उचित है आशावाद?
टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के वृद्धि पूर्वानुमानों में आशावाद नजर आ रहा है. विश्व बैंक ने 8.3 फीसदी और सरकार ने 10.5 फीसदी की दर से सुधार की बात कही है. वहीं, आईएमएफ ने इसके 9.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है. अगर महामारी के कारण बीते वर्ष अर्थव्यवस्था में वृद्धि की दर में 7.3 फीसदी की गिरावट को ध्यान में रखें तो भारत एक फीसदी जीडीपी वृद्धि दर हासिल कर सकता है. विश्व बैंक का कहना है कि बीते 80 साल में सुधार का यह बेहतर वर्ष साबित हो सकता है.
नाइनन जानना चाहते हैं कि यह आशावाद कहां से उपजा है? मुख्य आर्थिक सलाहकार का अगले वर्ष 8 फीसदी का वृद्धि अनुमान सुधार संबंधी उपायों के सकारात्मक नतीजों पर निर्भर है. विश्व अर्थव्यवस्था की अस्वाभाविक गति भी एक कारण हो सकती है. 2008 के वित्तीय संकट के पहले ऐसे ही हालात में भारत ने वृद्धि के सबसे बेहतरीन वर्ष देखे थे. सकारात्मक बात यह है कि संगठित क्षेत्र से उत्पादकता में सुधार देखने को मिल सकता है और यह असंगठित क्षेत्र को पीछे छोड़ देगा. महामारी ने कॉरपोरेट मुनाफे और कर राजस्व प्रवाह में भी भूमिका निभाई है. डिजिटलीकरण ने भी उत्पाकता बढ़ाने की आशा जगाई है.
लेखक के मुताबिक कुछ बातें महत्वपूर्ण हैं. सरकार का अत्यधिक आशावाद और सुधार संबंधी उपायों के कमजोर प्रदर्शन का इतिहास इनमें प्रमुख हैं. संरक्षणात्मक कानून के अभाव में जोमैटो और उबर जैसे एग्रीगेटर कारोबार वेंडरों पर दबाव बनाएंगे और विजेता-पराजित का विभाजन गहरा होगा. खपत में सुधार हुए बगैर नया निवेश नहीं आएगा. केवल सरकारी व्यय का सहारा रह जाएगा. मध्यम अवधि में वृद्धि दर में तेज इजाफा तभी हो सकता है जब अर्थव्यवस्था के सभी इंजन पूरी क्षमता से काम कर रहे हों.
रेप, जाति और सियासत
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि राजधानी दिल्ली के एक श्मशान घाट में एक दलित बच्ची के साथ बलात्कार की घटना के बाद प्रतिक्रियाओं ने राजनीति की संवेदनहीनता को उजागर किया है. बलात्कार और हत्या के बाद बच्ची की लाश भी जला दी गयी ताकि कोई सबूत बाकी ना रहे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पीड़ित परिवार को सांत्वना देने जरूर पहुंचे और पीड़ित परिवार से मिलकर उन्हें सांत्वना भी दी. मगर, केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार का कोई मंत्री या बीजेपी की कोई महिला नेता ही पीड़ित परिवार तक पहुंचे. उल्टे बीजेपी प्रवक्ता ने कांग्रेस की प्रांतीय सरकार में बलात्कार की घटनाओं का जिक्र कर राहुल गांधी पर राजनीति करने का आरोप लगाते रहे.
तवलीन सिंह ने लिखा है कि निर्भया की मां ने बहुत सही कहा है कि इस घटना में राजनेता यह बताने में व्यस्त रहे कि घटना उनके इलाके में नहीं हुई है या फिर दूसरों के इलाके में अधिक हुई है. लेखिका ने दिल्ली पुलिस की ओर से इस घटना पर दुख नहीं जताने की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महिला हॉकी टीम की जीत पर ट्वीट करते हैं लेकिन राजधानी दिल्ली में एक दलित बच्ची के साथ घटी घटना पर मौन रह जाते हैं.
बीजेपी की महिला नेताओं के पास दिल्ली हाट में शॉपिंग के लिए वक्त होता है लेकिन दिवंगत बच्ची के परिजनों के पास जाने का वक्त नहीं होता. निर्भया की घटना के समय आवाज़ बुलंद करने वाली स्मृति ईरानी ऐसी घटनाओं के समय प्रतिक्रियाविहीन हैं. लेखिका लिखती हैं कि नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा दिया है. यह नारा अच्छा है लेकिन यह तब तक बेमतलब है जब तक देश की हर बेटी अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करती.
