अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर पंजबी सिंगर सिद्धू मूसे वाला की हत्या Sidhu Moose Wala Murder को लेकर पंजाब पुलिस जिस थ्योरी पर काम रही है वह यह है कि मर्डर पंजाब में दो गैंगों के बीच होने वाली होड़ का हिस्सा है. यानी उनकी (मूसे वाला) हत्या पंजाब के दो गैंगों की आपसी होड़ की वजह से हुई है. इसमें जिन दो गैंगों का नाम सामने आ रहे हैं उसमें से एक लॉरेंस बिश्नोई गैंग है (जिसमें लकी बरार भी शामिल है) वहीं दूसरी दविंदर बंबिहा गैंग है, जो इस समय लकी पटियाल के नेतृत्व में चल रही है.
मूसे वाला की हत्या को दो गैंगों के बीच हुई हत्याओं की एक सीरीज से जोड़ते हुए प्रस्तुत किया जा रहा है. जिसकी शुरुआत 2016 में सरपंच रवि ख्वाजके की मौत से हो सकती है. मौत की इस लिस्ट में और भी नाम शामिल हैं जैसे 2017 में लवी देवड़ा का मर्डर, 2020 में गुरलाल बराड़, 2021 में गुरलाल पहलवान और विक्की मिड्दुखेड़ा. वहीं 2022 में संदीप नंगल अंबिया.
लॉरेंस बिश्नोई गैंग के इस तथ्य को देखते हुए कि उसका मुखिया मकोका मामले से जुड़े रहने की वजह से वर्तमान में दिल्ली की तिहाड़ जेल में है, दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल भी इस मामले (मूसे वाला हत्याकांड) में काफी नजदीक से शामिल है. वह इस बात का स्पष्टीकरण खोज रहे हैं कि आखिर मर्डर की घटना को कैसे अजांम दिया गया.
इसे देखते हुए यहां दो अहम सवाल खड़े होते हैं.
क्या मर्डर (मूसे वाला की हत्या) केवल इस वजह से हुआ कि बिश्नोई और बंबिहा गुटों के बीच आपसी तकरार थी?
जबकि मूसे वाला का किसी भी गुट से कोई लेना-देना नहीं था (पुलिस के खुद के बयान के अनुसार) ऐसे में उनको (मूसे वाला) निशाना क्यों बनाया गया?
हम पंजाब पुलिस या दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की थ्योरी पर सवाल खड़े नहीं कर रहे हैं लेकिन हमारा मानना है कि इन दो सवालों को पूरी तरह से समझने के लिए हमें पंजाब में सामूहिक हिंसा के व्यापक क्रोनोलॉजी को देखने की जरूरत पड़ सकती है.
हम पंजाब में सक्रिय कुछ प्रमुख गैंगस्टरों के अस्तित्वों को देखते हुए क्रोनोलॉजी को रेखांकित करने का प्रयास करेंगे. इन गैंगस्टरों में हम प्रमुखता से उनके बारे में बात करेंगे जो विशेष रूप से फिरोजपुर, फाजिल्का, फरीदकोट, श्री मुक्तसर साहिब और बठिंडा के पश्चिमी मालवा जिलों में काम करते हैं.
आइए हम कहानी की शुरुआत सिद्धू मूसे वाला के 'मालवा ब्लॉक' गाने से करते हैं, जिसमें पंजाब के पहले बड़े गैंगस्टर डिंपी चांदभान का जिक्र किया गया था.
"इंडस्ट्री छो तुक्क सलमान वरगी
6 फुट’आन च्छेणी 12 बोर वरगा
नि टेद्दी पग्ग बनने डिंपी चांदभान वरगी"
यानी
(म्यूजिक इंडस्ट्री में शोहरत सलमान खान जैसी है
सेमी-ऑटोमैटिक 12 बोर गन की तरह ऊंचाई 6 फीट है
डिंपी चांदभान की तरह झुकी हुई पगड़ी पहनता है)
डिंपी चांदभान (Dimpy Chandbhan)
ऐसा कहा जाता है कि पंजाब में ऑर्गनाइज्ड गैंगों (संगठित गुट या गिरोहों) की कहानी की शुरुआत फरीदकोट जिले के चांदभान गांव के प्रभजिंदर सिंह डिंपी उर्फ डिंपी चांदभान से हुई थी. 1985 में पंजाब विश्वविद्यालय के छात्र नेता माखन सिंह की हत्या के सिलसिले में उनका (डिंपी का) नाम सामने आया था, लेकिन उस मामले में डिंपी को दोषी नहीं ठहराया गया था.
