ADVERTISEMENTREMOVE AD

सुब्रत रॉय की राजनीति से दुश्मनी-यारी, यह है अनूठे और विवादित सहारा साम्राज्य की कहानी

Subrat Roy Passes Away: कई नावों में सवार होने की महत्वाकांक्षा ही इस तेजतर्रार शख्स की आर्थिक बर्बादी का कारण बनी

Published
भारत
5 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

भारत ने सहारा (Sahara) नेटवर्क की कंपनियों के प्रमुख सुब्रत रॉय (Subrata Roy) जैसा दिलचस्प उद्योगपति न तो कभी देखा है, और न ही आने वाले वक्त में कभी देखेगा. इसी हफ्ते 75 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.

रॉय के पास राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट्स, फिल्मी सितारों, खिलाड़ियों और मीडिया से दोस्ती करने और उन्हें प्रभावित करने की जबरदस्त काबिलियत थी. साथ ही कायदे-कानूनों की धज्जियां उड़ाने और विवादों में फंसने की फितरत भी. इन्हीं खासियतों ने सुब्रत रॉय को पिछले तीन दशकों में एक अनूठी और बेजोड़ शख्सियत बनाया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कई नावों में सवार होने की महत्वाकांक्षा ही इस तेजतर्रार शख्स की आर्थिक बर्बादी का कारण बनी. रॉय हमेशा सुर्खियों में रहे, और अब अखबारों में हमेशा याद किए जाएंगे.

0

बड़े, और मुश्किल में फंसे कारोबार को लेकर उनका अजीबो-गरीब नजरिया

हालांकि प्रिंट मीडिया, टेलीविजन शो, वेबसाइट्स और यहां तक कि नेटफ्लिक्स सीरियल बैडबॉय बिलियनर्स ने सुब्रत रॉय के कई कारनामों का खुलासा किया लेकिन कुछ ऐसा है जो पब्लिक डोमेन में नहीं है. जिससे मैं वाकिफ हूं. वह यह कि इतने बड़े, और मुश्किलों में फंसे कारोबार को लेकर सुब्रत रॉय का रवैया बहुत अनोखा था.

2007 में सुब्रत रॉय ने दुनिया की एक बड़ी फाइनेंशियल रिस्क और एडवाइजरी फर्म के साथ अनुबंध किया. दरअसल रॉय ने जिस कंपनी के साथ अनुबंध किया था वह कंपनी उन कंपनियों की जांच करती है जिसमें कोई निवेश या उसका अधिग्रहण कर रहा हो. रॉय चाहते थे कि फाइनेंशियल रिस्क और एडवाइजरी फर्म उनकी और उनकी संपत्ति की उचित जांच करे.

लेकिन रॉय ने इस कंपनी को मोटी रकम देकर, जांच कराने का फैसला आखिर क्यों किया था? इसके पीछे सुब्रत रॉय का मकसद यह जानना था कि दुश्मन और प्रतिद्वंदी उनके खिलाफ क्या चाल चल सकते हैं. मजे की बात यह है कि जब इस जांच में उनके खुद के कुकर्मों और कारोबारी अपराधों का भंडाफोड़ हुआ तो वह इस रिपोर्ट से बहुत प्रभावित हुए. हालांकि उन्होंने फर्म को बधाई दी कि उसने इतना बेहतरीन काम किया.

इससे पता चलता है कि सुब्रत रॉय खतरों से खेलने में माहिर थे. बेशक, नियमों को ताक पर रखकर कारोबार करने, और अपनी दौलत की नुमाइश करने में उन्हें मजा आता था, लेकिन फिर भी वह मूर्ख नहीं, काफी चतुर थे.

1980 के दशक से ही बार-बार कानून तोड़ते हुए उन्होंने यह साम्राज्य खड़ा किया था. उनकी शुरुआत, तब हुई थी, जब मुंबई में रहने वाला उनका बॉस गोरखपुर यात्रा के दौरान रहस्यमय तरीके से मारा गया था, और इसके बाद सहारा पर सुब्रत रॉय का कब्जा हो गया था.

सत्ता के गलियारों में सुब्रत रॉय की जबरदस्त पहुंच थी. इसी के चलते वह फर्श से अर्श तक पहुंचे और लगभग अजेय हो गए. लेकिन 2007 में उन्हें एहसास हुआ कि आने वाला वक्त कहीं उनके लिए मुसीबत लेकर न आए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सुब्रत रॉय और उत्तर प्रदेश के बड़े नेता

अब सुब्रत रॉय को यह कैसे महसूस हुआ कि उनकी जड़े खोदी जा सकती हैं, जिसके चलते उन्होंने एक टॉप इंटरनेशनल एजेंसी को अपनी जांच करने को कहा?

