झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी का कैथोलिक सोसाइटी ही नहीं सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी विरोध करना शुरू कर दिया था. इनका कहना है कि 83 साल के फादर स्टेन स्वामी अपने जीवन में वंचितों के अधिकारों के लिए काम करते रहे.
कौन थे फादर स्टेन स्वामी ?
मूल रूप से केरल के रहने वाले फादर स्टेन स्वामी झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता रहे. कई वर्षों से राज्य के आदिवासी और अन्य वंचित समूहों के लिए काम करते रहे. समाजशास्त्र से एमए करने के बाद उन्होंने बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टिट्यूट में काम किया. उसके बाद झारखंड आ गए. शुरुआती दिनों में पादरी का काम किया. फिर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे. बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना की. ये संगठन आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है. स्टेन स्वामी रांची के नामकुम क्षेत्र में आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल और टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भी चलाते थे.
फादर स्टेन के किए गए कामः
फादर स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन से जुड़े रहे जिसने 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन चलाया था जिसके बाद चाईबासा में बांध बनना रुका.
बोकारो, संथाल परगना और कोडरमा जिले के आदिवासियों के बीच काम किया.
2010 में फादर स्टेन स्वामी की किताब आयी जिसका नाम है-जेल में बंद कैदियों का सच. इस किताब में यह उल्लेख किया गया था कि कैसे आदिवासी नौजवानों को नक्सली होने के झूठे आरोपों में जेल में डाला गया.
2014 में उनकी एक और रिपोर्ट सामने आई जिसमें कहा गया कि तीन हजार गिरफ्तारियों में 98 फीसदी मामलों में आरोपी का नक्सल आंदोलन से कोई संबंध नहीं निकला. इसके बावजूद ये नौजवान जेल में बंद रहे.
फादर स्टेन स्वामी 1996 में बने पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल्ड एरियाज एक्ट) को दरकिनार करने का मुद्दा भी उठाते रहे हैं. यह वह कानून है जिसके तहत पहली बार आदिवासी समुदायों को ग्राम सभा के माध्यम से स्वशासन का अधिकार दिया गया.
स्टेन स्वामी पर क्या आरोप लगे
स्टेन स्वामी पर पत्थलगढ़ी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे. झारखंड की खूंटी पुलिस ने स्टेन स्वामी समेत 20 लोगों पर राजद्रोह का केस भी दर्ज किया था.
एनआईए के एक अधिकारी ने आरोप लगाया कि स्टेन स्वामी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं. इसके फ्रंटल संगठन (पीपीएससी ) के संयोजक हैं. सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं. संगठन का काम बढ़ाने के लिए उन्होंने एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल किए. एक अन्य अधिकारी ने बताया कि सीपीआई (माओवादी) का प्रोपेगेंडा फैलाने, इसकी प्रचार सामग्री और साहित्य उनके कब्जे से मिला था.
स्टेन स्वामी का क्या कहना है?
झारखंड जनाधिकार महासभा ने यूट्यूब पर एक वीडियो डाला है. 6 अक्टूबर को स्टेन स्वामी ने कुछ बातें बताईं थीं, जिसे 8 अक्टूबर को उनकी गिरफ्तारी वाले दिन सार्वजनिक किया गया. इसमें वह कहते हैं, "मैं स्टेन स्वामी हूं, एनआईए मेरे पीछे लगी है. सरकार मुझे रास्ते से हटाने की कोशिश कर रही है. उसका पहला मौका था भीमा-कोरेगांव, जबकि मैं कभी भीमा-कोरेगांव गया भी नहीं. लेकिन मुझे संदिग्धों की सूची में डाल दिया गया. दो बार रेड की गई. "
एनआईए ने मुझसे 15 घंटे पूछताछ की. मेरे सामने ऐसे कई दस्तावेज रखे, जो कथित तौर पर मेरा संबंध माओवादियों से दिखाते हैं. उन लोगों ने दावा किया कि ये दस्तावेज और जानकारियां मेरे कंप्यूटर से मिली हैं. तब मैंने उन्हें कहा कि यह साजिश है. ऐसे दस्तावेज चोरी से मेरे कंप्यूटर में डाले गए हैं- स्टेन स्वामी
स्टेन स्वामी ने कहा था कि मुझसे कहा जा रहा है कि मैं बॉम्बे (मुंबई) जाऊं. मैं 83 साल का हूं. मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है. वैसे भी झारखंड सरकार ने कोरोना को देखते हुए 65 साल से अधिक की उम्र के लोगों को सार्वजनिक स्थान पर जाने से रोका हुआ है, वे वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये हर सवाल का जवाब दे देंगे. लेकिन उनकी कोई दलील नहीं मानी गई और 8 अक्टूबर की रात उनकी गिरफ्तारी हो गई.
