एल्गार परिषद केस (Elgar Parishad Case) में आरोपी फादर स्टेन स्वामी (Stan Swamy) का 5 जुलाई को निधन हो गया था. आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट को 4 जुलाई को ही वेंटीलेटर पर रखा गया था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने स्वामी के निधन पर शोक व्यक्ति किया है. मैं पेशे से एक क्रिमिनल लॉयर हूं और स्टेन स्वामी के साथ हुए बर्ताव पर मैंने 'न हुआ उलगुलान का अंत...' शीर्षक से एक कविता लिखी है.
आज जब उधेड़ा जाएगा तुम्हारा पार्थिव शरीर,
क्या देखेंगे ये समाज, सरकारें, और न्यायपालिका?
डली भर ईमानदारी, आदिवासी संघर्षों के प्रति
चंद लेख, चिन्हित करते अन्याय के किस्से
और विचाराधीन कैदियों की आजादी का एक छोटा सा गीत.
फिर परसों जब बगाईचा तक लाई जाएगी तुम्हारी राख
आंगन में स्थित बिरसा मुंडा की मूरत से रूबरू होगे तुम
तब उलगुलान की आग फिर होगी ज्वलंत
क्योंकि न बिरसा कभी मरा था,
न हुआ उलगुलान का अंत.
जब सत्ता के गलियारों में तुम्हें फिर “आतंकी” कहा जाएगा
और न्यायपालिका पुलिस के झूठों पर फिर भरेगी हामी
तभी झारखंड के पेड़ों और नदियों से उछलेंगे नारे
कहीं एक कलम भी उठेगी तुम्हारी याद में
क्योंकि न तुम कभी गए,
न हुआ उलगुलान का अंत.
कौन थे फादर स्टेन स्वामी ?
मूल रूप से केरल के रहने वाले फादर स्टेन स्वामी झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता थे. कई वर्षों से राज्य के आदिवासी और अन्य वंचित समूहों के लिए काम रहे थे.
समाजशास्त्र से एमए करने के बाद उन्होंने बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टिट्यूट में काम किया. उसके बाद झारखंड आ गए. शुरुआती दिनों में पादरी का काम किया. फिर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे.
बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना की. ये संगठन आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है. स्टेन स्वामी रांची के नामकुम क्षेत्र में आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल और टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भी चलाते थे.
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