दरअसल भारतीय राजनीति में उनके दो कट्टर दुश्मनों का उदय हो चुका था. दोनों महिलाएं थीं: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती. एक के हाथ में केंद्र सरकार की बागडोर थी, और दूसरी उत्तर प्रदेश की मुखिया थीं, जहां सहारा का मुख्यालय था. मायावती 2007 में स्पष्ट बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई थीं.

बेशक सुब्रत रॉय अमीर, ताकतवर और ग्लैमरस लोगों को अपनी मुट्ठी में रखने में माहिर थे लेकिन बदकिस्मती से सोनिया गांधी या मायावती पर उनका पैंतरा काम नहीं कर रहा था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कांग्रेस के मुखिया को लेकर, सहाराश्री ने 1999 में केंद्र में कांग्रेस को सरकार बनाने से रोकने के लिए मुलायम सिंह और अमर सिंह के साथ मिलकर और उनका समर्थन करने की बड़ी गलती की थी. रॉय की गलती तब और बड़ी बन गई जब उन्होंने वास्तव में भारत के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर आग्रह किया कि विदेशी मूल के किसी व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए.

जहां तक मायावती की बात है, वह रॉय को उस तिकड़ी का तीसरा सदस्य (मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह जैसे पुराने बैरियों के साथ) मानती थीं, जो उनके जानी दुश्मन थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद सुब्रत रॉय ने बहनजी से मिलने की बारंबार कोशिश की, लेकिन नाकामी ही हाथ लगी. दोनों के बीच सुलह नहीं हो पाई.

बल्कि बहनजी ने लखनऊ विकास प्राधिकरण को सहारा सिटी के कुछ हिस्सों पर बुलडोजर चलाने का आदेश भी दिया और साफ कर दिया कि यह आग ठंडी होने वाली नहीं है. वह हिस्सा सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनवाया गया था, और पहले के अधिकारी आसानी से इस बात को नजरंदाज कर देते थे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सहारा का पतन और सुब्रत रॉय की यादगार कहानी

2007 की जांच में सुब्रत रॉय की कारस्तानियों के जो पुलिंदे खुले, उन्होंने उनकी कंपनियों और खुद सुब्रत रॉय को मानो धर दबोचा. आखिर में, 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सुब्रत रॉय को गिरफ्तार कर लिया गया.

2014 तक नई दिल्ली में कांग्रेस की सरकार रही, और 2012 तक लखनऊ में मायावती की. लेकिन तब तक राजनेताओं और बड़े अधिकारियों के बीच सुब्रत रॉय की धाक कम हो गई थी. इसी दौरान ‘निवेशकों’ के एक छोटे समूह और किसी ‘रोशन लाल’ ने सेबी में उन पर कारोबारी धोखाधड़ी करने की शिकायत कर दी.

सुब्रत रॉय 2016 में पैरोल पर बाहर निकलने में कामयाब रहे, कुछ समय बाद वापस जेल गए और फिर पैरोल पर बाहर आ गए. लेकिन फिर कभी वापसी नहीं कर पाए. हाल के वर्षों में उनकी सेहत गिरने लगी, और कारोबारी साम्राज्य भी. न ही उन हजारों करोड़ रुपयों का कोई सुराग मिला, जिनके बारे में कहा जाता है कि भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के लाखों गरीब लोगों के साथ-साथ सभी पार्टियों के बड़े नेताओं, फिल्मी सितारों और खेल हस्तियों ने सहारा की झोली में डाले थे.

बेशक, सुब्रत रॉय और उनके साम्राज्य को इंसाफ के पहियों के नीचे कुचला गया, लेकिन उनकी कहानी फिर भी यादगार है. बंगाली लोग अपने बिजनेस करने के कौशल या रिस्क लेने की क्षमता के लिए नहीं जाने जाते. लेकिन सुब्रत रॉय एक चिटफंड कलेक्टर से एक ताकतवर उद्योगपति बने. अपने सुनहरे दिनों में उनके पास क्या कुछ नहीं था- फाइनांशियल सर्विस, रियल ऐस्टेट, पहाड़ियों पर एक टाउनशिप, एविएशन, लंदन और न्यूयॉर्क में होटल, आईपीएल टीम, फार्मूला वन रेसिंग टीम. उन्होंने देश की क्रिकेट और हॉकी टीमों के लिए स्पॉंसरशिप भी हासिल की थी, जो सच कहें तो काफी हैरत भरा था. सुब्रत रॉय की कहानी जैसे कोई परी कथा हो लेकिन इसके अंत ट्विस्ट के साथ भरे हैं.

(लेखक दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं और 'बहनजी: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती' के लेखक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×