ADVERTISEMENTREMOVE AD

संडे व्यू: चुनावी राजनीति के दबाव में RSS, कथित गोरक्षक असली 'टुकड़े-टुकड़े' गैंग

पढ़ें इस इतवार पी चिदंबरम, तवलीन सिंह, प्रभु चावला, सुनीता एरॉन और जयंत चैकब के विचारों का सार.

Published
भारत
7 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

‘टाइम बम’ है बेरोजगारी

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दावे की कलई खोली है कि पिछले दस वर्षों में हमारी अर्थव्यवस्था का 90 फीसदी विस्तार हुआ है. आंकड़ों के जरिए लेखक ने बताया है कि यह वृद्धि दर 77.34 फीसद है जो विकासशील देश के लिए अच्छा होकर भी आर्थिक उदारीकरण के बाद से बीते दो दशकों के वृद्धि दर के मुकाबले कम है. 2003-04 में 1991-92 के मुकाबले जीडीपी दुगुनी हो गयी थी. इसी तरह 2013-14 में 2004-05 के मुकाबले जी़डीपी का आकार दुगुना हो गया था. लेखक का दावा है कि उन्होंने संसद में कहा था कि मोदी सरकार के दस साल में जीडीपी दुगुनी नहीं होगी और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी पुष्टि कर दी है.

लेखक ने प्रधानमंत्री के इस दावे को भी चुनौती दी है जिसमें उन्होंने कहा है कि आज भारत के लोग आत्मविश्वास से भरे हुए हैं. हरियाणा में 15 हजार रुपये प्रति माह के वेतन पर अनुबंध के आधार पर सफाई कर्मचारियों के लिए आए 3.95 लाख आवेदन का जिक्र लेखक ने किया है. करीब 6 हजार स्नातकोत्तर और 40 हजार स्नातक के साथ 1.17 लाख 12वीं पढ़ रहे आवेदकों के हवाले से लेखक ने बताया है कि यह ‘नये आत्मविश्वास’ का प्रतीक कतई नहीं है.

लेखक ने प्रधानमंत्री के इस दावे को भी गलत बताया है कि भारत के महत्वाकांक्षी युवाओं और महिलाओँ ने निरंतरता, राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास के लिए मतदान किया है. इसके विपरीत पर्यवेक्षकों के हवाले से वे लिखते हैं कि वोट बदलाव, संवैधानिक शासन और समानता के साथ विकास के लिए था. अखबार में छपी खबर के हवाले से लेखक ने लिखा है कि आईआईटी मुंबई इस साल अपने स्नातक वर्ग के केवल 75 फीसदी छात्रों को ही प्लेसमेंट दे पाया है. अन्य संस्थानों के स्नातकों का प्लेसमेंट 30 फीसदी के निराशाजनक स्तर पर है. विश्व बैंक के भारत आर्थिक अपडेट में बताया गया है कि शहरी युवाओं को रोजगार 17 फीसदी पर बना हुआ है. लेखक ने बेरोजगारी को ‘टाइम बम’ बताया है जिसे डिफ्यूज करने के लिए मोदी सरकार ने 9 जून के बाद से कुछ नहीं किया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जेएनयू में नहीं सड़क पर गोरक्षक के नाम पर हैं टुकड़े-टुकड़े गैंग

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि गो रक्षा के नाम पर जब भी किसी की हत्या की जाती है तो उन्हें वह बात याद आती है जो इस विषय पर आरएसएस के आला नेता से सुनी थी. उन्होंने कहा था, “अच्छा है कि हिंदू कम से कम मारने तो लगे हैं.” लेखिका के इस तर्क से आरएसएस नेता ने असहमति जताई थी कि जब भीड़ इकट्ठा होकर एक निहत्थे इंसान पर हमला करती है तो वह बहादुरी का सबूत नहीं, बुजदिली का होता है. बीते दिनों आर्यन मिश्रा की हत्या गो रक्षकों ने गो तस्कर समझकर फरीदाबाद में कर दी तो उसके पिता ने पूछा कि इन लोगों को कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार किसने दिया है? अगर यही सवाल दस साल पहले तब हम सबने पूछा होता कि मोहम्मद अखलाक देश में पहली मॉब लिंचिंग का शिकार हुए थे, तो आज इस तरह की हत्याएं बंद हो गयी होतीं. इसके विपरीत ऐसी हत्याओं के वीडियो सोशल मीडिया पर गर्व के साथ डाले जाने शुरू हो गये.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि गोमाता के नाम पर जो जहर फैल गया है वह अब देश की रगों में उतर चुका है. मुंबई की ट्रेन में नौजवानों के एक झुंड ने 72 वर्ष के अशरफ अली सैयद को घेर कर इतना पीटा कि उसकी आंख सूज गयी और कपड़े फट गये. भैंस का मांस लेकर वह अपनी बेटी के घर जा रहे थे. भैंस काटना भारत में नाजायज नहीं है. हम दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक हैं भैंस के मांस के. पिटाई करने वाले नौजवान पुलिस में भर्ती होने के लिए जा रहे थे. नौकरी लगने के बाद मुसलमानों के साथ उनका क्या बर्ताव होगा वह अभी से दिखता है.