चांदभान एक छात्र नेता यानी स्टूडेंट लीडर था, कथित तौर शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत सिंह मान के साथ इसके (डिंपी) काफी करीबी संबंध थे. 1989 के लोकसभा चुनावों में मान की पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया और कहा जाता है कि वह पंजाब की राजनीति में एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी.
हालांकि, बाद में पंजाब में चुनाव स्थगित किए जाने और पुलिस की कड़ी कार्रवाई से बाधा आई और मान की पार्टी के बढ़ते कदम थम गए. ऐसे में चांदभान का राजनीतिक करियर भी छोटा हो गया और उसे अपने राज्य से भागकर उत्तर प्रदेश में शरण लेनी पड़ी. जहां वह मुख्तार अंसारी जैसे लोगों के संपर्क में आया.
उत्तर प्रदेश में उस (डिंपी) पर जबरन वसूली और अपहरण जैसे आरोप लगे और बाद में उसे कर्नाटक से एक हीरा व्यापारी के अपहरण की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
इसके बाद उसे दिल्ली और फिर हरियाणा लाया गया लेकिन वह पुलिस हिरासत से भाग निकला, हालांकि महज कुछ साल बाद ही उसे एक अन्य मामले में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया.
आखिरकार 2004 में डिंपी चांदभान को बठिंडा जेल से रिहा किया गया. कहा जाता है कि रिहाई वक्त उसके स्वागत व अगुवाई में 500 से ज्यादा वाहन पहुंचे थे.
चंडीगढ़ में लेक क्लब के पास 2006 में गोली मारकर उसकी हत्या कर दी गई. चांदभान पर गोली चलाने और मारने का आरोप उसके ही पूर्व सहयोगी जसविंदर सिंह रॉकी उर्फ रॉकी फाजिल्का पर लगा था, लेकिन बाद में कोर्ट द्वारा उसे बरी कर दिया गया था.
रॉकी फाजिल्का (Rocky Fazilka)
शुआत में राॅकी फाजिल्का ने डिंप चांदभान के साथ काफी करीब रहते हुए काम की शुरु किया था लेकिन बाद में उसने खुद की गैंग बनाते हुए शेरा खुबन, जयपाल और विक्की गौंडर के साथ मिलकर अपहरण और जबरन वसूली जैसी वारदातों को अंजाम दिया. सन 2000 के बाद पंजाब में रियल एस्टेट के क्षेत्र में बहार आने और संघर्ष में कमी आने की वजह से इंडस्ट्रीज में फिर नई जान आ गई. इस दौर में रॉकी फाजिल्का जैसे गैंगस्टर भी जमकर फले-फूले.
बेंगलुरु में निर्मल जयपुरिया के अपहरण की योजना बनाने के आरोप में चांदभान के साथ रॉकी को भी जेल में डाल दिया गया था. ऐसा कहा जाता है कि चांदभान के साथ रॉकी हरियाणा की जेल से भाग गया था, लेकिन पंजाब लौटने के तुरंत बाद दोनों के संबंध टूट गए थे यानी दोनों अलग हो गए थे.
चांदभान की हत्या के बाद रॉकी ने पंजाब के संगठित अपराध स्थल पर राज किया. बाद में रॉकी ने आपराधिक गतिविधियों से दूरी बना ली और राजनीति की ओर अपने कदम बढ़ा लिए. हालांकि वह लक्खा सिधाना और लॉरेंस बिश्नोई जैसे प्रमुख गैंगस्टरों को नियंत्रित करता रहा.
वहीं शेरा खुब्बन और विक्की गौंडर जैसे पिछले सहयोगियों के साथ रॉकी के संबंध टूट गए. उन्होंने हाईवे डकैती के आरोपी जयपाल सिंह के साथ हाथ मिलाया.
