पीएनबी घोटाले को भी भूल जाएंगे?
अपने देश में कई बड़े आर्थिक घोटाले हुए हैं लेकिन शायद ही किसी में दोषियों को सजा मिली है. टाइम्स ऑफ इंडिया में स्वामीनाथन एस अंकलसरैया ने लिखा है कि 11,300 करोड़ रुपये के इस घोटाले एक सप्ताह बाद भी हमें इसका थोड़ा भी पता नहीं चल सका है कि इसके लिए दोषी कौन हैं. साफ है कि बैंक अधिकारी और उनके गॉडफादर्स करप्ट हैं. यह भी साफ है कि बैंक सिस्टम और सुपरविजन में तमाम खामियां हैं. लेकिन इस घोटाले में हम अब तक किसी बड़े नाम को सामने नहीं ला सके हैं.
अगर किसी वित्त मंत्री के कार्यकाल में कोई घोटाला होता है तो उसके लिए वह जिम्मेदार है. हर बैंक डील की निगरानी की उम्मीद वित्त मंत्री से नहीं की जा सकती है, लेकिन जिम्मेदारी उसकी बनती है. दूसरी बड़ी बात यह कि आरबीआई सीधे बैंकों की निगरानी करता है.बैंक घोटालों के लंबे इतिहास को देखते हुए आरबीआई को अब कोई ऐसा तरीका अपनाना चाहिए, जिससे तुरंत इस तरह के फ्रॉड का पता कर उसे नाकाम किया जा सके.
इस घोटाले में पीएनबी ने बहुत बड़ी रकम गंवाई है. जब्त संपत्तियों से इसके एक छोटे हिस्से की भरपाई हो सकेगी. लेकिन क्या सीबीआई, ईडी और दूसरी एजेंसियों का ट्रैक रिकार्ड ऐसा रहा है कि हमें यह विश्वास हो जाए कि दोषियों को पकड़ कर दंडित किया जाएगा. कोई जबरदस्त और अऩंत आशावादी ही ऐसा सोच सकता है.
पीएनबी स्कैम : आखिर उस इंद्रधनुष की योजना का क्या हुआ?
दैनिक जनसत्ता में पी चिदंबरम ने पीएनबी स्कैम को लेकर तल्ख सवाल किए हैं. वह लिखते हैं-सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक वांछित हैं या अवांछित? ऐसा लगता है कि जवाब के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. पीएनबी स्कैम के लिए एनडीए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने लिखा है- कमान संभालते ही राजग सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अध्यक्षों और निदेशकों के कार्यालय अलग-अलग कर दिए.
इसने बड़े मनमाने ढंग से अध्यक्षों के तबादले किए इसने नियम बदल कर दो महत्त्वपूर्ण सरकारी बैंकों के प्रबंध निदेशक के पद पर दो बाहरी लोगों को बिठा दिया. कुछ ही दिनों में, राजग सरकार ने फिर नियम बदल दिए और कार्यकारी निदेशक को प्रबंध निदेशक के रूप में पदोन्नत करने के पुराने नियम पर वह लौट आई.
वर्ष 2015 में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सुधार के लिए खूब धूमधाम से ‘इंद्रधनुष’ योजना की घोषणा की थी. पीएनबी स्कैम के बाद यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इस इंद्रधनुष योजना का क्या हुआ.
बैंकों के निजीकरण की चर्चा क्यों नहीं?
तवलीन सिंह ने दैनिक जनसत्ता में नीरव मोदी के घोटाले के बारे में लिखा है- नीरव मोदी के बारे में हम बहुत कुछ जान गए पिछले हफ्ते. उनके आलीशान घर देख लिए हैं, उनकी सुंदर दुकानें देख ली हैं और यह भी जान गए हैं कि दुनिया के कौन-से शहरों में ये दुकानें हैं. हमने उनकी महंगी विदेशी गाड़ियां देख ली हैं और यह भी मालूम है.
