सिखों की भावना से ना खेले जाए
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि खालिस्तान के लिए समर्थन पंजाब में नहीं हैं. ऐसे में खालिस्तान समर्थक की हत्या करने का काम भारत के लिए प्राथमिकता नहीं हो सकती. कनाडा और अमेरिकी मीडिया में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का ब्योरा इस तरह से छापा गया है मानो भारत का इस हत्या के पीछे हाथ हो. फिर भी अमेरिकी अखबारों ने फाइव आज नाम की जासूसी संस्था के दावों पर पूरा भरोसा किया. कनाडा के आरोपों का भारत ने सीधा जवाब दिया है.
तवलीन सिंह का मानना है कि देश में चुनाव नजदीक है. नरेंद्र मोदी जानते हैं कि खालिस्तानियों के साथ सख्ती से पेश आने पर मतदाता उनको शाबाशी देंगे. पिछले लोकसभा चुनाव के समय सर्जिकल स्ट्राइक से चुनावी फायदा हुआ था.
ऐसे में संभव है कि आरोप सच हों. इस दावे के आधार पर लेखिका ने न्यूयॉर्क में भारत के विदेश मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों से बातचीत का हवाला दिया है जिसमें सबूत नहीं होने की बात कही गयी है.
तवलीन सिंह सवाल उठाती हैं कि उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि नरेंद्र मोदी हासिल क्या करना चाहते हैं. सिखों को निशाना बनाकर चुनाव जीतने की कोशिश का बेहिसाब नुकसान होने वाला है.
इंदिरा गांधी की सरकार में भिंडरावाले को स्वर्ण मंदिर का उपयोग करने देने और आखिरकार ऑपरेशन ब्लू स्टार करने का जिक्र भी लेखिका करती हैं. तवलीन लिखती हैं कि भारतीय अखबारों ने जस्टिन ट्रूडो पर सारा दोष डाला है. मगर, न्यूयॉर्क से निज्जर की हत्या को देखने पर पता चलता है कि इस घटना से भारत को काफी बदनामी मिली है.
गुरुत्वाकर्षण केंद्र अब नई दिल्ली से रियो डी जेनेरियो!
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि ‘अतिशयोक्ति’ शब्द को समझना हो तो सितंबर 2023 के लिए आरबीआई के बुलेटिन से इस वाक्य को पढ़ सकते हैं- “सितंबर 2023 में, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण केंद्र भारत में स्थानांतरित हो गया क्योंकि सबसे शक्तिशाली देशों, देशों के समूह और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेता नई दिल्ली में एकत्र हुए.”
लेखक कटाक्ष करते हैं कि आरबीआई के अनुसार गुरुत्वाकर्षण का केंद्र 2021 में रोम, 2022 में बाली और 2023 में नई दिल्ली में स्थानांतरित हो गया और 2024 में रियो डी जेनेरियो में स्थानांतरित हो जाएगा.
इसलिए हमने झटके महसूस किए: मणिपुर की आग 3 मई, 2023 को शुरू हुई और अभी भी जल रही है; कश्मीर में बार-बार आतंकवादी हमले हो रहे हैं; भूस्खलन और बाढ़ से हिमाचल प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में तबाही मच गयी है; अन्नाद्रमुक ने तमिलनाडु में अपने गठबंधन से बीजेपी को बेझिझक बाहर कर दिया है.
पी चिदंबरम ने ‘धर्मांतरण’ और ‘लव जिहाद’ की घटनाओं से आक्रामक तरीके से निपटने की बात कहने पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की खिंचाई की है. उन्होंने जानना चाहा है कि ईसाई संचालित स्कूलों और कॉलेजों में जाने वाले बच्चों में कितने लोगों को ईसाई धर्म में गुप्त रूप से शामिल करने के प्रयासों का सामना करना पड़ा है?
पी चिदंबरम ने बेरोजगारी की दर अगस्त 2023 में 8.1 फीसदी रहने, युवा बेरोजगारी दर 23.22 फीसदी पहुंच जाने और स्नातकों में 42 फीसदी बेरोजगारी दर रहने की ओर ध्यान खींचा है. मनरेगा के तहत काम मांगने वालों की संख्या 2023 में 1.9 करोड़ रही है. महंगाई बढ़ने से लेकर जीडीपी के प्रतिशत के रूप में घरेलू परिसंपत्तियां घटने का भी वे जिक्र करते हैं.
बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों पर लगाम
टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों (मेटा, एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, अल्फाबेट और ऐपल यानी एमएमएए) के विरुद्ध संघर्ष नया नहीं है. परंतु अब यह निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है.
इस माह के आरंभ में अमेरिका में अल्फाबेट और एमेजॉन के खिलाफ दो संभावित रूप से बहुत बड़े मुकदमे शुरू हुए. सन् 1998 में माइक्रोसॉफ्ट के विरुद्ध कदम के बाद यह संभवत: सबसे बड़ा मामला है. इस बीच यूरोप में कम से कम तीन ऐसे मामले सामने आए हैं जहां प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियों पर अरबों यूरो का जुर्माना लगाया गया. गूगल पे और ऐपल वॉलेट के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है.
नाइनन लिखते हैं कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के खिलाफ जो आरोप लग रहे हैं उनमें व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग और खोज के मामलों में भुगतानशुदा सामग्री को पहले दिखाना जैसी बातें शामिल हैं.
एक अध्ययन में पाया गया कि एमेजॉन के सर्चो बार के शुरुआती 20 नतीजों में से 16 विज्ञापन थे.