महामारी में शिक्षा को भारी नुकसान
इंडियन एक्सप्रेस में पी चिदंबरम ने लिखा है कि महामारी में हर तरह के नुकसान की भरपाई हो सकती है लेकिन बच्चों की शिक्षा को जो नुकसान पहुंचा है उसकी भरपाई कैसे होगी? स्कूली शिक्षा गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर देती है. कॉलेज की शिक्षा के बाद यह अवसर बढ़ जाते हैं. आज स्कूली शिक्षा की जो स्थिति है उसके मुताबिक कक्षा पांच में पंजीकृत बच्चों में से कक्षा दो के लिए निर्धारित पाठ पढ़ सकने वालों की संख्या 50 फीसदी होती है. सातवीं कक्षा में पहुंचे बच्चों में 73 फीसदी ही कक्षा दो के पाठ पढ़ पाते हैं. ऐसे में 16 महीने से स्कूलों के बंद रहने के बीच शिक्षा को हुए नुकसान को समझा जा सकता है.
ऑनलाइन शिक्षा, आंतरिक मूल्यांकन, स्वचालित पदोन्नति, दसवीं और बारहवीं के विद्यार्थियों को बिना परीक्षा के उत्तीर्ण करने की खूब चर्चा रही. एक शिक्षाविद् के हवाले से यूनेस्को और यूनिसेफ के साझा बयान के हवाले से लेखक ने बताया है कि ‘स्कूलों को बंद करने के बारे में बाद में और फिर से खोलने के बारे में पहले विचार होना चाहिए.‘ लेखक बताते हैं कि हकीकत यह है कि केवल 6 प्रतिशत ग्रामीण परिवार और 25 प्रतिशत शहरी परिवारों के पास ही कंप्यूट्र हैं. केवल 17 प्रतिशत ग्रामीण और 42 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में इंटरनेट की सुविधा है. स्कूलों को फिर से खोलने और बच्चों का टीकाकरण अवश्य कराए जाने की लेखक वकालत करते हैं और लिखते हैं कि हर सुराख से बाहर निकलने का रास्ता टीकाकरण है चाहे वह अर्थव्यवस्था, शिक्षा, सामाजिक मेलजोल या त्योहारों से संबंधित हो.
विकराल समस्या का हिस्सा भर है पेगासस
एसए अय्यर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि पेगासस बहुत विकराल समस्या का छोटा हिस्सा भर है. वैश्विक मीडिया ने पेगासस के बारे में पता लगाया हैकि यह टेलीफोन हैकिंग सॉफ्टवेयर है जो इजराइल में इजाद हुआ और कथित रूप से सरकारों को बेचा गया और इसका इस्तेमाल दुनिया भर में नेताओँ, पत्रकारों, स्वयंसेवी संगठनों और दूसरों के खिलाफ हुआ. भारत मे 300 लक्ष्य का पता चला है जिनमें राहुल गांधी, दो वर्तमान केंद्रीय मंत्री और 40 पत्रकार शामिल हैं.
अय्यर लिखते हैं कि वैश्विक मीडिया के इस प्रयास की सराहना होनी चाहिए लेकिन यह भी सच है कि यह मसला सिर्फ प्रेस की स्वतंत्रता का सीमित नहीं है. साइबर स्नूपिंग राष्ट्रीय सुरक्षा और कॉरपोरेट स्पर्धा को देखते हुए महत्वपूर्ण है. सभी देशों ने साइबर स्नूपिंग के सैकड़ों वर्जन की खरीद और इस्तेमाल किए हैं जो पेगासस से अधिक सशक्त रहे हैं. लेखक याद दिलाते हैं कि अमेरिका ने एंजिला मर्केल की जासूसी करायी थी. निश्चित रूप से उसने शी जिनपिंग, व्लादिमिर पुतिन, बोरिस जॉनसन, नरेंद्र मोदी और दूसरे नेताओं को भी बख्शा नहीं होगा. कोई यह दावा नहीं कर सकता कि ये नेता हैकर प्रूफ हो गये हों.
एसए अय्यर बताते हैं कि चीन, रूस, अमेरिका, भारत सबमें हैकिंग की भी क्षमता है और साइबर डिफेंस की भी. दूसरे विश्वयुद्ध में ब्रिटेन ने जर्मनी के मिलिट्री कोड को डीकोड कर लिया था और अमेरिका ने जापान के. यही जीत की वजह भी बना. भारत ने भी पूरा जोर लगाया होगा कि वह शी जिनपिंग, इमरान खान और चीन-पाकिस्तान के दूसरे संभावित सिस्टम की उसी तरह हैकिंग कर ले जैसी कि हमारे यहां हुई है. यहां नैतिकता की बात नहीं आती. कॉरपोरेट की दुनिया पूरी तरह से हैकिंग के दायरे में है. लेखक बताते हैं चार साल पहले की स्थिति थी कि 52 प्रतिशत प्राइवेट हैकर और 48 प्रतिशत शासकीय हैकर सक्रिय थे. विश्व के 70 फीसदी वेबसाइट हैकिंग से पीड़ित हैं. वायरस से संक्रमित हैं. संक्षेप में, निजता महत्वपूर्ण है लेकिन यह पेगासस से जुड़ा बहुत छोटा पहलू है.