दरअसल सरकार जल-जंगल और जमीन की लूट के खिलाफ खड़े हर व्यक्ति को नक्सलियों से जोड़ कर दिखाना चाहती है ताकि पूरे आंदोलन का दमन किया जा सके. जबकि लड़ाई सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने की हो रही है.
यह सत्ता पोषित कॉरपोरेट लूट के खिलाफ लड़ाई है जो ऐसी गिरफ्तारियों से शायद ही रुके.
गिरफ्तारी का विरोध
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि गरीबों, वंचितों और आदिवासियों की आवाज उठाने वाले 83 साल के वृद्ध ‘स्टेन स्वामी’ को गिरफ्तार कर केंद्र की भाजपा सरकार क्या संदेश देना चाहती है? उन्होंने कहा कि अपने विरोध की हर आवाज को दबाने की ये कैसी जिद?
स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने एक ट्वीट में कहा, ‘अस्सी वर्ष से अधिक उम्र के पादरी, जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में बिताया, उनके साथ जो किया गया वह स्तब्ध करने वाला और निंदनीय है.’
वकील और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, ‘पता चला कि एनआईए फादर स्टेन स्वामी को उनके रांची स्थित आश्रम से जबरदस्ती ले गई. उनसे अधिक सज्जन और विनम्र व्यक्ति की कल्पना करना भी मुश्किल है. ’
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा कि फादर स्टेन स्वामी ने अपना पूरा जीवन आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ते हुए बिताया है. इसलिए मोदी सरकार ऐसे लोगों को चुप कराना चाहती है, क्योंकि इस सरकार के लिए कोयला खनन कंपनियों को लाभ पहुंचाना, आदिवासियों के जीवन और रोजगार से ज्यादा महत्वपूर्ण है.
फिल्मकार एवं पत्रकार प्रीतीश नंदी ने कहा कि यह बहुत ही पीड़ादायक है कि 80 साल से अधिक उम्र के पादरी, जो आदिवासी अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, उन्हें महामारी के काल में गिरफ्तार कर लिया गया.
सामाजिक कार्यकर्ता दयामणि बरला का कहना है कि केंद्र सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली है. केंद्र सरकार अर्बन नक्सलवाद के नाम पर देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले बुद्धिजीवी को प्रताड़ित कर रही है और स्वामी को मामले पर फंसाने की कोशिश की गई.
NIA की कार्रवाई का समर्थन
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और त्रिपुरा के प्रभारी सुनील देवधर ने एनआईए की कार्रवाई का समर्थन करते हुए कहा था, ‘यह अच्छी बात है कि एनआईए ने भीमा-कोरेगांव मामले में स्टेन स्वामी को गिरफ्तार कर लिया. वह प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य हैं. इससे ईसाई मिशनरियों और शहरी नक्सलियों के बीच संबंधों के बारे में और खुलासे हो सकेंगे.’
भीमा कोरेगांव का मामला क्या है?
महाराष्ट्र में पुणे के भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी 2018 को दलित समुदाय के लोगों का एक कार्यक्रम हुआ. यलगार परिषद ने इस सम्मेलन का आयोजन किया. इस दौरान हिंसा भड़क उठी थी. भीड़ ने तमाम वाहन जला दिए थे. दुकानों-मकानों में तोड़फोड़ की गई थी. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई, कई लोग जख्मी हो गए. इस मामले में माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
एनआई ने गुरुवार को भीमा कोरेगांव मामले में ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी को गिरफ्तार कर लिया था. 83 साल के स्वामी को रांची (झारखंड) के नामकुम के बगाईचा स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया है. स्वामी का नाम उन आठ लोगों में शामिल है, जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित साजिश रचने और भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा को कथित तौर पर भड़काने के आरोप हैं.
(ये स्टोरी 11 अक्टूबर 2021 को पहली बार पब्लिश हुई थी, स्टेन स्वामी के निधन पर हम इसे फिर से रीपब्लिश कर रहे हैं)
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