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संडे व्यू : अनदेखा ना करें कश्मीर का सच, चिंता पटाखे या प्रदूषण?

देश के प्रमुख अखबारों में बड़े मुद्दों पर छपे विचार एक जगह 

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अनदेखी ना करें कश्मीर से जुड़ी सच्चाई

तवलीन सिंह इंडियन एक्सप्रेस में लिखती हैं कि ‘सेक्युलर’ मिजाज वाले पत्रकार तब चुप रह जाते हैं, जब ओवैसी हिंदुओं का मजाक उड़ाते हुए कहते हैं ‘कितने खुदा हैं इनके, रोज एक नया खुदा पैदा कर देते हैं ना’. वह दो वीडियो का भी जिक्र करती हैं जिनमें से एक में बच्चे मानव बम बने दिखते हैं और दूसरे में आईएस आतंकी अबू बक्र अल-बगदादी की मौत के बाद नए सरगना का अरमान नजर आता है. कश्मीर से इन घटनाओं को जोड़ती हुई वह लिखती हैं कि भारत सरकार ऐसे इस्लामी समर्थन को कायम नहीं होने दे सकती.

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तवलीन लिखती हैं कि आर्टिकल 370 बेअसर होने के बाद कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का कहना कि कश्मीर समस्या 2014 के बाद शुरू हुई है, बिल्कुल गलत है. 5 अगस्त के बाद मोदी सरकार का ध्यान यह बताने में रहा है कि कश्मीर में स्थिति सामान्य है. यूरोपीय यूनियन के सांसदों का कश्मीर आना और इसी प्रतिनिधिमंडल में से आवाज उठना कि विपक्ष के नेताओं को भी दौरे का मौका मिलना चाहिए, गौरतलब है. अच्छा होता अगर सरकार यह बताने की कोशिश करती कि इस आर्टिकल को बेअसर किए बिना जम्मू-कश्मीर में जेहादी तत्वों को काबू में कर पाना मुश्किल था. चूंकि भारत सरकार अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पा रही है इसलिए पाकिस्तान बाजी जीतता नजर आ रहा है.

दिवाली पर नहीं प्रदूषण पर सोचिए

आनंद नीलकंटन ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में पर्यावरण प्रदूषण को लेकर दिवाली पर ध्यान केंद्रित किए जाने पर अपनी तर्कपूर्ण भावनाओं को रखा है. वे लिखते हैं कि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कॉरपोरेट जगत मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग के लोगों को एक दिन पटाखे ना छोड़ने की नसीहत देता दिखा. बड़ी-बड़ी गाड़ियां, कॉस्मेटिक्स और निजी जेट विमानों का इस्तेमाल कर रहे लोग नसीहत देते दिखे. दुनिया के 12 प्रदूषित शहरों में 11 भारत में हैं. दिल्ली गैस चैंबर बन चुकी है. लेखक बताते हैं कि इसकी वजह एक दिन की दिवाली नहीं है. पाकिस्तान के पंजाब में भी ऐसा ही नजारा है, जहां दिवाली नहीं मनायी जाती.

लेखक ने बताया है कि पुआल जलाने को रोकना नेताओं को वोट के कारण उपयुक्त नहीं लगता, औद्योगिक कचरा फैलाने वाले बख्श दिए जाते हैं. बच जाते हैं बेचारे आम लोग, जिन पर दिवाली के बहाने प्रदूषण का ठीकरा फोड़ दिया जाता है. लेखक का कहना है कि पटाखे बनाने में अगर औद्योगिक घराने शामिल होते, तो सुर अलग हो सकता था. फिलहाल बाजार की कोशिश रही कि लोगों को शॉपिंग के लिए प्रेरित किया जाए. लेखक ने चीन के स्मॉग टावर का जिक्र किया है और दिल्ली में इसकी जरूरत पर चुप्पी का भी. वह लिखते हैं कि कुछ समय पहले चीन प्रदूषण की समस्या से ग्रस्त था जहां दिवाली नहीं मनाई जाती. मगर, अब उसने हल निकाला है. भारत में भी लोग दिवाली के बजाए प्रदूषण के मूल कारणों को दूर करने पर जोर दें तो बेहतर नतीजे मिल सकते हैं.

कश्मीर का हुआ अंतरराष्ट्रीयकरण

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने हिंदुस्तान टाइम्स में कश्मीर मुद्दे को लेकर भारतीय विदेश नीति पर उंगली उठाई है. वह ट्रंप-इमरान की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की याद दिलाते हैं, जिसमें कश्मीर की मध्यस्थता को लेकर जिक्र हुआ. फिर 5 अगस्त को आर्टिकल 370 को बेअसर करने के कदम का भी लेखक उल्लेख करते हैं. दोनों घटनाओं में अंतर्संबंध को रेखांकित करने की कोशिश दिखती है.

लेखक ने जर्मन दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर ड्यूशलैंड के प्रतिनिधि बेनहार्ड जिमनिओक का भी जिक्र किया है, जिन्होंने कश्मीर मामले में मध्यस्थता की पेशकश की थी और जो भारत आए यूरोपीय यूनियन के सांसदों में शामिल थे. लेखक का मानना है कि बेशक यूरोपीय यूनियन के सांसदों को कश्मीर घाटी में बुलाने का मकसद भारत के सरकारी रुख के लिए समर्थन जुटाना रहा हो, मगर जिस तरह से इन सांसदों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं उससे कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. लेखक ने भारतीय विदेश नीति को एक संदिग्ध एनजीओ को आउटसोर्स कर देने का आरोप भी लगाया है.

