अन्य पार्टियों की स्थिति आदि फैक्टर्स पर नजर डालते हुए हम आसनसोल चुनाव का विश्लेषण करते हैं तो हमें इस सीट के साथ-साथ बंगाल की राजनीति में परिवर्तन के भी संकेत मिलते हैं. आइए इन परिणामों का विश्लेषण करते हुए छह बड़े मायनों पर नजर डालते हैं.

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ममता के जादू का लिटमस टेस्ट

आसनसोल लोकसभा सीट पर टीमएसी अब तक जीत के लिए तरस रही थी. इस सीट पर अब तक कांग्रेस, सीपीआईएम और बीजेपी का ही कब्‍जा रहा. 1957 से 1967 तक यहां कांग्रेस, 1967 से 1971 तक संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और फिर 1971 से 1980 तक और 1989 से 2014 तक इस सीट पर सीपीआई (एम) ने शासन किया. 2014 के बाद जब मोदी लहर का असर बंगाल में भी दिखने लगा तो यहां बीजेपी का खाता खुला. यहां बीजेपी के टिकट पर बाबुल सुप्रियो ने 2014 और 2019 में लगातार दो बार जीत दर्ज की. ममता ने यहां अपनी स्थिति मजबूत करने की पुरजोर कोशिश की, पर उसे आज तक यहां से जीतने में कामयाबी नहीं हासिल हुई.

अब जब आसनसोल जैसे अजेय सीट पर उसे राज्य के इतिहास में पहली बार लोकसभा की सीट हासिल हुई है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस समय बंगाल में टीएमसी का झंडा कितनी बुलंदी पर होगा, इस जीत को ममता के जादू का लिटमस टेस्ट कहा जाए तो गलत नहीं हेागा.
एक तो ममता की पार्टी से हार, ऊपर से पुराने आचोलक शत्रुघ्न सिन्हा से पराजय, यह तो BJP के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा

 

 

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बीजेपी के लिए खतरे की घंटी

आसनसोल का परिणाम पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें जमाने और आगे और भी बेहतर परिणाम देने के दावे कर रही बीजेपी के लिए खतरे की घंटी की तरह से है. पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने पक्ष में खूब माहौल बनाया और जब परिणाम आए तो उसके दावों की कलई खुल गई. उस हार के बाद से ही पश्चिम बंगाल बीजेपी में दल-बदल और कलह मची हुई है. उसके नेताओं में तृणमूल में वापसी की होड़ मची हुई है. पार्टी को अपने प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष को उनका कार्यकाल खत्म होने से पहले ही बदलना पड़ा.

टीएमसी से बीजेपी में आए और कमल निशान पर चुने गए चार विधायक अपनी पुरानी पार्टी में वापस चले गए. इनमें मुकुल रॉय जैसे नाम भी शामिल थे. बागदा से विधायक विश्वजीत दास विधायक तन्मय घोष के तृणमूल में जाने पर बीजेपी को दोनों विधायकों से विधायकी से इस्तीफा देने को कहना पड़ा. इस भगदड़ के लिए भले ही कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका पर सवाल खड़े किए गए पर असल कारण तो सभी जानते थे कि कि जब बीजेपी के इतने तगड़े माहौल के बाद भी वे ममता को पूर्ण बहुमत से आगे जाने से नहीं रोक पाए तो आगे उन्हें चुनौती देना बहुत मुश्किल है.

ममता को बंगाल की राजनीति में हिलाने केा बेहद ही मुश्किल बात मान लिया गया है, नेताओं की इसी मानसिकता की वजह से बीजेपी की जमीन दरकने लगी है और ममता की और मजबूत होती हा रही है, जिसकी पुष्टि इस लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव का परिणाम करता है.

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शत्रुघ्न सिन्हा की जीत बीजेपी के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसी

आसनसाेल सीट पर केवल टीएमसी की जीत ही नहीं बल्कि शत्रुघ्न सिन्हा की जीत भी बीजेपी के लिए बेहद चुभने वाला अनुभव है. यह बीजेपी के लिए जले पर नमक छिड़कने की तरह से है. सिन्हा 1991 में बीजेपी से जुड़े थे. पार्टी में उन्हें कई पद मिले. राज्यसभा सदस्य बनाया और केन्द्र में मंत्री रहे. पटना साहिब से लोकसभा चुनाव भी जीते.

2014 में उन्हें केन्द्र में मंत्री पद नहीं मिला तो बीजेपी से संबंध बिगड़ गए. 2019 में टिकट भी नहीं मिला तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था. बीजेपी में वह करीब 28 साल रहे. पर कांग्रेस में मात्र तीन साल ही टिक पाए. अब बीजेपी से भड़के हुए इन शत्रुघ्न सिन्हा काे संसद में जब-जब मौका मिलेगा तो वह बीजेपी के सदस्यों को आंखें दिखाकर कहेंगे, खामोश...

वे पिछले काफी समय से बीजेपी पर हमला करते रहे हैं. वह तो प्रधानमंत्री मोदी पर भी हमला करने से नहीं चूकते.

