शेयर बाजार को ट्रंप की जीत का इंतजार
बिजनेस स्टैंडर्ड में पुनीत वाधवा ने इस उत्सुकता का समाधान किया है कि अमेरिका में कड़ी चुनावी जंग के बीच इस सप्ताह जीत किसकी होने जा रही है- कमला हैरिस की या डोनाल्ड ट्रंप की. विशेषज्ञों के हवाले से वे बताते हैं कि नवंबर 2024 के चुनावों में ट्रंप की संभावित जीत से भारतीय ऑटो, एनर्जी और मेटल सेक्टर को फायदा होने की संभावना है जबकि फार्मास्यूटिकल सेक्टर के लिए यह तटस्थ रहने की संभावना है. भारत के निर्यात का लगभग 18 फीसदी हिस्सा अमेरिका से जुड़ा हुआ है. निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में इलेक्ट्रॉनिक्स, मोती और कीमती पत्थर, फार्मास्यूटिकल्स, परमाणु रिएक्टर, पेट्रोलियम त्पाद और कुछ हद तक लोहा एवं इस्पात, ऑटोमोबाइल और कपड़े शामिल हैं. भारत अमेरिका को आईटी और प्रोफेशनल सेवाएं भी प्रदान करता है.
पुनीत वाधवा डेवेरे ग्रुप के सीईओ निगेल ग्रीन के हवाले से बताते हैं कि ट्रंप के जीतने की स्थिति में व्यापार नीतियों के चलते आयात लागत में वृद्धि होगी जिससे महंगाई बढ़ेगी. एचएसबीसी के विश्लेषकों के अनुसार अगर ट्रंप दोबारा चुने जाते हैं तो प्रस्तावित 10 प्रतिशत आयात शुल्क और चीनी आयात को 8 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं. इसका असर वैश्विक बाजारों पर और अधिक हो सकता है.
इसके विपरीत रबोबैंक इंटरनेशनल के विश्लेषकों के अनुसार हैरिस की नीतियों से फेड के 2 प्रतिशत लक्ष्य तक महंगाई में लगातार गिरावट आएगी और उसे 2025 में अपने कटौती चक्र को जारी रखने की अनुमति मिलेगी. अमेरिकी और शेयर बाजार, दोनों ने ट्रंप के कार्यकाल और जो बाइडेन की सरकार में अच्छा प्रदर्शन किया है. ब्लूमबर्ग डेटा के अनुसार ट्रंप के कार्यकाल के दौरान एसएनपी 500 और नैस्डैक ने क्रमश: 70.2 प्रतिशत और 142.9 प्रतिशत का उछाल दर्ज किया जबकि बाइडेन के कार्यकाल में ये सूचकांक 50.8 प्रतिशत और 36.8 प्रतिशत बढ़े. वहीं भारत में सेंसेक्स और निफ्टी ने ट्रंप के कार्यकाल के दौरान क्रमश: 82.3 प्रतिशत और 73.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की. जबकि, बाइडेन के कार्यकाल में ये 59 प्रतिशत और 64.5 प्रतिशत बढ़े.
जमीन से कट गये हैं पीएम मोदी
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह बात सुनकर हैरान हैं कि भारत में अब भाईचारा और एकता इतनी मजबूत है जैसे पहले कभी नहीं थी. वह सवाल करती हैं कि प्रधानमंत्री क्या नहीं जानते कि इस देश के मुसलमान अपने आप को दूसरे दर्जे के नागरिक महसूस करने लगे हैं? क्या प्रधानमंत्री जानते नहीं हैं कि मुसलमानों का अब बिल्कुल उन पर भरोसा नहीं रहा? जवाब भी लेखिका ही देती हैं कि शायद नहीं जानते होंगे क्योंकि उनके आसपास न मुस्लिम मंत्री हैं, न मुस्लिम बुद्धिजीवी और न ही मुस्लिम दोस्त.
तवलीन सिंह पुराने हिन्दुस्तान का जिक्र करती हुई लिखती हैं कि उस जमाने में खामियां जरूर बहुत सारी थी लेकिन भाईचारा की कमी नहीं थी. दिवाली, ईद और होली तब हिन्दू और मुसलमान एक साथ मनाया करते थे. आज ऐसा नहीं है और यह इसलिए कि हर दूसरे तीसरे दिन भारतीय जनता पार्टी का कोई आला नेता कुछ न कुछ ऐसी बात कह डालता है जिससे मुसलमानों को लगे कि एक बार फिर उनको निशाना बनाया जा रहा है.