लेखिका चिंता जताती हैं कि इस देश में मुसलमानों की आबादी इतनी है कि उन्हें किसी और मुल्क में भेजा नहीं जा सकता है. ऐसे में समाज को बांटने का काम कर रहे राजनेता ये समझें कि देश एक और बंटवारे की ओर बढ़ सकता है. लेखिका का मानना है कि ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ वाला गैंग जैएनयू में नहीं है. इस गैंग के सदस्य हमारी सड़कों पर घूमते हैं गोरक्षक बनकर.

चुनावी राजनीति के दबाव में आरएसएस

प्रभु चावला ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि आरएसएस चुनावी राजनीति और विपक्ष के दबाव में आ गया लगता है. आरएसएस अब 100 साल पूरे होने पर वास्तविक राजनीति की वास्तविकताओं के साथ तालमेल बिठाना सीख रहा है. इससे पहले कभी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और जातिगत भेदभाव के लिए निशाना बनाने वाले ऐसे आक्रामक विपक्ष का सामना नहीं करना पड़ा. अतीत में आरएसएस ने उन आरोपों को नजरअंदाज कर दिया जिन्हें वह प्रेरित आरोप मानता था. लेकिन हाल ही में इसने हिंदू धर्म की एक एकीकृत शक्ति के रूप में अपनी विश्वसनीयता, स्वीकार्यता और प्रभावकारिता को बचाने के लिए अपने वैचारिक दुश्मनों से सीधे भिड़ना चुना है. पिछले सप्ताह आरएसएस नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया है कि वह जाति सर्वेक्षण और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दोनों के खिलाफ नहीं है. केरल में अपने अग्रणी संगठनों के प्रमुखों सहित 300 से अधिक वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक के बाद आरएसएस प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने ऐसी घोषणा की.

प्रभु चावला लिखते हैं कि संघ परिवार के योद्धा आरएसएस के रुख में बदलाव के समय को लेकर हैरान हैं. आरएसएस बिना किसी भेदभाव के हिंदू एकता पर अड़ा रहा है. कई वरिष्ठ नेताओं ने जाति-आधारित आरक्षण के खिलाफ सक्रिय रुख अपनाया है. 2015 में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आरक्षण नीति की समीक्षा करने का आह्वान किया था, इसके राजनीतिकरण की आलोचना की थी. बाद में जनवरी 2017 में मनमोहन वैद्य ने जोर देकर कहा कि एससी, एसटी के लिए आरक्षण एक अलग संदर्भ में पेश किया गया था. संविधान में उनके साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए इसका प्रावधान किया गया था. यह हमारी जिम्मेदारी थी. इसलिए उनके लिए आरक्षण संविधान की शुरुआत से ही है. आगे चलकर दत्तात्रेय होसबोले और वैद्य ने संयुक्त बयान में दोहराया कि संविधान के अनुसार एससी, एसटी और ओबीसी को जाति-आधारित आरक्षण जारी रहना चाहिए. जब तक हिंदू समाज में जातिगत भेदभाव मौजूद है तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘एक्ट ईस्ट’ पर सक्रिय भारत

जयंत जैकब ने डेक्कन हेराल्ड में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का ब्रुनेई और सिंगापुर दौरा दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ रिश्ते को मजबूत बनाने के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं. दो दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद पूर्व की ओर भारत की नीति में बदलाव देखने को मिल रहा है. भारत की रणनीतिक और आर्थिक जरूरतें और पूरब के देशों से जुड़ने की आवश्यकताएं रेखांकित हुई हैं. विस्तारवादी चीन के विकास और क्षेत्रीय राजनीतिक नजरिए से नये सिरे पैदा हो रही अमेरिकी दिलचस्पी के मद्देनजर भारत निष्क्रिय नहीं रह सकता. दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं. पीवी नरसिंहाराव ने 1990 के दशक में एक्ट इस्ट पॉलिसी शुरू की थी. 1947 में जवाहर लाल नेहरू ने एशियान रिलेशनशिप कॉन्फ्रेंस किया था और आगे चलकर 1955 में इंडोनेशिया में बांडुंग कॉन्फ्रेंस में भी भूमिका निभाई थी. लेकिन आगे चलकर दक्षिण-पूर्व एशिया अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच शीत युद्ध का मैदान बन गया जिसके परिणामस्वरूप वियतनाम युद्ध हुआ.

