पब्लिसिटी तो खूब मिली, लेकिन अयोध्या के मसले पर श्रीश्री रविशंकर ने बड़ा तीर मार दिया हो, ऐसा होता दिख नहीं रहा. इस मामले में श्रीश्री की मुलाकात यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी हुई. लेकिन दूसरे ही दिन सीएम योगी ने यह कहकर ताजा पहल की हवा निकाल दी कि अब मध्यस्थता में देर हो चुकी है.
योगी ने कहा कि 5 दिसंबर से सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई शुरू होने वाली है, तो फिर मध्यस्थता का क्या औचित्य है?
इस मुद्दे पर सरकारें बनती और गिरती रहीं
कई दशकों से चल रहा अयोध्या मामला कभी भी सामान्य नहीं रहा. 1989 के बाद तो ये मुद्दा और भी गंभीर हो गया, जब इसी की बदौलत सरकारें बनती और गिरती रहीं. आज भी ये मुद्दा बीजेपी के लिए तुरुप का पत्ता जैसा है. ऐसे में बीजेपी इस मुद्दे को आसानी से क्यों छोड़ना चाहेगी या फिर किसी का हस्तक्षेप क्यों बर्दाश्त करेगी?
योगी सरकार के एक सीनियर लीडर का कहना है, ''ये सिर्फ क्रेडिट लेने की होड़ है. साथ ही जिस मुद्दे पर इतने दिनों से विवाद चल रहा है, उसे भुनाने की चाहत है. इतने दिनों तक कहां थे श्रीश्री?''
उन्होंने कहा, ''कोर्ट में सुनवाई शुरू होने में चंद दिन ही बचे हैं. जो काम 25 साल में नहीं हो पाया, वो 15 दिनों में कैसे होगा? अगर होने की कोई जगह बचती भी है, तो योगी इसकी मध्यस्थता क्यों नहीं करना चाहेंगे?''
बुधवार को श्रीश्री रविशंकर योगी से मिले थे. खबरें यही बाहर आईं कि अयोध्या मुद्दे पर दोनों की मुलाकात हुई थी, लेकिन इस मुलाकात की गंभीरता ज्यादा समय तक नहीं ठहर पाई, क्योंकि दूसरे ही दिन योगी ने दो टूक कह दिया कि मुलाकात तो हुई पर अयोध्या मुद्दे पर कोई गम्भीर बातचीत नहीं हुई.
श्रीश्री को लगा झटका
जाहिर है कि योगी के बयान से श्रीश्री को माहौल का अंदाजा लग गया. श्रीश्री को झटका सिर्फ योगी ने ही नहीं दिया, बल्कि अयोध्या में भी उन्हें कुछ ऐसे ही माहौल से गुजरना पड़ा. कहीं अंदर, तो कहीं बाहर मुखर विरोध होता रहा.
कभी अयोध्या आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने भी श्रीश्री की मध्यस्थता पर असंतोष जताते हुए चुप्पी साध ली. अयोध्या मामले से जुड़े अधिकतर नेता इस पर मौन हैं.
अयोध्या मुद्दे से जुड़े राम विलास वेदांती ने कह दिया, ‘’श्रीश्री कौन होते हैं मध्यस्थता करने वाले? उन्हें अपना धंधा करना चाहिए, वे तो विदेशी चंदा इकट्ठा करने में लगे हैं. हमलोगों ने अयोध्या के लिए जीवन लगा दिया. हमसे ज्यादा कौन जानता है यहां के बारे में?’’
मुस्लिम पक्ष का शर्तों के साथ सहयोग
दूसरी ओर, मुस्लिम पक्षकार बड़ी ही सतर्कता से सधे अंदाज में शर्तों के साथ श्रीश्री को सहयोग की बात कह रहे हैं. बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने बताया कि श्रीश्री मिलने आये थे, लेकिन अयोध्या मुद्दे पर उनके पास कोई ऐसा फॉर्मूला नहीं था, जिस पर बात हो सके. उन्होंने कहा, ''उनके साथ इतनी भीड़ थी कि लगा ही नहीं कि वो बात करने आये हैं. ये सिर्फ एक मुलाकात भर थी.''
बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना है कि श्रीश्री का तो साधु भी विरोध कर रहे हैं. जब भी चुनाव आता है, किसी न किसी तरह से अयोध्या मुद्दे को गरमाने की कोशिशें शुरू होती हैं.
वहीं हाजी महबूब ने कहा कि सही तरीके से कुछ होगा, तो वो सहयोग करेंगे. मस्जिद की जमीन छोड़कर कहीं भी मंदिर बने, हमें कोई आपत्ति नहीं है.
राजधानी लखनऊ के ऐशबाग ईदगाह स्थित इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के मुख्यालय में मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली से मुलाकात के बाद श्रीश्री ने इतना जरूर कहा कि बातचीत के जरिए हर समस्या का हल हो सकता है.
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