हमें कि जब उनके घर में डिनर पर लोगों को बुलाया जाता था तो उनकी पत्नी सूप में थर्मामीटर डाल कर देखती थीं कि ज्यादा गरम तो नहीं है मेहमानों के लिए. मेहमान उनके बॉलीवुड और हॉलीवुड के सितारे हुआ करते थे, आला अधिकारी हुआ करते थे और कुछ राजनेता भी. यह भी जान गए हैं हम कि न्यूयॉर्क में वे कहां रहते हैं. यह सारी जानकारी हमको मिली है मेरे पत्रकार बंधुओं की खोजी पत्रकारिता के जरिये.
बहरहाल, वित्तमंत्री ने पिछले हफ्ते स्वीकार किया कि आरबीआई ने लापरवाही दिखाई होगी जो इतनी बड़ी चोरी पहले नहीं पकड़ी गई थी. लेकिन इस बार मंत्रीजी, यह काफी नहीं है. आपको यह भी बताना होगा हमें कि अभी तक सरकारी बैंकों के निजीकरण की चर्चा तक क्यों नहीं हो रही है.
जानबूझकर की गई ट्रुडो की अनदेखी
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स के अपने कॉलम में कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रुडो के भारत दौरे में उठे सवालों का जिक्र किया है. करन लिखते हैं कि पीएम ने न सिर्फ ट्रूडो की अनदेखी की बल्कि उनके परिवार को रिसीव करने के लिए कैबिनेट का कोई अहम मंत्री भी नहीं गया.
ट्रुडो की अगवानी के लिए उस राज्य मंत्री को भेजा, जिसका नाम भी शायद लोगों ने नहीं सुना होगा. करन ने लिखा, आश्चर्य की बात तो यह है कि मोदी जी ट्रुडो ने स्वागत में कोई ट्वीट नहीं किया.
करन लिखते हैं कि ट्रुडो की अनदेखी क्या एक गलती थी. नहीं बिल्कुल नहीं. यह जान बूझ कर की गई थी.
ये चीजें यूं ही नहीं होतीं. यह सुनियोजित तरीके से की जाती हैं. और इसके पीछे संदेश होता है. यह साफ नहीं होता लेकिन संकेतों में दिया जाता है. ऐसे संदेशों का मतलब कई संदर्भों में निकाला जा सकता है.
गांधी पर इस आंदोलन का असर
अमर उजाला में रामचंद्र गुहा ने उस आंदोलन का जिक्र किया है, जिसका गांधी के जीवन पर बड़ा प्रभाव पड़ा. यह सेफ्रिजेट्स आंदोलन था. ब्रिटेन में महिला मताधिकार के लिए संघर्ष से जुड़े सेफ्रिजेट्स आंदोलन की इस महीने जन्मसदी चल रही है. ब्रिटिश महिलाओं का यह ऐसा आंदोलन था, जिसका बेहद गहरा असर गांधी पर पड़ा. इसे उन्होंने अपने लेखन और सत्याग्रह दोनों में रेखांकित किया.
गुहा लिखते हैं सौ साल पहले फरवरी 1918 में इसी महीने इंग्लैंड के राजा ने एक विधेयक को मंजूरी दी थी जिसमें 30 साल की अधिक की उम्र की ऐसी महिलाओं को मताधिकार का प्रावधान था जिनकी संपत्ति कम से कम पांच पाउंड की हो. इसकी जन्मसदी पर इंग्लैंड में किताबों और आलेखों की बाढ़ आ गई है, जिनमें लोकप्रिय आंदोलन को याद किया गया है, जिसके कारण महिलाओं को मताधिकार (उस समय भले ही आंशिक) मिल सका.
गुहा लिखते हैं सफ्रिजेट आंदोलन और इसे आगे बढ़ाने की कहानी एक ब्रिटिश घटना हो सकती है लेकिन इसने दक्षिण अफ्रीका में विरोध कर रहे गांधी के आंदोलन के तरीके को बेहद प्रभावित किया. जब वह भारत लौटे तब भी इसका प्रभाव गांधी पर रहा और उन्होंने इसका इस्तेमाल किया, खास कर देश की आजादी के वक्त पुरुषों के साथ महिलाओं को भी मताधिकार देने में.
