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शुजात बुखारी के बेटे का लेटर, इस जालिम दुनिया में फिट नहीं थे पापा

‘मेरे पापा जैसे सच्चे आदमी के साथ किसी ने ऐसा क्यों किया’

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जम्मू कश्मीर के पत्रकार और राइजिंग कश्मीर के चीफ एडिटर शुजात बुखारी की पिछले हफ्ते श्रीनगर में हत्या कर दी गई थी. एक हफ्ते बाद अब उनके बेटे तहमीद बुखारी ने एक इमोशनल लेटर लिखा है. राइजिंग कश्मीर में प्रकाशित इस लेटर में 10वीं में पढ़ने वाले तहमीद ने अपना दर्द बयां किया है. तहमीद ने लिखा है-

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इस लेटर को पढ़ने की बजाय सुनना पसंद करेंगे? यहां क्लिक कीजिए

“14 जून मेरे लिए और मेरे परिवार के लिए एक भयानक दिन था. इस दिन मैंने अपने पिता के असमय मौत की दुखद खबर सुनी. पीसीआर में बैठकर जब मैं श्रीनगर हॉस्पिटल पहुंचा तब मैंने किसी को कहते हुए सुना, "अब वह नहीं रहे." जिस समय मैंने यह सुना मेरे पांव कांपने लगे, लेकिन मैं मन ही मन उम्मीद कर रहा था कि ऐसा नहीं हो, सबकुछ ठीक हो जाएगा.

मेरे दिमाग में एक साथ हजारों विचार चल रहे थे. क्या पता वो अब भी ऑपरेशन थिएटर में हो? क्या पता वो भागते हुए मेरे पास आएंगे और मुझे गले लगा लेंगे. हालांकि होनी को कुछ और ही मंजूर था. उनकी आत्मा ने उनका साथ छोड़ दिया था.

‘मेरे पापा जैसे सच्चे आदमी के साथ किसी ने ऐसा क्यों किया’

मैं अबतक समझ नहीं पा रहा हूं कि मेरे पापा जैसे सच्चे आदमी के साथ किसी ने ऐसा क्यों किया. उस वक्त हजारों लोग पीसीआर के पास जमा होने लगे. दोस्तों, शुभचिंतकों और परिवारवालों के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी. मैं तब भी उदासी में था और अपना दर्द छिपाने की कोशिश कर रहा था जब मैं अपने पापा के शव के साथ अपने पैतृक गांव के लिए निकला.

जिस वक्त मैं एबुलेंस के अंदर रो रहा था, मुझे ऐसा लग रहा था कि काश वे उठ खड़े होंगे और मुझे गले लगा लेंगे. पापा सिद्धान्तों वाले आदमी थे. यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूं. मेरे पिता हजारों नफरत करने वाले लोगों से घिरे रहते थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी के लिए कड़वे शब्द नहीं बोले. 
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‘दूसरों की हमेशा मदद करते थे’

पापा अपने ऑफिस के लोगों से कर्मचारियों की तरह नहीं बल्कि अपने परिवार की तरह व्यवहार करते थे. उन्होंने अपने कर्मचारियों को हमेशा एक अच्छा इसांन बनने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.

वह दूसरों की मदद करते थे. 2014 में जब कश्मीर में बाढ़ आई तब उन्होंने घर पर समय बिताने के बजाए बाढ़ में फंसे हजारों बेसहारा लोगों की मदद की. पापा ने हमें कभी नहीं बताया कि उन्होंने कई परिवारों की मदद की. वह एक ऐसे बेटे थे जिन्होंने अपने अच्छे कामों से अपने माता-पिता का नाम ऊंचा किया है.

उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी शांति के लिए काम किया और इसी के लिए अपनी जान भी दे दी. उन्हें आशा थी कि एक दिन कश्मीर में मासूम लोगों को अपनी जान नहीं गवानी पड़ेगी. 
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कश्मीरी भाषा से काफी लगाव था. उन्हें अपनी मातृभाषा से प्रेम था. काफी सालों से उनका सपना था कि कश्मीर के स्कूलों में 10वीं तक बच्चों को कश्मीरी पढ़ाई. उनका ये सपना जून 2017 में पूरा हुआ.

‘हमारे परिवार का तीसरा सदस्य मारा गया’

वह दूसरों की मदद करने में विश्वास करते थे. भौतिकवादी वस्तुओं की उनमें कोई इच्छा नहीं थी. कश्मीर में शांति लाने के लिए उन्होंने कई संगठनों के साथ दुनिया के हर इलाके में हजारों सम्मेलनों में भाग लिया.

1990 में सेना और आतंकवादियों की क्रॉसफायरिंग में उनके दो चचेरे भाइयों की मौत हो गई थी. और अब कश्मीर की उथल-पुथल में हमारे परिवार का तीसरा सदस्य मारा गया.

उनकी विरासत काफी विशाल हैं. मुझे नहीं पता कि मैं कैसे उनकी उम्मीदों पर खरा उतर पाऊंगा. वो हमेशा चाहते थे कि मैं उनके पिता सैयद रफिउद्दीन बुखारी की तरह धार्मिक और दयालु बनूं.

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‘इस जालिम दुनिया में फिट नहीं थे’

कश्मीर की अंग्रेजी पत्रकारिता ने कई महान रिपोर्टर, संपादक और कुछ हीरो दिए, लेकिन शहीद कभी नहीं. मेरे पिता ने इस कमी को पूरा कर दिया है. वो हमेशा निष्पक्ष रहे, यहां तक कि उन्होंने अपने भाई का भी पक्ष नहीं लिया जो राजनीति में हैं.

हर चीज से उनका एक इमोशनल रिश्ता था, शायद यही कारण है कि लोग उन्हें इतना प्यार करते थे. और इसी वजह से केवल 10 सालों में ही ‘राइजिंग कश्मीर’ जम्मू-कश्मीर का सबसे प्रोमिनेंट और पसंदीदा न्यूजपेपर बन गया.

दो साल पहले उन्हों स्ट्रोक का सामना करना पड़ा था. शायद उस समय भी वो दुनिया छोड़ सकते थे. लेकिन अल्लाह ने उन्हें अपने पास बुलाने के लिए रमजान के जमात उल विदा जैसे पाक दिन को चुना.

इस जालिम दुनिया में वह फिट नहीं थे. उनके जैसे पवित्र इंसान को अल्लाह अपने साथ चाहते हैं. अल्लाह उन्हें जन्नत में सबसे ऊंची जगह बख्शे.”

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