इसी दौरान रॉकी फाजिल्का ने भी अपना विस्तार करते हुए शराब कारोबारी शिवलाल डोडा और शिरोमणि अकाली दल के नजदीकी हो गए. रॉकी और डोडा दोनों राजनीति की ओर चल निकले और क्रमश: फाजिल्का और अबोहर को अपना मैदान बना लिया. रॉकी के बारे में कहा जाता था कि वह राय सिख समुदाय के एक प्रमुख नेता और वरिष्ठ अकाली नेता शेर सिंह घुबाया का करीबी था. घुबाया इन दिनों कांग्रेस में हैं.
रॉकी के बारे में कहा जाता है कि उसने 2011 की बाढ़ के बाद फाजिल्का जिले में राहत कार्यों में मदद की थी.
2012 के चुनाव में रॉकी फाजिल्का से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था लेकिन वह बीजेपी के सुरजीत कुमार ज्ञानी से हार गया था. हलांकी SAD शिअद उस समय बीजेपी की सहयोगी पार्टी थी लेकिन उसके कार्यकर्ताओं के बारे में कहा जाता है कि वे रॉकी को सपोर्ट कर रहे थे.
मामला इतना गंभीर हो गया था कि सुखबीर बादल को रॉकी के लिए प्रचार करने वालों को पार्टी से बाहर निकालने की धमकी देनी पड़ी. डोडा ने अबोहर से चुनाव लड़ा था लेकिन वह सुनील कुमार जाखड़ से हार गया था. सुनील उस वक्त कांग्रेस के साथ थे.
एक दलित युवा भीम टंक की हत्या के मामले में रॉकी का नाम सामने आने के बाद उसके और डोडा के संबंध टूट गये थे और रॉकी ने डोडा के खिलाफ प्रचार भी किया था.
2016 में जब रॉकी सोलन से चंडीगढ़ जा रहा था तब हिमाचल प्रदेश के परवाणू में नाटकीय अंदाज में रॉकी फाजिल्का की हत्या कर दी गई थी. सोशल मीडिया पर विक्की गौंडर और जयपाल दोनों ने ही रॉकी के मर्डर का श्रेय लिया था और कहा था कि यह शेरा खुब्बन के एनकाउंटर का बदला है. 2012 में कथित तौर पर रॉकी के सहयोगियों द्वारा टिप गई थी जिसके आधार पर पुलिस मुठभेड़ में शेरा मारा गया था.
राजनीति में प्रवेश करने के अलावा रॉकी बाबाओं-गुरुओं में काफी विश्वास रखता था. फाजिल्का स्थित अपने घर में उसने कई बाबाओं-गुरुओं की मेजबानी की थी. गौंडर ने अपने फेसबुक पेज पर रॉकी फाजिल्का की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बारे में तंज कसते हुए लिखा था कि "क्या आप अभी विधायक बन गए हैं?".
रॉकी की राजनीतिक विरासत को उसकी बहन राजदीप कौर आगे बढ़ा रही हैं. शुरुआत में वे SAD शिअद में थी उसके बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली. इस समय वह कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस में हैं.
विक्की गौंडर (Vicky Gounder)
गौंडर का नाम हरजिंदर सिंह भुल्लर है. इसका जन्म श्री मुक्तसर साहिब जिले के सरवन बोड़ला गांव में हुआ था. गौंडर का नाम हरजिंदर सिंह भुल्लर है. इसका जन्म श्री मुक्तसर साहिब जिले के सरवन बोड़ला गांव में हुआ था. इसका निक नेम विक्की था, विक्की ग्राउंड पर काफी समय बिताता था इसी वजह से उनके नाम के साथ 'गौंडर' जुड़ गया. वह डिस्कस थ्रो का राज्य स्तरीय खिलाड़ी था.