काश! बॉलीवुड में भी बनती ब्लैक पैंथर जैसी फिल्म
टाइम्स ऑफ इंडिया में आकार पटेल ने हॉलीवुड की फिल्म ब्लैक पैंथर के सिलसिले में मुख्यधारा की संस्कृति से बाहर देखने की वकालत की है. पटेल लिखते हैं कि हमारे यहां मुख्यधारा की संस्कृति के अलावा दूसरी संस्कृतियां अजनबी की तरह ही होती हैं.
आकार पटेल सवाल करते हैं का आदिवासी फूड कैसा होता है. साफ है कि वे पालक पनीर या तंदूरी चिकन नहीं बनाते होंगे. फिर आदिवासी विवाह समारोह कैसे होते हैं.
एक गुजराती आदिवासी को छत्तीसगढ़ में रहने वाले आदिवासी से क्या चीज कनेक्ट करती है. सचाई यह है कि हममें से ज्यादातर लोगों को इस बारे में पता नहीं है. क्या हम इन सवालों के जवाब जानने की परवाह भी करते हैं? जब हम ऐसा कहते हैं तो खुद को भी कटघरे में खड़ा करते हैं.इसमें हम और आप के साथ हम सभी हैं. वह लिखते हैं कि काश
बीजेपी के लिए अपशकुन?
और अब आखिर में इंडियन एक्सप्रेस के इनसाइड ट्रैक में कूमी कपूर की टिप्पणी. वह लिखती हैं-पिछले सप्ताह जब दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर पीएम नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के नए आलीशान दफ्तर का उद्घाटन किया तो सबकुछ ठीक नहीं रहा.
भले ही यह शानदार दफ्तर डेढ़ साल में बन कर तैयार हो गया लेकिन पीएम उद्घाटन के वक्त नाखुश दिखे. हुआ यूं कि जब मोदी ने उद्घाटन पट्टी पर लगे पर्दे को हटाने के लिए स्विच दबाया तो यह यह हटी ही नहीं. आखिरकार राजनाथ सिंह को हाथ से यह परदा हटाना पड़ा. पीएम इस गड़बड़ी पर नाखुश दिखे. शायद इस गड़बड़ी की वजह थी आडवाणी का इसे उल्टी दिशा में खींचना.
लोग याद करते हैं जब राजीव गांधी ने जब 1989 में राजेंद्र प्रसाद रोड पर कांग्रेस के नए दफ्तर जवाहर भवन का उद्घाटन किया था तो बिजली चली गई थी. मजबूरन उन्हें अपना भाषण छोटा करना पड़ा. इसे अपशकुन माना गया. कांग्रेस लोकसभा चुनाव हार गई थी. लोग बीजेपी दफ्तर की गड़बड़ी को भी इससे जोड़ कर देख रहे हैं.
क्विंट और बिटगिविंग ने मिलकर 8 महीने की रेप पीड़ित बच्ची के लिए एक क्राउडफंडिंग कैंपेन लॉन्च किया है. 28 जनवरी 2018 को बच्ची का रेप किया गया था. उसे हमने छुटकी नाम दिया है. जब घर में कोई नहीं था,तब 28 साल के चचेरे भाई ने ही छुटकी के साथ रेप किया. तीन सर्जरी के बाद छुटकी को एम्स से छुट्टी मिल गई है.
लेकिन उसे अभी और इलाज की जरूरत है ताकि वो पूरी तरह ठीक हो सके. छुटकी के माता-पिता की आमदनी काफी कम है, साथ ही उन्होंने काम पर जाना भी फिलहाल छोड़ रखा है ताकि उसकी देखभाल कर सकें. आप छुटकी के इलाज के खर्च और उसका आने वाला कल संवारने में मदद कर सकते हैं. आपकी छोटी मदद भी बड़ी समझिए. डोनेशन के लिए यहां क्लिक करें.
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