कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) को लेकर आर्टिकल लिखा है. अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में छपे इस आर्टिकल में सोनिया ने मनरेगा को एक क्रांतिकारी और तर्कसंगत बदलाव का जीता जागता उदाहरण बताया है.
उन्होंने लिखा है, ''यह (मनरेगा) क्रांतिकारी बदलाव का सूचक इसलिए है क्योंकि इस कानून ने गरीब से गरीब व्यक्ति के हाथों को काम और आर्थिक ताकत देकर भूख और गरीबी पर प्रहार किया. यह तर्कसंगत है क्योंकि यह पैसा सीधे उन लोगों के हाथों में पहुंचाता है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है.''
सोनिया ने लिखा है, ‘’विरोधी विचारधारा वाली केंद्र सरकार के 6 साल में और उससे पहले भी, लगातार मनरेगा की उपयोगिता साबित हुई है. मोदी सरकार ने इसकी आलोचना की, इसे कमजोर करने की कोशिश की, लेकिन अंत में मनरेगा के लाभ और सार्थकता को स्वीकारना पड़ा.’’
सोनिया है लिखा है, ‘’अनिच्छा से ही सही, मोदी सरकार इस कार्यक्रम (मनरेगा) का महत्व समझ चुकी है. मेरा सरकार से निवेदन है कि यह वक्त देश पर छाए संकट का सामना करने का है, न कि राजनीति करने का.’’
मनरेगा के बारे में बताते हुए सोनिया ने लिखा है, ''देश की संसद से सितंबर, 2005 में पारित मनरेगा कानून एक लंबे जन आंदोलन और सिविल सोसायटी की तरफ से उठाई जा रही मांगों का नतीजा है. कांग्रेस पार्टी ने जनता की इस आवाज को सुना और अमलीजामा पहनाया.'' इसके आगे उन्होंने बताया, ''इसका एक सरल सिद्धांत है: भारत के गांवों में रहने वाले किसी भी नागरिक को अब काम मांगने का कानूनी अधिकार है और सरकार द्वारा उसे न्यूनतम मजदूरी के साथ कम से कम 100 दिनों तक काम दिए जाने की गारंटी होगी. इसकी उपयोगिता बहुत जल्द साबित भी हुई...मनरेगा की शुरुआत के बाद 15 सालों में इस योजना ने लाखों लोगों को भूख और गरीबी के कुचक्र से बाहर निकाला है.''
सोनिया ने महात्मा गांधी की एक बात का जिक्र करते हुए लिखा है, ''महात्मा गांधी ने कहा था- जब आलोचना किसी आंदोलन को दबाने में विफल हो जाती है, तो उस आंदोलन को स्वीकृति और सम्मान मिलना शुरू हो जाता है. स्वतंत्र भारत में महात्मा गांधी की इस बात को साबित करने का मनरेगा से ज्यादा अच्छा उदाहरण और कोई नहीं.''
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