क्षेत्रीय कांग्रेस का संघ बने राष्ट्रीय कांग्रेस

हिन्दुस्तान टाइम्स में मार्क टुली लिखते हैं कि वक्त आ गया है जब गांधी परिवार नेतृत्व को कांग्रेस अंतिम रूप से अलविदा कह दे. आम चुनाव में कांग्रेस के सफाए के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन इस विचार के मूल में है. लेखक ने सागरिका घोष के स्वतंत्र कांग्रेस पार्टी के विचार का भी जिक्र किया है जो परिवार और वंशवाद से मुक्त हो. लेखक अतीत के उदाहरण से यह कहते भी नहीं भूलते कि ऐसी कोशिशों के बीच भी गांधी परिवार का नेतृत्व उभर कर सामने आया है.

मार्क टुली का सुझाव है कि कांग्रेस को संघीय पार्टी के रूप में उभरने की कोशिश करनी चाहिए. लेखक का मानना है कि क्षेत्रीय नेताओं की आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर महत्व मिलना चाहिए. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, बंगाल में ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी, महाराष्ट्र में शरद पवार जैसे नेताओं के नेतृत्व का सम्मान हो. ऐसे ही नेताओं में से केंद्रीय नेतृत्व का विकास हो. इसके बावजूद कई सवाल बने रहेंगे कि कौन कहे कि गांधी परिवार का समय चला गया है, उनकी गैर मौजूदगी में पार्टी कैसे इकट्ठी हो, नए नेता का चुनाव कैसे हो, बिहार-यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस कैसे खड़ी हो वगैरह-वगैरह. लेखक मानते हैं कि मजबूत संप्रभु और स्वायत्त नेता ही कांग्रेस की जरूरत हैं.

फिर ‘तीसरी दुनिया’ में भारत

इंद्रजीत हाजरा ने टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रदूषण का जिक्र कर भारत को एक बार फिर तीसरी दुनिया से जुड़ा हुआ बताया है. कुछ दशक पहले तक भारत तीसरी दुनिया के देशों का नेतृत्व कर रहा था जब भारत की गरीबी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिल्में बनकर बिक रही थी. अब यह प्रदूषण के कारण सांस, फेफड़े और आंखों में दिक्कत वाले देश के रूप में चर्चित है. फ्रांसीसी उपन्यासकार माइकल हॉवेलबेक के हवाले से लेखक कहते हैं कि ईश्वर ने नहीं, इंसानों ने शहर बसाए. शहरों को ठिकाने से रखने की जिम्मेदारी इंसानों की है. मगर, लेखक मानते हैं कि भारत ने इस जिम्मेदारी को भी ईश्वर को आउटसोर्स कर दिया है.

शहरों के ट्रैफिक कल्चर, औद्योगिक कचरा, चलती कार से थूकने की आदत, जहां-तहां कूड़ा फैलाने का स्वभाव जगजाहिर है. भारत की गरीबी की चर्चा बदलकर अब भारत के स्वभाव की चर्चा होने लगी है. गुरुग्राम, मुंबई या कोलकाता में आप घरों के अंदर चाहे जितना आलीशान जीवन जी लें, लेकिन बाहर एक ऐसा भारत है जिसे नजरअंदाज नहीं कर सकते. बेचारे गरीब इस वातावरण को झेलने को अभिशप्त हैं. भारत को सीखना होगा, महसूस करना ही नहीं कराना होगा- सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा.

एनसीए को मिलेगा नया जीवन

द हिंदू में सुरेश मेनन ने लिखा है कि बीसीसीआई प्रमुख सौरभ गांगुली और राहुल द्रविड़ की मुलाकात से नेशनल क्रिकेट एकेडमी (एनसीए) को नया जीवन मिल सकता है. इससे भारत में क्रिकेट की तस्वीर बदल सकती है. सन 2000 में एनसीए अस्तित्व में आया था. ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट एकेडमी (एसीए) की तर्ज पर इसका विकास किया जाना था. बीसीसीआई अब इसी योजना को अमल में लाने की ओर कदम बढ़ाती दिख रही है.

मेनन लिखते हैं कि एसीए को सेंटर ऑफ एक्सिलेंस और एनसीए को घायल खिलाड़ियों का जमावड़ा कहा जाने लगा था. मगर, यह सिर्फ जुमले की बात है. वास्तव में एनसीए का गौरवपूर्ण अतीत रहा है जिसने कई शानदार खिलाड़ी भारत को दिए हैं. एनसीए के पुनरोद्धार की कोशिशों का क्रिकेट में स्वागत किया जाना चाहिए. गांगुली-द्रविड़ की मुलाकात से यह उम्मीद जगी है. दोनों ने एक साथ क्रिकेट का टेस्ट करियर शुरू किया था और अब एक साथ भारतीय क्रिकेट को संवार सकते हैं. चिन्नास्वामी स्टेडियम से एनसीए स्थानांतरित होकर एयरपोर्ट से 20 मिनट की दूरी पर जा रहा है जहां उसके पास 40 एकड़ की जमीन होगी. तमाम सुविधाओं के साथ यहां क्रिकेट और क्रिकेटरों के विकास का पूरा वातावरण होगा.

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