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Sitaram Yechury: "आप सीताराम येचुरी से सहमत हों या न हों, लेकिन उनको पसंद न करना असंभव था"

सारे दोस्त उन्हें "सीता" के नाम से जानते थे, उन्होंने भारतीय राजनीति पर एक अमिट छाप छोड़ी है.

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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) - सीपीआई (एम) के कद्दावर महासचिव सीताराम येचुरी (Sitaram Yechury) की मौत की खबर ने उनके कई दोस्तों और प्रशंसकों को सदमे में डाल दिया है.

सीताराम येचुरी और मैं एक ही कॉलेज से थे - दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज में लेकिन तब मैं उन्हें नहीं जानता था वह मुझसे लगभग तीन साल सीनियर थे. लेकिन एक बार जब हम संयुक्त राष्ट्र (UN) के महासचिव पद के लिए चुनाव के दौरान मिले (जिसमें उनकी पार्टी ने भी मेरी उम्मीदवारी का समर्थन किया), तो वह मेरे दोस्त बन गए और उनके निधन तक हम दोस्त बने रहे.

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सारे दोस्त उन्हें "सीता" के नाम से जानते थे, उन्होंने भारतीय राजनीति पर एक अमिट छाप छोड़ी है.

12 अगस्त 1952 को चेन्नई में जन्मे येचुरी का एक छात्र नेता से सीपीआई (एम) के महासचिव तक का सफर उनके समर्पण और नेतृत्व का प्रमाण है. वे आंध्र प्रदेश के काकीनाडा के मूल निवासी सर्वेश्वर और कल्पकम येचुरी के घर जन्मे, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में जाने से पहले 1969 में अपने शुरुआती साल हैदराबाद में बिताए.

सीताराम येचुरी पढ़ाई में काफी अच्छे थे. वे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम रैंक हासिल कर चुके हैं. उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की और बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री पूरी की.

यह जेएनयू ही था जिसने उनकी राजनीतिक दिशा तय की जब 1974 में वह सीपीआई (एम) की छात्र शाखा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में शामिल हो गए. उनका नेतृत्व कौशल तेजी से सामने आया और उन्हें 1977 और 1978 में तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में चुना गया. येचुरी की राजनीतिक यात्रा तब शुरू हुई जब वह आपातकाल के दौरान अंडरग्राउंड हो गए लेकिन आखिर में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.

आपातकाल के बाद, सीपीआई (एम) में सीता का उदय तेजी से हुआ. वह 1984 में केंद्रीय समिति के सदस्य बने और 1992 में पोलित ब्यूरो के लिए चुने गए. उनके रणनीतिक कौशल, मिलनसार व्यक्तित्व और बोलने के अच्छे तरीके ने उन्हें पार्टी में एक प्रमुख व्यक्ति बना दिया.

2005 में, उन्हें पश्चिम बंगाल में राज्यसभा के लिए चुना गया और उन्होंने 2017 तक वहां सेवा की, कई कॉमरेड चाहते थे कि राज्यसभा में उनकी वापसी हो लेकिन पार्टी के आदेश पर उनका संसदीय करियर खत्म हो गया.

जब मैं 2006 में उनसे मिला, तो वह पहले से ही अपने जेएनयू कॉमरेड प्रकाश करात के वास्तविक सह-नेता थे (वे मुझसे पार्टी मुख्यालय में एक साथ मिले थे जब यूपीए सरकार ने मुझसे संयुक्त राष्ट्र में भारत के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में अपना परिचय देने के लिए कहा था)

2015 में येचुरी करात के बाद सीपीआई (एम) के महासचिव बने. उनके नेतृत्व में, पार्टी चुनौतीपूर्ण समय से गुजरी, जिसमें सीपीआई (एम) के पूर्व गढ़ बंगाल और त्रिपुरा में चुनावी असफलताएं और बढ़ते आंतरिक असंतोष शामिल थे.

येचुरी, जो खुद एक मिलनसार व्यक्ति थे, अपने मिलनसार व्यवहार और आकर्षक शैली के लिए जाने जाते थे; इसमें कोई संदेह नहीं था कि वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का मुकाबला करने के लिए अन्य विपक्षी दलों के साथ गठबंधन बनाने के प्रयासों पर कहां खड़े थे, हालांकि उनके वैचारिक लचीलेपन को उनकी पार्टी के कट्टरपंथियों द्वारा हमेशा समर्थन नहीं मिला.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय राजनीति में सीताराम येचुरी का योगदान उनकी पार्टी से कहीं अधिक है. उनके हर तरीके के विचारों के प्रति खुलेपन का व्यक्तिगत मुझे तब देखने को मिला, जब हम दोनों ने भारतीय विश्व मामलों की परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में काम किया.

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उन्होंने यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहां उन्होंने और वामपंथियों ने प्रमुख नीतिगत निर्णयों को प्रभावित किया और यूपीए संयोजक सोनिया गांधी का विश्वास जीता. सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और श्रमिकों के अधिकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने एक स्थायी विरासत छोड़ी है, लेकिन यह उनका मिलनसार व्यवहार, हाजिरजवाबी और संक्रामक मुस्कान है जिसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा.

चाहे आप वैचारिक रूप से उनसे सहमत हों या न हों, लेकिन सीताराम येचुरी को पसंद न करना असंभव था. येजुरी की आवाज थोड़ी कर्कश थी क्योंकि वो लंबे समय तक चेन स्मोकर रहे हैं, शायद इस वजह से उनकी आवाज में बेस था, जब वह अपनी ऐसी आवाज में सौम्य शब्दों का इस्तेमाल कर बात करते थे वह उन्हें संसद और उसके बाहर सभी का प्रिय बनाता था. उनका जीवन और करियर उनके सिद्धांतों और अपनी पार्टी के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब था.

एक छात्र नेता से एक राष्ट्रीय राजनीतिक हस्ती तक का उनका सफर कई लोगों के लिए प्रेरणा है. एक नेता के रूप में, उन्होंने शालीनता, गर्मजोशी और अखंडता के साथ समर्पण और सामाजिक न्याय की निरंतर खोज की विरासत छोड़ी है.

तीन साल पहले, मैंने उनसे तब संपर्क किया था जब उनके बेटे आशीष की कोरोना के कारण दुखद और असामयिक निधन हो गया था. मुझे इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि तीन साल बाद ही उनके अपने फेफड़े जवाब दे देंगे.

सीता के परिवार में अब उनकी प्रतिभाशाली पत्रकार पत्नी सीमा चिश्ती और बेटी अखिला रह गई हैं. येचुरी के व्यक्तिगत अनुभवों - जिसमें उनके बेटे की मौत भी शामिल है - ने उनके दृष्टिकोण और राजनीति के प्रति उनके दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया और सहानुभूति और लचीलेपन पर जोर दिया.

उनके जीवन की कहानी सिर्फ राजनीतिक उपलब्धियों में से एक नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत ताकत और अपने मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता की भी है. पूरे राजनीतिक परिदृश्य में उनकी बहुत कमी खलेगी.

(शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अंडर सेक्रेटरी जनरल, कांग्रेस सांसद और लेखक हैं. उनसे @ShashiTharoor पर संपर्क किया जा सकता है.)

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