विक्की एक प्रोफेशनल प्लेयर बन सके इसके लिए उसके पिता ने उसे गवर्नमेंट आर्ट्स एंड स्पोर्ट्स कॉलेज, जालंधर भेजा था. लेकिन शहर जाकर विक्की गौंडर अपराधियों के संपर्क में आ गया जिसमें लवली बाबा, प्रेमा लाहौरिया और सुखा कहलवान जैसे नाम शामिल थे. 2010 में कहलवान ने लवली बाबा और गौंडर को मार डाला तब लाहौरिया ने बदला लेने की प्रतिज्ञा की और 5 साल 2015 में फगवाड़ा में कहलवान को मौत के घाट उतार दिया.
दिलचस्प बात यह है कि आपराध का दामन थामने से पहले लाहौरिया भी पूर्व खिलाड़ी थे. वे बाधा दौड़ के एथलीट थे.
प्रेमा ने 2016 में नाभा जेलब्रेक में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस घटना में गौंडर सहित अन्य गैंगस्टर गुरप्रीत सेखों, नीता देओल और अमनदीप धोतियन के अलावा खालिस्तान समर्थक हरिमदर मिंटू और कश्मीर सिंह गलवंडी भी जेल से भाग निकले थे.
जेलब्रेक की घटना ने गौंडर और उसके साथियों को पंजाब के मोस्ट वांटेड गैंगस्टरों की सूची में डाल दिया. वहीं रॉकी फाजिल्का की हत्या के फौरन बाद गौंडर के गुट का सरगना जयपाल सिंह विशेष रूप से अंडरग्राउंड हो गया.
2018 में पंजाब-राजस्थान सीमा के पास एक मुठभेड़ में गौंडर और लाहौरिया मारे गए. इस समय उनके गैंग का मुखिया गुरप्रीत सेखों मुंडकी है जो फिलहाल जेल में बंद है.
एक अन्य प्रमुख किरदार रमनजीत रोमी है जो इस समय हांगकांग की जेल में हैं और प्रत्यर्पण का सामना कर रहा है. उस पर पुलिस ने पंजाब के दो हिंदू नेताओं की टारगेट किलिंग में शामिल होने के साथ-साथ पंजाब के गैंगस्टरों और पाकिस्तान के ISI के बीच एक कड़ी के तौर पर काम करने का भी आरोप लगाया है.
हांगकांग में अपने बचाव में बात करते हुए रोमी ने कहा है कि ये आरोप झूठे हैं. उसका कहना है कि भारत सरकार उसे इसलिए टारगेट कर रही है क्योंकि वह "खालिस्तान के विचारों का समर्थन करने एक युवा सिख" है.
जयपाल सिंह भुल्लर (Jaipal Singh Bhullar )
जयपाल सिंह भुल्लर एक पुलिसकर्मी का बेटा था. गौंडर और लाहौरिया की तरह वह भी एक एथलीट था. जसपाल नेशनल लेवल का प्लेयर था, वह हैमर थ्रो इवेंट में हिस्सा लेता था. 2003 में उसने सरकार द्वारा संचालित लुधियाना की स्पोर्ट्स अकादमी को ज्वॉइन किया था. 2004 में उसने पहला अपराध किया तब उसने लुधियाना के एक सिनेमा हॉल मालिक के बेटे का अपहरण किया था.
हाई प्रोफाइल लूटों को लेकर वह काफी प्रसिद्ध रहा. रॉकी फाजिल्का से अलग होने के बाद जयपाल ने शेरा खुब्बन, विक्की गौंडर, प्रेमा लाहौरिया, गुरप्रीत सेखों और अन्य के साथ मिलकर अपना गैंग बना लिया.
रॉकी की मौत के बाद भुल्लर ने फेसबुक में इस बात का दावा किया था कि उसने ही रॉकी को मारा है और यह खुब्बन की मौत का बदला है.
कहा जाता है कि है कि रॉकी की मौत के बाद शोहरत हासिल करने वाले गौंडर के विपरीत, जयपाल अंडरग्राउंड हो गया था. सोशल मीडिया में रॉकी की मौत का श्रेय लेने के बाद वहां (सोशल मीडिया) पर भी जयपाल के पोस्ट काफी अनियमित हो गए थे.
हालांकि उसके बारे में कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश के बनूर में 1.33 करोड़ रुपये की लूट का मास्टरमाइंड जयपाल ही था.
