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शिवसेना का तंज- अब तो बेहोश व्यक्ति को प्याज सुंघाना भी मुश्किल

शिवसेना का तंज- प्‍याज सुंघाकर होश में लाया जाता है, अब वह भी संभव नहीं  

Published
भारत
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बढ़ती प्याज की कीमतों और अर्थव्यवस्था की बदहाली पर शिवसेना ने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. अपने मुखपत्र सामना में शिवसेना ने कहा है कि प्याज की कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई हैं और अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है. लेकिन सरकार ये मानने को तैयार नहीं है.

शिवसेना का तंज- प्‍याज सुंघाकर होश में लाया जाता है, अब वह भी संभव नहीं  
प्याज की कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई हैं.
(फोटो: पीटीआई)
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शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा कि हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है, अर्थव्यवस्था बीमार पड़ गई है, ऐसा मत रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने व्यक्त किया है. रघुराम अर्थव्यवस्था के बेहतरीन डॉक्टर हैं और उनके द्वारा किया गया नाड़ी परीक्षण योग्य ही है. मतलब देश की अर्थव्यवस्था को लकवा मार गया है यह साफ दिखाई दे रहा है.

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वित्त मंत्री का बयान बचकाना

शिवसेना ने सामना में वित्त मंत्री के बयान का भी जिक्र किया है. सामना में लिखा है - प्याज की कीमत 200 रुपए किलो हो गई. इस पर ‘मैं प्याज-लहसुन नहीं खाती इसलिए प्याज के बारे में मुझे मत पूछो’, ऐसा बचकाना जवाब देनेवाली वित्तमंत्री इस देश को मिली हैं तथा प्रधानमंत्री को इसमें सुधार करने की इच्छा दिखाई नहीं देती.

शिवसेना का तंज- प्‍याज सुंघाकर होश में लाया जाता है, अब वह भी संभव नहीं  
प्याज के आसमान छूते दाम पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में सफाई दी.
(फोटो : PTI)
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सामना ने आगे लिखा मोदी जब प्रधानमंत्री नहीं थे तब प्याज की बढ़ती कीमतों पर उन्होंने चिंता व्यक्त की थी. वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि ‘प्याज जीवनावश्यक वस्तु है. यदि ये इतना महंगा हो जाएगा तो प्याज को लॉकर्स में रखने का वक्त आ गया है. आज उनकी नीति बदल गई है. मोदी अब प्रधानमंत्री हैं और देश की अर्थव्यवस्था धराशायी हो गई है. बेहोश व्यक्ति को प्याज सुंघाकर होश में लाया जाता है. परंतु अब बाजार से प्याज ही गायब हो गया है इसलिए यह भी संभव नहीं है.
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गिरती अर्थव्यवस्था के पीछे नोटबंदी

सामना में नोबंदी को गिरती अर्थव्यवस्था के लिए जिम्मेदार बताया गया है. सामना में लिखा है- आज देश की अर्थव्यवस्था डांवांडोल है इसके पीछे नाकाम नोटबंदी का निर्णय मूल कारण है. गिने-चुने उद्योगपतियों के लिए अर्थव्यवस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है. बुलेट ट्रेन जैसी परियोजनाओं पर बेवजह जोर देकर आर्थिक भार बढ़ाया जा रहा है.

सत्ताधारी पार्टी को भारी चंदा देनेवालों की सूची सामने आई तो अर्थव्यवस्था में दीमक लगने की वजह सामने आती है. अधिकार शून्य वित्तमंत्री और वित्त विभाग के कारण देश की नींव ही कमजोर होती है. पंडित नेहरू और उनके सहयोगियों ने 50 वर्षों में जो कमाया उसे बेचकर खाने में ही फिलहाल खुद को श्रेष्ठ माना जा रहा है.

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हाथों में काम नहीं और पेट में अन्न नहीं

भुकमरी पर बीजेपी पर हमला करते हुए सामना ने लिखा आज परिस्थिति इतनी बिगड़ गई है कि भुखमरी के मामले में भारत की अवस्था आज नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी खराब हो गई है. इस बार ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ की बात करें तो 107 देशों की सूची में हिंदुस्तान सीधे 102 नंबर पर पहुंच गया है. 2014 में यह 55वें नंबर पर था. यानि की बाईट 5 वर्षों में भारत में भुखमरी तेजी से बढ़ी है तो नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान में कम हुई है.

‘हाथों में काम नहीं और पेट में अन्न नहीं’ ऐसी हमारे देश की आम जनता की अवस्था है और इसे ही विद्यमान शासक ‘विकास’ कह रहे हैं. हमारी अर्थव्यवस्था ‘बीमार’ है, परंतु मोदी सरकार उसे भी स्वीकार करने को तैयार नहीं.

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