हाल में योगी आदित्यनाथ ने जब ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ कहा तो उसका मतलब साफ समझ में आया मुसलमानों को. योगी के इस बयान के बाद जब कई सारे हिन्दुत्व मानसिकता वाले नेताओं ने इस बात को दोहराना शुरू किया तो मुसलमानों के लिए संदेश और भी स्पष्ट होने लगा.
लेखिका ने आगे लिखा है कि प्रधानमंत्री का भाषण सुनकर ऐसा लगा कि वे इन चीजों से बिल्कुल बेखबर हैं. सरदार पटेल की प्रतिमा के साये में राष्ट्रीय एकता दिवस मनाने से कुछ हासिल नहीं होगा. प्रधानमंत्री को खुद भाईचारे को एक बार फिर से कायम करने के लिए नये सिरे से शुरूआत करनी होगी. पिछले चुनावों में यह साबित हो चुका है कि कांग्रेस को दोबारा जीवित करने मे मुस्लिम मतदाताओं ने डट कर मदद की है. प्रधानमंत्री को चिंता होनी चाहिए कि मुसलमान सुनियोजित तरीके से बीजेपी को हराने में लग गये हैं.
विरासत और वंश संभाल पाएंगे पवार?
प्रभु चावला ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि युद्ध सैनिक लड़ते हैं लेकिन जीत सेनापति की होती है. महाविकास अघाड़ी और महायुति के बीच अनोखा महाभारत महाराष्ट्र में चल रहा है. अवसरवाद, विश्वासघात, विश्वासघाती प्रचार और राजनीतिक भाईचारे का युद्ध का मैदान तैयार है. शरद पवार और नरेंद्र मोदी के बीच सीधा आमना-सामना है. पूरी संभावना है कि यह पवार की आखिरी लड़ाई होगी और, मोदी के लिए अपने करिश्मे की पूर्ण मान्यता के लिए महत्वपूर्ण परीक्षा. पवार को यह साबित करना होगा कि वे अब भी सर्वश्रेष्ठ ताकतवर मराठा हैं. अपने ही रिश्तेदारों और भरोसेमंद चाटुकारों द्वारा धोखा दिए जाने के बाद पवार का प्रतिशोध 26 साल पहले स्थापित एनसीपी के प्रभाव को बहाल करने के लिए है. घायल बाघ की तरह वे नियति से लड़ रहे हैं.
प्रभु चावला आगे लिखते हैं कि शरद पवार डीएनए से कांग्रेसी और पसंद से वंशवादी हैं. मई में एमवीए के 30 लोकसभा सांसदों की जीत सुनिश्चित करके पवार ने अपनी लोकप्रियता साबित कर दी है. राजनीति में पवार की सानी नहीं है. मोदी सरकार ने पवार को पद्म विभूषण से सम्मानित किया है. जबकि, सोनिया गांधी ने भी उनकी तारीफ समय-समय पर की है जिन्हें 1998 में पवार ने प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया था. भारतीय राजनीति के इस महान व्यक्ति ने 1978 में महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार को गिराने और 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बनने के बाद से एक लंबा सफर तय किया है. सोनिया के विदेशी मूल पर सवाल उठाने के बाद भी 2004 में वे केंद्रीय मंत्री बने और यूपीए अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी को स्वीकार किया. यह चुनाव मुंबई में पवार की अंतिम राजनीतिक तीर्थ यात्रा होगी.
प्राचीनकालीन अचरज भारत
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि विलियम डेलरिम्पल की नवीनतम पुस्तक उनके भारतीय पाठकों को खुश कर देगी. यह उस बात को स्थापित करती है जिस पर हम हमेशा से विश्वास करते आए हैं.
लेकिन, यह बात उनसे सुनना सबसे अच्छा है. उनकी पुस्तक में जिस अवधि को शामिल किया गया है वह लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 12वीं-13वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक की है. इस बारे में डेलरिम्पल लिखते हैं, “जो ग्रीस पहले रोम के लिए था, फिर भूमध्य सागर और यूरोपीय दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए, उसी तरह इस अवधि में भारत दक्षिण-पूर्व और मध्य एशिया और यहां तक कि चीन के लिए भी था.”