2020 में लुधियाना में 30 किलो सोने की डकैती के साथ एक बार फिर उसने (जयपाल ने) पंजाब में अपनी गतिविधि बढ़ा दी. जयपाल और उसके तीन साथियों पर लुधियाना के पास जगराओं में दो पुलिसकर्मियों की कथित रूप से हत्या करने का मामला मई 2021 में दर्ज किया गया था.
जून 2021 में पंजाब और पश्चिम बंगाल पुलिस के संयुक्त अभियान में भुल्लर को एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया था.
लॉरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi)
लॉरेंस बिश्नोई का जन्म पंजाब के फिरोजपुर जिले (इस समय फाजिल्का जिले में) के धतरंवाली में एक संपन्न परिवार में हुआ था. लॉरेंस ने डीएवी कॉलेज, चंडीगढ़ से पढ़ाई की थी. एक दशक पहले वह पंजाब विश्वविद्यालय के छात्र संगठन (SOPU) का अध्यक्ष भी था. वह बिश्नोई समुदाय से आता है, जोकि राजस्थान में अधिक हैं.
उसके समुदाय (बिश्नोई) में उसकी फॉलोइंग अच्छी-खासी है. चूंकि बिश्नोई समुदाय काले हिरण को बहुत सम्मान देता है इसलिए इसके बारे में कहा जाता है कि संपत नेहरा के साथ इसने काला हिरण मामले का बदला लेने के लिए बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान को मारने की योजना बनाई थी.
बिश्नोई ने प्रमुख रुप से हरियाणा में काला जत्थेदी और सुब्बे गुर्जर, राजस्थान में आनंद पाल सिंह और दिल्ली में जितेंद्र गोगी के साथ गठबंधन करते हुए पूरे उत्तर भारत में अपने समूह का विस्तार किया.
2016 में 30 वर्षीय बिश्नोई को गिरफ्तार किया गया था. उस पर हत्या, हत्या के प्रयास, जबरन कब्जा करना, हमला करना, जबरन वसूली और डकैती सहित कम से कम दो दर्जन मामलों के आरोप हैं. गिरफ्तारी के बाद बिश्नोई राजस्थान की भरतपुर जेल में बंद था, लेकिन एक साल पहले महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) केस के संबंध में उसे दिल्ली की मंडोली जेल में लाया गया था उसके बाद उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया. फिलहाल वह तिहाड़ में ही बंद है.
बिश्नोई और उसके मुख्य सहयोगी जेल में हैं. वहीं उसका एक अन्य साथी गोल्डी बरार है. जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह कनाडा में है और इसने ही कथित तौर पर फेसबुक पोस्ट के जरिए हाई-प्रोफाइल हत्या (मूसे वाला मर्डर) की जिम्मेदारी ली थी. कथित फेसबुक पोस्ट के अनुसार मूसे वाला को कथित तौर पर "विकी मिड्दुखेरा की हत्या का बदला लेने" के लिए टारगेट किया गया था. विकी मिड्दुखेरा अकाली दल का एक युवा नेता था, जिसकी अगस्त 2021 में हत्या कर दी गई थी.
दविंदर बंबिहा (Davinder Bambiha)
दविंदर बंबिहा का पूरा नाम दविंदर सिंह सिद्धू है. मोगा जिले के बंबिहा भाई गांव में इसका जन्म हुआ था. वह पढ़ने में अच्छा था और कबड्डी का बेहतरीन खिलाड़ी था. स्थानीय झगड़े के दौरान हुई हत्या में उसका नाम आने के बाद उसे जेल भेज दिया गया था. जेल में उसकी कई गैंगस्टरों से मुलाकात हुई. जब वह महज 21 साल का था तब उसने अपनी गैंग बना ली थी.
बांबिहा और उसके साथी कई तरह के अपराध करने के बाद जल्दी ही ख्याति प्राप्त करने लगे थे.
बांबिहा को न केवल अपराध करने में मजा आता था, बल्कि उसे सोशल मीडिया पर उनके (अपराधों) बारे में डींगें हांकने में भी मजा आता था.
