यूपी: पुलिस मुठभेड़ की बड़ी कीमत
आकार पटेल ने टाइम्स ऑफ इंडिया के अपने कॉलम में यूपी में बढ़ते पुलिस मुठभेड़ों पर गंभीर चिंता जताई है. उन्होंने 1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी के शासन के दौरान मुंबई में फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की याद दिलाते हुए कहा है कि यूपी में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है.
आकार लिखते हैं- मानवाधिकार आयोग ने नोएडा में हुए 25 साल के युवक को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने का संज्ञान लिया है, जिसे अंजाम देने वाले सब-इंस्पेक्टर का कहना था कि इससे उसे प्रमोशन मिलेगा. पिछले दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ‘
हर किसी को सुरक्षा की गारंटी मिलनी चाहिए. लेकिन जो समाज की शांति भंग करना चाहते हैं और बंदूक में विश्वास करते हैं उन्हें बंदूक की भाषा में ही जवाब देना चाहिए. मैं प्रशासन से कहूंगा कि वह यह इस बात की चिंता न करे कि सरकार क्या कहेगी.
आकार लिखते हैं- बहरहाल, ऐसे मामलों पर कोर्ट का ध्यान खींचना मुश्किल होगा क्योंकि उन्मत मीडिया की खबरों को देख कर मध्य वर्ग को भी लगता है कि अपराधियों को एनकाउंटर में ही मार गिराना चाहिए. लेकिन इससे अपराध की सजा देने की प्रक्रिया बीमार हो जाएगी और इसका खामियाजा आखिरकार यूपी की जनता को ही भुगतना होगा.
मोदी हारे तो राजनीतिक अस्थिरता का खतरा
टाइम्स ऑफ इंडिया में स्वप्न दासगुप्ता ने अपने कॉलम में पीएम नरेंद्र मोदी के कामकाज के स्टाइल और उऩके जोखिम लेने की क्षमता की भरपूर तारीफ की है. दासगुप्ता मोदी के आरएसएस के साथ संतुलन बनाने और उसके दबाव का सामना करने की उनकी क्षमता के भी कायल हैं.
वह लिखते हैं- गवर्नेंस के मुद्दे पर मोदी बेधड़क हैं. वह कैलकुलेट रिस्क लेना जानते हैं. चाहे नोटबंदी का मामला हो या जीएसटी लागू करने का या फिर पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक का.फिर चाहे आधार का सवाल या हेल्थ इंश्योरेंस लागू करने का.
बहरहाल, राजस्थान के उपचुनावों में बीजेपी की हार से दिल्ली में बैठे लोगों को लग रहा है कि मोदी को हराया जा सकता है. लेकिन वह 2019 का चुनाव हारते हैं तो देश अस्थिर राजनीतिक दौर में चला जाएगा. राहुल गांधी, ममता बनर्जी और शरद पवार, तीनों का नजरिया उनकी महत्वाकांक्षा अलग-अलग हैं. एक बात तय है कि अगर मोदी हारते हैं तो भारतीय राजनीति पुराने अस्थिर दौर में चली जाएगी. लेकिन फिलहाल तो ऐसा लगता है कि न्यू इंडिया और मोदी एक दूसरे के पर्याय हैं.
हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम : बिना फंड का सबसे बड़ा जुमला
यूपीए शासन में वित्त और गृह मंत्री रहे पी चिदंबरम ने बजट में सरकार की ओर से घोषित हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम पर कई तथ्यों को सामने रख कर सवाल उठाए हैं. वह लिखते हैं- क्या भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था दिनोंदिन और विषमता-भरी होती जा रही है?
इस पृष्ठभूमि में अवश्य ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना को आलोचनात्मक नजरिए से देखा जाना चाहिए, जिसकी घोषणा बजट में धूम-धड़ाके से की गई यह ‘सरकार की ओर से वित्तपोषित दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य-योजना नहीं है’, यह बिना धन आवंटित किए, स्वास्थ्य पर सरकार का सबसे बड़ा ‘जुमला’ है. वर्ष 2016-17 के बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना की घोषणा की गई थी, जिसके तहत छह करोड़ परिवारों को एक लाख रु. के स्वास्थ्य बीमा का लाभ देना था.
कोई योजना न तो मंजूर की गई न लागू की गई न ही धन आबंटित हुआ, और इसे चुपचाप दफना दिया गया. और अब, उससे भी बड़ी एक योजना के जरिये दस करोड़ परिवारों को पांच लाख रु. के स्वास्थ्य बीमा का लाभ देने की घोषणा की गई है, पर एक रुपया भी मुहैया नहीं कराया गया है.
इस घोषणा के बाद, सरकार अपनी ऊर्जा, अपना वक्त और मानव संसाधन पहले से ही एक मरी हुई परिकल्पना में जान फूंकने के लिए लगाएगी. इस बीच, स्वास्थ्य क्षेत्र की उपेक्षा जारी रहेगी.
