पॉक्सो के एक केस में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा आरोपी को बरी किए जाने वाले फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी मांगी है.
अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में इस मामले को उठाया था. अटॉर्नी जनरल ने सवाल उठाते हुए इसे खतरनाक बताया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए आरोपी को बरी करने पर भी रोक लगा दी है. CJI ने कहा कि हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी तलब करेंगे.
19 जनवरी 2021 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि किसी नाबालिग की ब्रेस्ट को बिना 'स्किन टू स्किन' कॉन्टैक्ट के छूना POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा. इस फैसले में आरोपी को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था, जो पॉक्सो के तहत आरोपी था. कोर्ट ने आरोपी को बरी करने का आधार इस बात को बनाया था कि उसका बच्ची के साथा सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ है.
ट्रायल कोर्ट ने एक 39 साल के शख्स को 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने के अपराध में 3 साल की सजा सुनाई थी, जिसे कोर्ट ने संशोधित किया था. आरोपी बच्ची को कुछ खिलाने का लालच देकर अपने घर ले गया था जहां उसने बच्ची का ब्रेस्ट छुआ और उसकी सलवार उतारने की कोशिश की.
क्या है पूरा मामला?
हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने आदेश में कहा था कि किसी भी छेड़छाड़ की घटना को यौन शोषण की श्रेणी में रखने के लिए घटना में ‘यौन इरादे से किया गया स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट’ होना चाहिए.
हाईकोर्ट ने आरोपी को पॉक्सो एक्ट से बरी कर बस IPC के सेक्शन 354 के तहत सजा बरकरार रखी थी. सेक्शन 354 के तहत दोषी को एक साल की सजा होती है, वहीं POCSO एक्ट 3 साल की सजा का प्रावधान करता है.
दरअसल, इस केस में कोर्ट के सामने मेन मुद्दा ये था कि क्या 'प्रेसिंग ऑफ ब्रेस्ट' और 'सलवार को हटाने की कोशिश' POCSO एक्ट के सेक्शन 7 में परिभाषित सेक्सुअल असॉल्ट की परिभाषा के तहत आती है और क्या ये सेक्शन 8 के तहत दंडनीय है?
POCSO एक्ट सभी तरह के यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों के हितों की रक्षा करता है और एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है.
सेक्शन 7 के तहत कैटगराइजेशन के लिए ये 2 चीजें जरूरी हैं- सेक्सुअल इंटेंट यानी इरादा और अगर कोई किसी नाबालिग के ब्रेस्ट, वजाइना,लिंग या एनस को छूता है या फिर किसी बच्चे से अपने या किसी और के शरीर के इन हिस्सों को स्पर्श कराता है, या फिर पेनीट्रेशन के अलावा भी यौन इरादे के साथ शारीरिक संपर्क वाली कोई क्रिया कराता है तो इसे यौन शोषण माना जाएगा.
लेकिन इस मामले में कोर्ट ने कहा कि यौन शोषण की परिभाषा में ‘शारीरिक संपर्क’ की बात के तहत ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट होना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि 'पॉक्सो एक्ट के तहत दी जाने वाली सजा को देखते हुए, कोर्ट को लगता है कि इसके लिए मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोपों की जरूरत है. 12 साल की बच्ची के ब्रेस्ट दबाने की घटना, इस सबूत के अभाव में कि उसका टॉप हटाया गया था या नहीं या फिर आरोपी ने अपने हाथ टॉप के अंदर डाले थे या नहीं, यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आ सकती. ये किसी लड़की या महिला की शीलता भंग करने की आपराधिक घटना हो सकती है.'
कोर्ट ने इस केस में पाया भी कि आरोपी ने असल में लड़की के स्तन को दबाया था, फिर भी सेक्शन के शाब्दिक व्याख्या का सहारा लिया कि वहां स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट नहीं था, इसलिए सेक्शन 7 के तहत ये "सेक्सुअल असॉल्ट" नहीं था.
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