अफवाह तो यह भी है कि उसने एक बार कहा था कि 'यदि आप इस क्षेत्र में हत्या की जिम्मेदारी नहीं ले सकते हैं तो उस मर्डर को मेरे नाम दे दीजिए.'
सितंबर 2016 में बठिंडा जिले के रामपुरा फूल के पास पुलिस ने मुठभेड़ में बंबिहा को ढेर कर दिया था.
चाहे रॉकी फाजिल्का हो, जयपाल हो या लॉरेंस बिश्नोई हो उस समय बंबिहा गैंग बाकी की गैंगों से अलग व स्वतंत्र थी. लेकिन उसकी गैंग विक्की गौंडर के साथ "आपसी सम्मान के संबंध" के लिए जानी जाती है.
बांबिहा गैंग पहले दिलप्रीत बाबा और सुखप्रीत 'बुद्ध' के नेतृत्व में काम करती थी. इस समय यह गैंग आर्मेनिया स्थित गैंगस्टर गौरव 'लकी' पटियाल के नेतृत्व में ज्यादा प्रमुखता से काम कर रही है.
गैंगस्टर नीरज बवाना और टिल्लू ताजपुरिया दिल्ली और हरियाणा में बंबिहा गैंग के साथ मिलकर काम करते हैं. इनका कौशल चौधरी गैंग के साथ भी संबंध है.
जैसा कि पहले बताया गया है बंबिहा गैंग लॉरेंस बिश्नोई के नेतृत्व वाले क्राइम सिंडिकेट का सीधा प्रतिद्वंद्वी है. इसके साथ ही दोनों पक्षों के बीच हत्याओं की एक श्रृंखला रही है, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जो सीधे गैंग से जुड़े नहीं हैं.
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों गैंग के बीच रंजिशें कब से शुरू हुई हैं.
लेकिन कथित तौर 2016 में बंबिहा गैंग द्वारा सरपंच रवि ख्वाजके की हत्या और 2017 में बिश्नोई गिरोह द्वारा लवी देवड़ा की हत्या के बारे में कहा जाता है कि यहीं से दोनों गुटों के बीच हिंसा की शुरुआत हुई थी. यह पहली घटना थी.
इस सीरीज में हुई अन्य हत्याओं के बारे में कहा जाता है कि 2020 में गुरलाल बराड़, 2021 में युवा कांग्रेस नेता गुरलाल पहलवान और युवा अकाली नेता विक्की मिद्दुखेड़ा और 2022 में कबड्डी खिलाड़ी संदीप नंगल अंबिया की हत्या इसी श्रृंखला में हुई थी.
अंबिया पंजाब के माझा क्षेत्र में बिश्नोई गैंग के सहयोगी जग्गू भगवानपुरिया द्वारा आयोजित कबड्डी लीग का एक प्रमुख सितारा था.
इस तथ्य के बावजूद कि मूसे वाला का बंबिहा गैंग से कोई संबंध नहीं था फिर भी मूसे वाला की हत्या को इस गैंग वार को जोड़ा जा रहा है.
जब मूसे वाला ने अमृत मान के साथ 'बमीभा बोले' गाना रिलीज किया तब कुछ लोगों ने यह आरोप लगाए थे कि यह गाना दविंदर बंबिहा को एक श्रद्धांजलि है. हालांकि, यह सरासर अटकल या अनुमान हो सकता था.
हरविंदर रिंदा (Harvinder Rinda)
2018 में सिंगर परमीश वर्मा पर हुए हमले के पीछे बांबिहा गैंग के दिलप्रीत बाबा और एक अन्य गैंगस्टर हरविंदर रिंदा का हाथ बताया जाता है.
ऐसा कहा जाता है कि हमले के बाद दोनों अलग हो गए थे. मूलत: तरन तारन का रहने वाला रिंदा का परिवार महाराष्ट्र के नांदेड़ चला गया.
