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भीमा कोरेगांव केस: एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी से लेकर रिहाई तक का सफर

28 अगस्त 2018 को सुधा भारद्वाज को महाराष्ट्र पुलिस ने उनके सेक्टर 39 स्थित आवास से गिरफ्तार किया था

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59 साल की सुधा भारद्वाज (Sudha Bharadwaj) जो एक मानवाधिकार वकील और कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने अपना अब तक का जीवन श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने में बिताया, वो अगस्त 2018 से हिरासत में हैं. उन पर माओवादी आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध होने के आरोपों में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था.

उन्हें अब जमानत मिल गई है. भारद्वाज को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार, 1 दिसंबर को जमानत दे दी.

अगस्त 2018 से गिरफ्तार सुधा भारद्वाज के जमानत तक के सफर पर एक नजर डालते हैं.

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  • 20 अगस्त 2021: भीमा कोरेगांव की आरोपी सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जब्त किए गए सभी उपकरणों की क्लोन प्रतियां मांगने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

  • 10 अगस्त 2021: राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भीमा कोरेगांव मामले में मुंबई की एक विशेष अदालत में 15 आरोपियों के खिलाफ ड्राफ्ट चार्जेज दायर किए. उन आरोपों में UAPA और IPC के तहत राजद्रोह सहित कई धाराएं शामिल हैं.

  • 4 अगस्त 2021: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुधा भारद्वाज द्वारा दायर एक डिफॉल्ट जमानत याचिका पर अपना फैसला इस आधार पर सुरक्षित रखा कि भीमा कोरेगांव मामले में आरोपपत्र का संज्ञान लेने वाले न्यायाधीश ऐसा करने के हकदार नहीं थे.

  • 15 जुलाई 2021: राज्य सरकार ने सुधा द्वारा डिफॉल्ट जमानत के लिए दायर एक याचिका का विरोध करते हुए एक फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि एनआईए के तहत एक विशेष परीक्षण न्यायाधीश मामले में तभी आएगा जब एजेंसी किसी मामले की जांच शुरू करेगी.

  • 22 जून 2021: बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत याचिका के जवाब में एनआईए को 3 जुलाई तक अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया.

  • 12 जून 2021: सुधा ने इस आधार पर जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया कि उनके खिलाफ मामले में 2019 की चार्जशीट आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत आवश्यक 90 दिनों की वैधानिक अवधि के भीतर दायर नहीं की गई थी. वकीलों ने यह भी कहा कि सत्र न्यायाधीश किशोर वडाने को उस समय राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम की धारा 11 या 22 के तहत विशेष न्यायाधीश के रूप में नामित नहीं किया गया था. उन्होंने तर्क दिया कि अतिरिक्त न्यायाधीश इसलिए फरवरी 2019 में पुलिस द्वारा दायर 1,800 पन्नों के पूरक आरोपपत्र का संज्ञान लेने के लिए अधिकृत नहीं थे.

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  • मार्च 2021: आर्सेनल कंसल्टिंग की एक दूसरी रिपोर्ट ने रोना विल्सन के कंप्यूटर में नेटवायर मैलवेयर का उपयोग करके उसी अज्ञात हैकर द्वारा 22 दस्तावेजों को इंप्लांट करने की पुष्टि की. हैकर द्वारा इंप्लांट किए दस्तावेजों में सुधा को दोषी ठहराने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिस पर एनआईए ने सुधा की जमानत का विरोध किया था.

  • फरवरी 2021: एक डिजिटल फोरेंसिक फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग की एक रिपोर्ट ने उन लेटर्स की विश्वसनीयता के बारे में गंभीर सवाल खड़े किए जिनका इस्तेमाल जांच एजेंसियों ने 16 कार्यकर्ताओं को फंसाने के लिए किया है. उन्होंने पाया कि एक साइबर हमलावर ने कथित तौर पर कार्यकर्ता रोना विल्सन के लैपटॉप तक पहुंच हासिल कर ली थी और उस पर कम से कम 10 आपत्तिजनक लेटर इंप्लांट किए थे.

  • जून-सितंबर 2020: महामारी के दौरान सुधा ने मेडिकल जमानत के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया, जिसमें कहा गया था कि बढ़ती उम्र, डाइबिटिज, उच्च रक्तचाप, से उन्हें परेशान हो रही है. जिससे वो कोरोना की चपेट में आ सकती है. लेकिन उनकी याचिका का NIA ने विरोध किया था, जिसमें दावा किया गया था कि उनकी हालत गंभीर नहीं है. लेकिन जेल अधिकारियों द्वारा अदालत में पेश की गई मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता है कि सुधा को जेल में दिल की बीमारी हो गई है. चूंकि जेल जाने से पहले सुधा को गंभीर बीमारी नहीं थी, इसलिए उनकी बेटी मायशा का अनुमान है कि जेल में तनाव की वजह से ऐसा हुआ. पहले बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल आधार पर सुधा की अंतरिम जमानत की अर्जी को खारिज कर दिया.