जयंत जैकब ने लिखा है कि राव के सत्ता में रहने के दौरान समय के साथ-साथ नयी विश्व व्यवस्था क्षितिज पर आने लगी थी. दक्षिण-पूर्व के कई देश ‘एशियन टाइगर्स’ कहे जाने लगे थे. हालांकि ग्लोबल ट्रेड में भारत की हिस्सेदारी तब बहुत कम थी. 1992 में भारत आशियान का सेक्टोरल डायलॉग पार्टनर बना और चार साल बाद फुल डायलॉग पार्टनर बना. कंबोडिया में 2002 में जब पहला पार्टनरशिप समिट हुआ तो तब सिंगापुर के प्रधानमंत्री गोह चुक टोंग ने भारत और चीन को ‘आशियानी विमान के दो विंग्स’ बताया था.

2014 में प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व के लिए बृहत और विस्तारित नीति का एलान किया. इसे ‘एक्ट ईस्ट’ के तौर पर जाना गया. दक्षिण चीन सागर में स्थित ब्रुनेई अमेरिका और चीन के बीच मूक मगर प्रभावी भूमिका निभा रहा है. भारतीय प्रधानमंत्री की पहली ब्रुनेई यात्रा इस वजह से महत्वपूर्ण है. ब्रुनेई अमेरिका के साथ सैन्य साझेदारी कर रहा है तो चीन के साथ बेल्ट एंड रो इनीशिएटिव योजना के साथ भी जुड़ा है. अब वह भारत के साथ भी रणनीतिक साझेदारी की दिशा में आगे बढ़ रहा है. सिंगापुर भारत में सबसे बड़ा एफडीआई का स्रोत है. बाजार का बेहतर दोहन भारत तभी कर सकता है जब यह कृषि प्रधान सेवाओं के साथ उपस्थित हो. राजनीतिक रूप से अस्थिर म्यांमार ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी को ऊत्तर पूर्व क्षेत्र में जरूर नुकसान पहुंचाया है. मगर, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ जुड़ने का और गंभीर प्रयास भारत कर सकता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फिर डराने लगी हैं एसिड अटैक की घटनाएं

हिन्दुस्तान टाइम्स में सुनीता एरॉन ने लिखा है कि एसि़ड अटैक की घटनाएं बढ़ने लगी हैं क्योंकि दूसरे अपराध पर समाज का ध्यान है. सात वर्षीय बेटी जब एसिड अटैक की शिकार अपनी मां लक्ष्मी को गले लगाते हुए कहती हैं, ”मुझे तुम्हारा चेहरा बहुत सुंदर लगता है, अब और भी सुंदर”, तो मां को बहुत सुकून मिलता है. लक्ष्मी जब 15 साल की थी तब 32 वर्षीय व्यक्ति ने उस पर एसिड फेंक दिया था क्योंकि उसने उसके शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था. तब से लक्ष्मी ने एसिड अटैक के सर्वाइवर्स के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. उसने कई पुरस्कार जीते हैं. लेकिन, कोई भी पुरस्कार अपनी बेटी की इस तारीफ से बढ़कर नहीं. इसने मां को बेहद खुशी दी है.

सुनीता एरॉन लिखती हैं कि पीहू ने जब चार साल की उम्र में अपनी मां से पूछा था कि वह बाकी लोगों से अलग क्यों दिखती हैं तो उसके मासूम सवालों का जवाब खामोशी से ही दिया गया था. लक्ष्मी अपनी बच्ची से भयानक विवरण साझा करना नहीं चाहती थीं क्योंकि वह अपनी बेटी को डर का माहौल नहीं देना चाहती थी. लक्ष्मी और पीहू अन्य एसिड अटैक सर्वाइवर्स के साथ 2014 में एचटी वीमेन अवार्ड्स इवेंट में एक फैशन शो ‘आई एम ब्यूटीफुल’ का मंचन करने के बाद लखनऊ में हिन्दुस्तान टाइम्स के कार्यालय गये थे.

पीहू को आखिरकार अपने जवाब मिल गये. सात साल की उम्र में पीहू ने यू ट्यूब चैनल से वो सबकुछ खंगाल लिया जिससे उसकी मां के दर्दनाक अतीत के बारे में जाना जा सकता था. आंसुओं के साथ उसने अपनी मां को गले लगाया और कहा, “मुझे आपका चेहरा पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रहा है, अब और भी खूबसूरत.” लक्ष्मी कहती हैं कि यह मेरे जीवन की सबसे अच्छी तारीफ थी. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2022 में एसिड हमलों के 35 मामले और एसिड हमले के सात प्रयासों के साथ पश्चिम बंगाल शीर्ष पर है. इसके बाद उत्तर प्रदेश है जहां ऐसे 25 मामले और एक कोशिश की घटनाएं सामने आयी हैं. 2022 में 124 एसिड हमले और 140 ऐसी कोशिशें दर्ज हुईं. लक्ष्मी बताती हैं कि दुकानदारों में जागरुकता फैलाने के बाद वे खुद ही एसिड ना बेचने का फैसला कर रहे हैं. लेकिन, ऐसी कोशिशें देशव्यापी होनी चाहिए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×