पुलिस के अनुसार रिंदा फिलहाल पाकिस्तान में है. पुलिस का आरोप है रिंदा तरन तारन में अपने एक रिश्तेदार की हत्या में शामिल था. जिस समय यह हत्या हुई थी उस समय रिंदा महज 18 वर्ष का था. नांदेड में भी वह (रिंदा) जबरन वसूली में शामिल हो गया उस आरोप हैं कि वहां उसने दो लोगों की हत्या कर दी थी. महाराष्ट्र के मामलों ने उसे पंजाब लौटने पर मजबूर कर दिया था. उसके (रिंदा) दो रिश्तेदारों हरजिंदर सिंह और दिलप्रीत के साथ-साथ रिंदा के खिलाफ कथित तौर पर जबरन वसूली और हत्या के तीन मामले हैं.
पुलिस का मानना है कि नवंबर 2021 में नवांशहर स्थित अपराध जांच एजेंसी के कार्यालय पर हुए हमले में रिंदा शामिल था. पिछले महीने मोहाली में ग्रेनेड हमले के साथ-साथ करनाल में आईईडी के साथ हुई गिरफ्तारी के संबंध में भी उसका नाम सामने आया था. हालांकि इन दोनों मामलों की अभी भी जांच की जा रही है. वहीं तीनों मामलों में रिंदा के खिलाफ आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है.
मूसे वाला मर्डर के बारे में यह सब हमें क्या बताता है?
अब काफी हद तक यह संभव है कि मूसे वाला की हत्या इसलिए की गई क्योंकि बिश्नोई-बराड़ गिरोह को उस पर विक्की मिड्दुखेड़ा की हत्या में शामिल होने का संदेह था. लेकिन हमें व्यापक संदर्भ को ध्यान में रखना होगा.
मूसे वाला की हत्या ऐसे समय में हुई जब बिश्नोई क्राइम सिंडीकेट उत्तर भारत में संगठित अपराध में खुद को प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है.
पुलिस मुठभेड़ों में शेरा खुब्बन, दविंदर बांबिहा, विक्की गौंडर, प्रेमा लाहौरिया और जयपाल भुल्लर जैसे कई प्रतिद्वंद्वियों के खत्म होने का फायदा भी बिश्नोई और उसके सहयोगियों को मिला है.
हालांकि बिश्नोई गैंग को भी गिरफ्तारियों का भी सामना करना पड़ा है जिसमें खुद बिश्नोई, काला जत्थेदी और संपत नेहरा जैसे नाम शामिल है. लेकिन इस गैंग को अपने प्रतिद्वंद्वीयों जैसे जयपाल-गौंडर और बंबिहा गैंग की तुलना में पुलिस एनकाउंटर्स का सामना कम करना पड़ा है. इस मामले में अंकित भादु का एनकाउंटर अपवाद है.
एक अन्य पहलू यह भी है कि बिश्नोई के कुछ विरोधियों जैसे रमनजीत रोमी और हरविंदर रिंदा पर भी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पाकिस्तान की आईएसआई के साथ शामिल होने का आरोप लगाया जाता है. इस वजह से उन्हें विभिन्न एजेंसियों द्वारा की जाने वाली बारीक जांचों का सामना भी करना पड़ता है.
इन सबके बावजूद भी बिश्नोई गैंग को वो मेनस्ट्रीम सपोर्ट नहीं मिला है जैसा कि रॉकी फाजिल्का जैसी शख्सियत को मिला था. बिश्नोई गैंग रॉकी फाजिल्का के आस-पास भी नहीं है.
अब मूसे वाला की हत्या के बाद आक्रोश के कारण इस समूह को कम से कम पंजाब में ज्यादा तनाव का सामना करना पड़ा सकता है. बिश्नोई गैंग के खिलाफ कड़ी व सख्त कार्रवाई के लिए राज्य सरकार और पुलिस पर जनता का भारी दबाव होगा.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बिश्नोई पंजाब पुलिस द्वारा उसे राज्य में वापस लाने के सभी प्रयासों का विरोध कर रहा है और दिल्ली में खुद को सुरक्षित मान रहा है.
जवाबी हत्याओं में बांबिहा और गौंडर गिरोह जैसे प्रतिद्वंद्वी गैंग के लिप्त होने की संभावना है. सिंगर मनकीरत औलख को पहले ही धमकियां मिल चुकी हैं.
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