कराधान कानून में संशोधन समझदारी भरा कदम
बिजनेस स्टैंडर्ड ने संपादकीय लिखा है कि सरकार ने कराधान कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 की तारीफ की है. इसके जरिए 2012 से लागू पिछली तारीख से कर की मांग को प्रभावी ढंग से कम किया है. पुराने कानून के तहत आयकर अधिकारी पुराने लेन-देन पर कर लगा सकते थे. पुरानी तिथि से कर मांग के प्रावधान ने कई विवादों को जन्म दिया. इनमें प्रमुख हैं 2012 से जारी वोडाफोन और सरकार का मामला. इसके अलावा केयर्न का मामला भी शामिल है. सरकार ने यह भी माना है कि व्यापक तौर पर निवेशकों का मानना है कि इस तरह के पिछली तारीख से प्रभावी संशोधन कर निश्चितता के सिद्धांत के खिलाफ है. 2014 के बाद आयी बीजेपी सरकार ने इस संशोधन में 7 साल लगा दिए जबकि उसने 2012 में ही इसका विरोध किया था.
बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि अगर 2012 के संशोधन को पहले खत्म कर दिया होता तो शायद हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी से बचने का मौका मिल जाता जिसका सामना हाल के दिनों में करना पड़ा है. उदाहरण के लिए गत दिसंबर में एक पंचाट ने केयर्न को 1.2 अरब डॉलर की क्षति पूर्ति और 50 लाख डॉलर का ब्याज या विधिक लागत चुकाने का निर्णय दिया. ताजा विधेयक सरकार को यह इजाजत देता है कि वह केयर्न के सामने सौदे की पेशकश करे जहां वह मध्यस्थता में घोषित कुल राशि का एक हिस्सा चुकाएगी और केयर्न सभी मामलों को समाप्त करे और वादा करे कि क्षतिपूर्ति का मामला नहीं चलाएगी.
अखबार का यह भी मानना है कि सरकार कर निश्चितता बढ़ाने के लिए ऐसा नहीं कर रही है बल्कि इसकी वजह कानूनी हार है. अब सरकार को प्रभावित कंपनियों के साथ मामले को निपटाने में उदारता दिखानी चाहिए.
टोक्यो ओलंपिक में केरल की लड़कियां क्यों रहीं नदारद?
एमजी राधाकृष्णन ने टेलीग्राफ में ध्यान दिलाया है कि 1984 में पीटी उषा एक सेकेंड के दसवें हिस्से के अंतर से चूक गयी थीं. फिर भी उन्होंने इतिहास रचा था. वर्षों बाद उषा ने खुलासा किया था कि किस तरह अंतिम 35 मीटर में उन्होंने एनर्जी खो दी थी. पौष्टिक आहार की कमी ही वास्तव में खलनायक साबित हुई थी. ओलंपिक कैंप में एक हफ्ते से अधिक समय तक पीटी उषा के भोजन में महज कांजी और काडुमंगा थे जो चावल और आम से बने भोज्य पदार्थ होते हैं.
जाहिर है कि पीटी उषा को मिला भोजन अमेरिका की खिलाड़ी को उपलब्ध सीझे आलू और उबले हुए चिकन के सामने फीका था. फिर भी उषा देश की प्रेरणा बन गयीं. केरल में खास तौर से बड़ी संख्या में लड़कियां एथलीट की ओर प्रेरित हुईं. बाद के ओलंपिक पर भी पीटी उषा के प्रदर्शन का असर रहा. पीटी उषा ने 1980 में मॉस्को ओलंपिक में पहली बार हिस्सा लिया था. उसके बाद से 2016 के रियो ओलंपिक तक केरल की 19 लड़कियां गेम में हिस्सा ले चुकी थीं.
टोक्यो ओलंपिक 2020 जो महामारी के कारण 2021 में हो रहा है, खासतौर से इसलिए महत्वपूर्ण है कि बीते चार दशक में ऐसा पहली बार हो रहा है जब केरल की एक भी लड़की इसमें शामिल नहीं है. 127 सदस्यों वाले भारतीय दल में 56 महिलाएं हैं. 18 सदस्यों वाले एथलीट समूह में 9 महिलाएं हैं. यह आश्चर्यजनक इसलिए भी है क्योंकि केरल में महिलाओं का दबदबा रहा है जहां 16 अर्जुन अवार्ड विजेताओं में 14 महिलाएं हैं. केरल की तीन लड़कियां ट्रायल के दौरान पटियाला में असफल हो गयीं. इसकी वजह महामारी में ट्रेनिंग नहीं मिलना बताया गया. केरल स्वास्थ्य और शिक्षा में बेहतर है. फिर भी घरेलू हिंसा और महिलाओँ में आत्महत्या की दर बढ़ रही है. रोजगार घट रहे हैं. इस तरह महामारी के अलावा कई ऐसे पहलू हैं जो केरल की महिलाओं के लिए खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के ख्याल से बाधक साबित हुए हैं.
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