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  • फरवरी 2020: भीमा कोरेगांव मामले की जांच को राष्ट्रीय जांच एजेंसी की अदालत को सौंपने का आदेश पारित किया गया. सुधा और गिरफ्तार किए गए अन्य कार्यकर्ताओं को येरवाडा सेंट्रल जेल से मुंबई ले जाया गया. उन्हें भायखला जेल ले जाया गया था.

  • 24 जनवरी 2020: केंद्र सरकार ने अचानक पुणे पुलिस से भीमा कोरेगांव मामले की जांच एनआईए को सौंप दी. NIA को यह जांच राज्य में बीजेपी सरकार के गिरने और नई राज्य सरकार द्वारा कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले में सबूतों की बारीकी से जांच करने की घोषणा के बाद सौंपी.

  • 15 अक्टूबर 2019: बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुधा की जमानत अर्जी खारिज कर दी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि आरोप पत्र में पर्याप्त सामग्री है और यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आरोप प्रथम दृष्टया सच था.

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  • अगस्त 2019: सुधा को अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए 17-20 अगस्त तक बॉम्बे हाईकोर्ट ने अस्थायी जमानत दी थी. उनके पिता का देहांत 7 अगस्त को हो गया था.

  • 21 फरवरी 2019: पुणे पुलिस ने सुधा और आठ अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ विशेष यूएपीए अदालत में चार्जशीट दायर की. अब तक गिरफ्तार किए गए सभी लोगों (9 सामाजिक कार्यकर्ताओं) के खिलाफ आरोप पहले वाले आरोप पत्र के समान ही थे. आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से केवल अधिक दस्तावेज पेश किए गए. हालांकि, पुलिस ने सुधा के खिलाफ कोई नया सबूत पेश नहीं किया और न ही उसके किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से कोई दस्तावेज पेश किया.

  • 26 अक्टूबर 2018: पुणे की सेशन कोर्ट ने सुधा भारद्वाज की जमानत याचिका खारिज कर दी. इसके बाद उन्हें पुणे की येरवाडा जेल की महिला जेल में भेज दिया गया.

  • 28 अगस्त 2018: सुधा भारद्वाज को महाराष्ट्र पुलिस ने उनके सेक्टर 39 स्थित आवास से गिरफ्तार किया. भारत भर में चार अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया. इनमें मुंबई में वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा, नई दिल्ली से गौतम नवलखा और हैदराबाद से वरवर राव शामिल हैं. सुधा को शुरू में 30 अगस्त तक घर में नजरबंद रखा गया था और फिर बाद में नजरबंद कर दिया गया था.

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  • जुलाई 2018: 4 जुलाई 2018 को, रिपब्लिक टीवी ने एक कार्यक्रम प्रसारित किया जिसमें दावा किया कि सुधा भारद्वाज ने खुद को "कॉमरेड एडवोकेट सुधा भारद्वाज" के रूप में पहचानते हुए एक माओवादी को पत्र लिखा था और कहा था कि कश्मीर में हिंसक राजनीतिक माहौल बनाना होगा. उन पर माओवादियों से पैसे लेने का आरोप था. 5 जुलाई 2018 को, सुधा भारद्वाज ने अपने खिलाफ लगाए गए झूठे आरोपों और मानहानिकारक बयानों का खंडन करते हुए एक बयान जारी किया.

  • 8 जून 2018: सुधा भारद्वाज ने इन गिरफ्तारियों की निंदा करते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, विशेष रूप से एक साथी कार्यकर्ता-वकील सुरेंद्र गाडलिंग की गिरफ्तारी की.

  • 6 जून 2018: पांच कार्यकर्ताओं को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया. हिरासत में लिए गए लोगों में वरिष्ठ दलित अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धवले, वरिष्ठ मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गाडलिंग, विस्थापन विरोधी कार्यकर्ता और पूर्व प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो महेश राउत, नागपुर विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर शोमा सेन और दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन शामिल थे.

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  • 8 जनवरी 2018: एक दक्षिणपंथी कार्यकर्ता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि भीमा कोरेगांव में हिंसा को प्रतिबंधित माओवादी पार्टी की साजिश के तहत एल्गार परिषद की सभा के दौरान भड़काया गया था. बाद में मामले में अधिकांश मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का नाम न तो एफआई मेंथा और ना ही वो इवेंट के दौरान वहां मौजूद थे.

  • 1 जनवरी 2018: दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी समूहों, सत्तारूढ़ बीजेपी के कथित समर्थकों ने 200 साल पुरानी लड़ाई को मनाने के लिए भीमा कोरेगांव में जमा दलितों पर हमला किया. जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई घायल हो गए थे.

  • 31 दिसंबर 2017: महाराष्ट्र राज्य में पुणे के पास भीमा कोरेगांव में एल्गार परिषद के नाम से एक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने दलितों के उत्पीड़न के खिलाफ चर्चा और आयोजन किया.

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