करन थापर आगे डेलरिम्पल के हवाले से बताते हैं कि रोमन साम्राज्य और भारत के बीच व्यापार की सीमा इतनी अधिक थी कि एक अनुमान के अनुसार सीमा शुल्क से रोमन राजकोष की कुल आय का एक तिहाई हिस्सा प्राप्त होता था. इसका एक और प्रमाण यह है कि भारतीय संग्रहालयों में रोमन साम्राज्य की सीमाओं के बाहर किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक रोमन सिक्के हैं. क्या यह भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता की एक महत्वपूर्ण पुनर्स्थापना नहीं है? यह सब उनकी पुस्तक में तीन बड़ी कहानियों से उभर कर आता है. वे हैं- पहला, बौद्ध धर्म का चीन और मध्य एशिया और साइबेरिया और मंगोलिया तक प्रसार. दूसरा, गणित और खगोल विज्ञान की भारतीय अवधारणाओं का अरब दुनिया और फिर यूरोप तक प्रसार. और, तीसरा, हिन्दू धर्म और सांस्कृतिक संस्कृति का दक्षिण पूर्व एशिया, कंबोडिया, लाओस और जावा तक प्रसार. हर कहानी एक आकर्षक कहानी है. इसमें बगदाद के वजीरों से लेकर इतालवी गणितज्ञों तक, टोलेडो के काजी से लेकर चीन की एकमात्र महिला सम्राट तक, कंबोडिया के अंगकोरवाट और जावा के बोरोबुदुर से लेकर बिहार के नालंदा तक के असाधरण चरित्र हैं.
न्यूजीलैंड की असाधरण जीत
रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में भारत और न्यूजीलैंड के बीच टेस्ट सीरीज का रोचक विवरण रखा है. एम चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास रहने वाले रामचंद्र गुहा ने टेस्ट मैच के पहले दिन स्टेडियम में नहीं रहने के पीछे न्यूजीलैंड का श्रीलंका में बुरा प्रदर्शन और व्यक्तिगत प्राथमिकताएं बताईं. मगर, जब 46 रन पर भारतीय टीम ढेर हो गयी तो अगले दिन लेखक चिन्नास्वामी स्टेडियम पहुंच गये. खेल के दौरान ही लेखक ने न्यूजीलैंड की सर्वकालिक 11 खिलाड़ियों की टीम तैयार की- ग्लेन टर्नर, बर्ट सुटक्लिफ, मार्टिन डोनेली, मार्टिन क्रो, केन विलियमसन, ब्रेंडन मैकुलम (विकेट कीपर), क्रिस केर्न्स, रिचर्ड हेडली, डैनियल विटोरी, शेन बॉन्ड और ट्रेंट बोल्ट. वर्तमान न्यूजीलैंड की टीम का एक भी खिलाड़ी इस टीम में जगह नहीं बना सका.
रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि मेम्बर्स स्टैंड के सबसे ऊपरी टीयर की गली पंक्ति में बैठने के बाद उन्होंने पाया कि इस स्टैंड में महज तीस लोग मैच देख रहे थे जिनमें 10 पुलिसकर्मी थे. न्यूजीलैंड ने 350 से अधिक की बढ़त हासिल कर ली. अब सवाल था कि भारत कैसे जवाब देगा? लेखक को यशस्वी जायसवाल को देखने की उत्सुकता थी. कुछ बेहतरीन ड्राइव खेलकर वे रन आउट हो गये. रोहित शर्मा और कोहली ने आत्मविश्वास के साथ खेला. सरफराज खान ने जीआर विश्वनाथ की याद दिला दी. कोहली दिन के आखिरी ओवर में आउट हुए. भारत के संघर्ष ने अगली सुबह मैच देखने को विवश किया. सरफराज और ऋषभ पंत के बीच शानदार स्ट्रोक भरी साझेदारी देखी.
अब बात होने लगी कि भारत चौथी पारी में न्यूजीलैंड के सामने किस तरह का लक्ष्य रखेगा. मगर, जल्द ही नई गेंद ने भारतीय पारी बिखेर दी. चौथी पारी का लक्ष्य बमुश्किल सौ से ज्यादा का था. पुणे में दूसरे टेस्ट का ज्यादातर हिस्सा टीवी पर देखते हुए आश्चर्य हुआ कि कैसे कीवी टीम ने अपने से बेहतर टीम को मात दी. साधारण किवी टीम ने उस भारतीय टीम को हराया जिसमें सर्वकालिक भारतीय टीम बनाई जाए तो कई सदस्य खिलाड़ी अनिवार्य रूप से उसका हिस्सा होंगे.
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