कर चोरी के आरोप भी हैं. मुट्ठीभर कंपनियों ने अपनी पहुंच और ताकत के दम पर सरकारों को चुनौती देना शुरू कर दिया. जुर्मानों से इन पर फर्क पड़ना खत्म हो गया. बेखौफ हो रहीं इन कंपनियों ने आक्रामक लॉबीइंग के जरिए उन सरकारों को जवाब दिया जिन्होंने उन पर नकेल कसने की कोशिशें कीं. यह सब तब हो रहा है जब बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के शेयर भाव 2022 में गिरी हैं. भारी छंटनी का दौर चला है. हालांकि हालात थोड़े सुधरे हैं मगर बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों का संघर्ष एक से अधिक मोर्चों पर जारी है.
हार कर भी विजेता
आदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि उत्तर प्रदेश के घोसी उपचुनाव में बीजेपी की हार हुई लेकिन योगी आदित्यनाथ की जीत ही हुई है. समाजवादी पार्टी के राजपूत उम्मीदवार को योगी का समर्थन होने का दावा भी बीजेपी समर्थक पीठ पीछे करते हैं. समाजवादी पार्टी से बीजेपी में आकर चुनाव लड़ रहे दारा सिंह चौहान की हार के पीछे कई कारण रहे जिनमें स्वयं बीजेपी का पूरा सहयोग नहीं मिलना अहम है. वैसे घोसी उपचुनाव नतीजे को ज्यादातर विश्लेषकों ने दलबदल करन वाले नेता की हार के तौर पर देखा है.
आदिति लिखती हैं कि बीएसपी को उम्मीदवार नहीं देने के लिए राजी किया गया. दारा सिंह के खिलाफ उम्मीदवार नहीं देने और सबक सिखाने की रणनीति पर बीएसपी इसलिए सहमत हो गयी क्योंकि दारा सिंह पहले बीएसपी से भी दगा कर चुके हैं.
एक कार्यकर्ता ने कहा, “प्रधान क्षत्रिय ने पना पूरा समर्थन सुधाकर सिंह के पीछे लगा दिया ताकि दिल्ली को दिखा सकें कि उत्तर प्रदेश का असली बॉस कोन है.” वे योगी आदित्यनाथ की बात कर रहे थे. यह ऐसी राजनीति का उदाहरण है जहां हारने वाला भी विजेता हो सकता है.
आदित्यनाथ ने दिखाया है कि प्रशासन की बात आने पर वह झुकने वाले नहीं हैं. केंद्र सरकार की कल्याण योजनाएं बिना किसी चूक के चल रही हैं. बल्कि इस योजना के कारण अनाज को बाजार तक में बेचा जा रहा है. प्रदेश में निवेश बढ़ रहा है और प्रशासन भी मांगें पूरी कर रहा है. योगी सजग हैं अपनी सियासत के प्रति और अपनी प्रतिष्ठा के प्रति भी. घोसी उपचुनाव यही दिखाता है. भविष्य के गर्भ में क्या है यह कोई नहीं जानता.
वहीदा जैसा नहीं है दूजा
पवन के वर्मा ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि वहीदा रहमान के अलावा दूसरी नायिका नहीं है जिन्होंने देव आनंद, दिलीप कुमार और राज कपूर तीनों के साथ सफलतापूर्वक जोड़ी बनायी, जिन्होंने पद्मश्री और पद्म भूषण सम्मान मिलने से पहले नेशनल फिल्म अवार्ड और तीन फिल्म फेयर अवार्ड जीते. वहीदा रहमान को 53वां दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया है.
लेखक मानते हैं कि अपने समय की नायिकाओं मीना कुमारी, नरगिस और मधुबाला की तुलना में वहीदा रहमान अधिक प्रतिभावान और आकर्षक थीं. वहीदा रहमान की बहू भूटान से है और लेखक ने भूटान में राजदूत रहने के दौरान राजपरिवार के साथ उस समारोह की चर्चा की है जिसमें वहीदा रहमान मौजूद थीं.
पवन के वर्मा ने लिखा है कि तेलुगू से हिन्दी फिल्मों तक वहीदा की सफलता के पीछे गुरुदत्त का हाथ रहा था. सीआईडी, प्यासा, कागज के फूल, चौदहवीं का चांद और साहिब, बीबी और गुलाम जैसी फिल्मों का जिक्र लेखक करते हैं. गुरुदत्त को वहीदा रहमान से मोहब्बत हो गयी थी. हालांकि वे शादीशुदा थे और तीन बच्चों के पिता थे.
महज 39 साल की उम्र में गुरुदत्त का निधन हो गया जो नशे के आदी हो चुके थे.
वहीदा का सफर आगे जारी रहा. 1965 में गाइड फिल्म से अपार सफलता हासिल करते हुए श्रेष्ठ नायिका के लिए फिल्म फेयर अवार्ड और बेस्ट नेशनल फिल्म अवार्ड उन्होंने जीते. ऑस्कर के लिए भी यह फिल्म नामित हुई. छह अन्य फिल्में भी हमेशा याद की जाएंगी- बीस साल बाद, कोहरा, तीसरी कसम, राम और श्याम, खामोशी. रेशमा और शेरा के लिए वहीदा को श्रेष्ठ नायिका का नेशनल फिल्म अवार्ड मिला. 1964 से 1969 के दौरान वहीदा रहमान बॉलीवुड की सबसे महंगी अभिनेत्री बनी रहीं. 85 साल की उम्र में भी वहीदा उतनी ही आकर्षक और खुबसूरत हैं.
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