‘शोले’ फिल्म में रहीम चाचा के डायलॉग ‘..... इतना सन्नाटा क्यों है भाई?’ का इस्तेमाल अब राजनीति में कटाक्ष करने के काम आ रहा है. महाराष्ट्र में बीजेपी की गठबंधन सहयोगी शिवसेना ने देश में आर्थिक सुस्ती को लेकर सोमवार को केंद्र सरकार पर हमला बोला है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में लिखा है, ‘‘.....इतना सन्नाटा क्यों है भाई????’’ इस डायलॉग के जरिए पार्टी ने देश और महाराष्ट्र में छायी आर्थिक सुस्ती को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है.
बता दें कि फिलहाल दोनों पार्टियों के बीच सरकार बनाने पर रस्साकशी चल रही है. महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर अबतक कोई फैसला नहीं हुआ है. ऐसे में शिवसेना के मुखपत्र में इस हेडलाइन के साथ एडिटोरियल छपना दोनों पार्टियों के रिश्ते की खींचतान को बता रहा है.
‘‘...इतना सन्नाटा क्यों है भाई?’’
‘शोले’ फिल्म में यह डायलॉग रहीम चाचा (एके हंगल) का है जब गब्बर सिंह (अमजद खान) बाहर नौकरी के लिए जा रहे उनके बेटे की हत्या कर उसकी लाश एक घोड़े पर रखकर गांव में भेजते है. उस दौरान सभी गांव वाले एकदम चुप हैं और खान चाचा सबसे सवाल करते हैं ‘.....इतना सन्नाटा क्यों है भाई?’
शिवसेना ने इस डायलॉग के जरिए देश में आर्थिक सुस्ती और त्योहारों के मौके पर बाजारों से गायब रौनक के लिए सरकार के नोटबंदी और गलत तरीके से जीएसटी को लागू करने को जिम्मेदार बताया है.
सामना में लिखा है,
‘‘सुस्ती के डर से बाजारों की रौनक चली गयी है और बिक्री 30 से 40 प्रतिशत की कमी आयी है. उद्योगों की हालत खराब है और विनिर्माण इकाइयां बंद हो रही हैं, इससे लोगों की नौकरियां जा रही हैं.’’
“बैंकों की हालत खराब”
मराठी अखबार ‘सामना’ ने लिखा है कि कई बैंकों की हालत खराब है, वे वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं और लोगों के पास खर्च करने को पैसा नहीं है.‘सामना’ ने लिखा है,
‘‘दूसरी ओर सरकार भी भारतीय रिजर्व बैंक से धन निकालने को मजबूर हुई है. दीवाली पर बाजारों में सन्नाटा छाया है, लेकिन विदेशी कंपनियां ऑनलाइन शॉपिंग साइटों के माध्यम से देश के पैसे से अपनी तिजोरियां भर रही हैं.’’
संपादकीय में लिखा है, बेवक्त हुई बारिश के कारण किसानों की तैयार फसल खराब हो गयी जिससे उनकी माली हालत खराब है. लेकिन बदकिस्मती है कि कोई भी किसानों को इससे बाहर निकालने की नहीं सोच रहा है.’’
संपादकीय में दावा किया है गया कि यहां तक कि दिवाली से ऐन पहले हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भी शोर कम और ‘सन्नाटा’ ज्यादा था.
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