कश्मीर में लंबे अंतराल के बाद किसी पत्रकार को निशाना बनाया गया है. लेकिन सीनियर पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या से पहले ऐसे पत्रकारों की एक लंबी लिस्ट है जिन पर हमले हुए और कई को जान भी गंवानी पड़ी.
बुखारी के खुद के शब्दों में कहें तो “घाटी में पत्रकार दो तरह के खतरों के साथ काम करते हैं. अगर वो सुरक्षा बलों की अत्याचार को उजागर करे तो उसे राष्ट्र विरोधी करार दिया जाता है. अगर वो उग्रवादियों के खिलाफ लिखे तो वो तहरीक विरोधी बन जाता है.
जिस मुश्किल का जिक्र बुखारी ने किया वो उन हत्याओं में दिखाई देती है. जानिए उन पत्रकारों को जिनको कश्मीर में काम करते हुए जान गंवानी पड़ी.
अल्ताफ अहमद फक्तू - 1 जनवरी 1997
श्रीनगर में दूरदर्शन के एंकर फक्तू की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी. फक्तू को कई बार कई बार धमकियां मिलीं. आतंकवादियों को लगता था कि फक्तू सरकार के प्रति नरम हैं. Committee to Protect Journalists (CPJ के मुताबिक उनका 1994 में अपहरण भी किया गया था. लेकिन उन्होंने अपना काम जारी रखा. वो कश्मीर पर एक कार्यक्रम किया करते थे जो पूरे देश में टेलीकास्ट होता था सिर्फ कश्मीर को छोड़कर.
अशोक सोढ़ी - 11 मई 2008
एक कश्मीरी अखबार में बतौर फोटोजर्नलिस्ट काम कर रहे अशोक सोढ़ी की कश्मीर के सांबा में सेना और उग्रवादियों के बीच हो रही गोलीबारी में मौत हो गई.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक उग्रवादियों ने कुछ लोगों को बंधक बना रखा था और वो सेना पर लगातार गोलियां चला रहे थे जिसमें सोढ़ी समेत सात लोगों की मौत हुई.
2015 में जम्मू प्रेस क्लब ने सोधी के सम्मान में फोटोजर्नलिस्ट अवॉर्ड की शुरुआत की.
आसिया जिलानी - 20 मई 2004
आसिया जिलानी मानवाधिकार पर लिखने वाली स्वतंत्र पत्रकार थी. कुपवाड़ा के ग्रामीण इलाकों में चुनाव के लिए जा रही टीम जिस गाड़ी से जा रही थी उसमें बम रखा गया था. विस्फोट में वहां मौजूद आसिया की भी मौत हो गई.
गुलाम मोहम्मद लोन - 29 अगस्त 1994
गुलाम मोहम्मद लोन ग्रेटर कश्मीर के लिए लिखने वाले स्वतंत्र पत्रकार थे जिनकी हमलावरों ने उनके घर पर गोली मार कर हत्या कर दी. लोन के साथ उनके सात साल के बेटे पर भी गोलियां चलाई गई. श्रीनगर पुलिस के मुताबिक हमलावर अलगाववादी थे.
हालांकि शुजात बुखारी ने एक आर्टिकल में लिखा कि लोन की हत्या सुरक्षा बलों ने की और वो 1990 में CRPF की गिरफ्त से भाग भी चुके थे.
मुश्ताक अली - 10 सितंबर 1995
मुश्ताक अली अंतराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी एएफपी के फोटोग्राफर और कैमरामैन थे. अली की मौत 1995 में एक बम धमाके में हुई. उन्हें बम एक पार्सल में भेजा गया था जो उनके हाथ में फट गया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वो पार्सल बीबीसी और रॉयटर्स के रिपोर्टर युसुफ जमील के लिए था जो गलती से मुश्ताक के पास पहुंच गया.
अली के बायें हाथ, चेहरे और पेट पर गहरी चोटें आई जिससे तीन दिन बाद उनकी मौत हो गई.
परवेज मोहम्मद - 31 जनवरी 2003
परवेज मोहम्मद न्यूज एंड फीचर अलायंस (NAFA) के एडिटर थे जो कि एक स्वतंत्र न्यूज एजेंसी है. बुखारी की ही तरह उनके श्रीनगर के ऑफिस में उनपर अज्ञात हमलावरों ने गोलियां चला दी जिसके बाद उनकी मौत हो गई.
CPJ ने अपनी रिपोर्ट में AP के हवाले से लिखा की परवेज एक हमलावर से बात कर रहे थे जिसने उनके सिर पर गोली मार दी. पुलिस के मुताबिक इस हमले के पीछे उग्रवादियों का हाथ था हालांकि आभी तक इस पर कोई जांच नहीं हुई है.
प्रदीप भाटिया - 10 अगस्त 2000
हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकार प्रदीप भाटिया उन 12 लोगों में थे जिनकी श्रीनगर बम धमाके में मौत हुई थी. खबरों के मुताबिक भाटिया के साथ 6 और पत्रकारों की भी धमाकों में मौत हुई थी. इस धमाके की जिम्मेदारी हिजबुल मुजाहिद्दीन ने ली थी.
आतंकियों ने सेंट्रल श्रीनगर में स्थित स्टेट बैंक के गेट के पास ग्रेनेड फेंका जिससे मीडिया वाले वहां आएं, फिर 15 मिनट बाद पास खड़ी एक कार में बम धमाका हुआ जिसमें वहां मौजूद सभी मीडियाकर्मियों की मौत हो गई.
सैदान शफी - 16 मार्च 1997
सैदान शफी दूरदर्शन के रिपोर्टर थे जिनकी श्रीनगर में दो अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी. रिपोर्ट के मुताबिक शफी के कार्यक्रम में अलगाववादियों की निंदा की गई थी. उन्हें भी इससे पहले कई बार धमकियां दी जा चुकी थी.
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