2019 में तो शत्रुघ्न भाजपा पर इतने भड़के हुए थे कि अपने बेटे लव सिन्हा को कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के नितिन नवीन के खिलाफ बांकीपुर से चुनाव लड़वाया, और पत्नी पूनम को केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ सपा के टिकट पर लखनऊ से उतारा. दोनों ही चुनाव हार गए थे. इस तरह से शत्रुघ्न के परिजनों को तो कांग्रेस, सपा का साथ रास नहीं आया पर टीएमसी के साथ ने उन्हें फिर से लोकसभा में पहुंचा दिया है.

बाबुल ने 2 लाख से जिताया, शॉटगन ने 3 लाख से हराया

आसनसोल के चुनाव पर जिस एक अन्य कारण से नजर थी वह थे कभी बंगाल भाजपा का लोकप्रिय चेहरा रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो. 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से बाबुल सुप्रियो केा बंगाल में बीजेपी का भविष्य माना जा रहा था और जब वहीं इस पार्टी को छोड़कर ममता के साथ हो लिए तो इससे बीजेपी के पश्चिम बंगाल अभियान को बहुत बड़ा झटका लगा.

उनके आसनसोल की सांसदी से इस्तीफा देने के बाद ही यहां उपचुनाव कराया गया था. 2019 में बाबुल सुप्रियो ने टीएमसी की उम्मीदवार मुनमुन सेन को दो लाख के आसपास वोटों से हराया था और इससे पांच साल पहले के चुनाव में वह यहां से टीएमसी की डोला सेन को भी तगड़ी शिकस्त दे चुके थे. ऐसी बड़ी जीतों को देखकर राजनीतिक जानकार मान रहे थे कि इस सीट पर अब बीजेपी का वोटबैंक मजबूती से तैयार हो चुका है और बाबुल के अलावा भी किसी अन्य बीजेपी उम्मीदवार को यहां से जीतने में कोई मुश्किल नहीं होगी.

शत्रुघ्न सिन्हा ने यहां इस बार के परिणाम में 3 लाख से अधिक मतों के अंतर से ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, जिसे बंगाल तो क्या किसी भी चुनाव में बदलते जनाधार का बहुत बड़ा उदाहरण माना जा सकता है.
एक तो ममता की पार्टी से हार, ऊपर से पुराने आचोलक शत्रुघ्न सिन्हा से पराजय, यह तो BJP के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा

बाबुल सुप्रियो

(फोटो: IANS)

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कई चुनावी समीकरण खिलाफ फिर भी जीत, मतलब दीदी के नाम पर वोट मिला

ममता बनर्जी ने जब शत्रुघ्न सिन्हा को आसनसोल सीट से लड़ाने की घोषणा की तो इस राज्य की राजनीति में प्रभावी रहने वाले कई सारे चुनावी समीकरण उनके खिलाफ जा रहे थे. जैसे कि इस राज्य में बाहरी और गैर बंगाली उम्मीदवारों के लिए तो खड़े होना ही मुश्किल हो जाता है, जीतने की तो बात ही दूर है. वह एक तो इस राज्य से बाहर से इंपोर्ट होकर आए थे और दूसरे वे 'बिहारी बाबू' थे 'बंगाली बाबू' नहीं, अर्थात इस इलाके से उनका कोई नाता नहीं था. सिन्हा के बीजेपी प्रतिद्वंद्वी अग्निमित्रा पॉल खुद को 'आसनसोल की बेटी' कहती थीं.वह तो आसनसोल इलाके की ही दक्षिण सीट से बीजेपी की एमएलए भी हैं. वहींं उनके मुकाबले शत्रुघ्न सिन्हा के आगे बंगाली आबादी में प्रभाव जमाने और बंगाली में संवाद करने जैसी कई समस्याएं थीं.

वहीं बीजेपी ने अपने प्रचार अभियान में कई स्टार प्रचारकों को लगा रखा था, जिनमें बंगाली आर्टिस्ट, अभिनेता तक शामिल थे. इन सब तथ्यों के बाद शॉटगन सिन्हा ने बीजेपी व बाकी पार्टियों केा मुकाबले से बाहर कर दिया तो इसे टीएमसी, ममता के जादू के तौर पर न देखा जाए तो और क्या कहा जाए.
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कहीं तीसरे नंबर पर न खिसक जाए बीजेपी

बीजेपी के लिए केवल टीएमसी ही नहीं, सीपीआई-एम भी एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आने लगी है. बंगाल में देा जगह हुए उप चुनाव संकेत देने लगे हैं कि कहींं बीजेपी इस राज्य में तीसरे नंबर पर न खिसक जाए. बालीगंज में टीएमसी उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो के बाद वहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की सायरा शाह हलीम बानो ने सबसे ज्यादा वोट हासिल किए.बीजेपी यहां थर्ड रही.

आसनसोल से सीपीआई-एम उम्मीदवार पार्थ मुखर्जी ने भी एक लाख के आसपास वोट पा लिए थे. 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के बाद इस राज्य में कई नगर निगमों और नगर पालिकाओं के लिए चुनाव हुए थे और उनमें सीपीआई-एम के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा अच्छे खासे वोट पाकर उपविजेता के रूप में उभरा था. इस पर बीजेपी को जल्द ध्यान देना चाहिए.

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