एंटी रोमियो स्कवाड के दौर में प्यार
हिन्दुस्तान टाइम्स में करन थापर ने लिखा है कि इस देश में अब उदात्त प्रेम और प्रेमी-प्रेमिकाओं के बीच समृद्ध रोमांस की परंपरा पर लव जिहाद और एंटी रोमियो स्कवाड का शोर हावी हो गया है.
करन लिखते हैं- जरा इन परेशान करने वाले आंकड़ों पर गौर कीजिये. योगी सरकार में बने एंटी रोमियो स्कवाड ने अब तक 21,37,520 लोगों से सवाल किए और इनमें से 9,33,099 को चेतावनी दी. 1706 एफआईआर दर्ज कराई गईं और 3,033 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई. 22 मार्च और 15 दिसंबर के बीच हर दिन एंटी रोमियो स्कवाड की ओर से लोगों को परेशान करने के छह मामले आए.
एंटी रोमियो स्कवाड में एक सब-इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबल होते हैं. वे यूपी में यूनिवर्सिटिज, कॉलेजों, पार्कों और दूसरे सार्वजनिक जगहों पर गश्त करते हैं. अफसोस कि यूपी में हाथ में हाथ थामे प्रेमी-प्रेमिकाएं बहुत कम जगहों पर नजर आते हैं. युवा प्रेम की दीवानगी पर एक सख्त पहरा बिठा दिया गया है. करन वेलेंटाइन पर पहला गुलाब हासिल करने के अपने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, अब यूपी में सौम्य प्रेम को लव जिहाद के हल्ले से शांत कर दिया गया है. जब आपको डर हो कि प्रेम की आपकी पहल आपको खुलेआम सजा दिलवा सकती है तो फिर आप क्यों आगे बढ़ेंगे.
सवाल बेहतरी का विचारधारा का नहीं
हिन्दुस्तान टाइम्स में मार्क टुली ने मोदी सरकार के उस विरोधाभास के बारे में लिखा है, जो आजकल साफ तौर पर पर दिख रहाहै. टुली लिखते हैं कि सत्ता हासिल करने के वक्त मोदी सरकार को कारोबारी समुदाय के हितों को रक्षक के तौर पर देखा गया था. उम्मीद जताई गई थी कि उनकी सरकार में सरकारी और सार्वजनिक सेक्टर की तुलना में प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा और उनकी गतिविधियों और सेवाओं से इकनॉमी की रफ्तार बढ़ेगी. लेकिन इसके बाद भूमि अधिग्रहण के संशोधित कानूनों की वजह से इसे राहुल गांधी की ओर से सूटबूट की सरकार का तमगा मिला. इसके बाद सरकार ने गरीब समर्थक की छवि अपनानी शुरू कर दी.
बहरहाल बजट में की गई हेल्थ इंश्योरेंस योजना की घोषणा और किसानों के लिए एमएसपी बढ़ाने के कदम के बाद लोगों ने सवाल करना शुरू किया है कि सरकार की नीतियां क्या हैं? वह बाजार समर्थक है या फिर सार्वजनिक और सरकारी सेक्टर के वर्चस्व वाली नीतियों की समर्थक.
इस पर मैं यह कहना चाहूंगा कि इकनॉमी को रफ्तार देने और लोगों को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सेवाएं देने के लिए जो नीतियां बनें उसके बेहतर नतीजे निकले. मैं चीन के सुधारवादी नेता देंग ज्याओपिंग के उस प्रसिद्ध कथन का समर्थक हूं, जिसमें उन्होंने एक कम्यूनिस्ट व्यवस्था में बाजार सुधारों का जिक्र करते हुए कहा था कि जब तक बिल्ली चूहे पकड़ रही तब तक यह सवाल उठाना बेमानी है कि उसकी रंग भूरा है या काला. देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की बेहतर जिंदगी के लिए उठाए गए कदम के बारे में विचारधारा से जुड़े सवाल उठाना गैर जरूरी है.
एक रेडियो शो होस्ट से डर गई सरकार?
रामचंद्र गुहा ने प्रतिष्ठित ऑस्ट्रेलियाई रेडियो शो नेट नाइट लाइव के मशहूर प्रस्तोता फिलिप एडम्स को भारत आने के लिए वीजा न देने का सवाल उठाया है. गुहा दैनिक अमर उजाला में लिखते हैं- आखिर फिलिप एडम्स को हमारी सरकार ने भारत प्रवास की इजाजत क्यों नहीं दी. न तो वह नशीली दवाओं की तस्करी करते हैं और न आतंकवादी हैं और न टैक्स चोर.
दूसरी ओर वह उस देश के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं जो हमारी ही तरह के लोकतंत्र है और जिससे हमारे करीबी संबंध हैं. इस बात की प्रबल आशंका है कि एडम्स को इसलिए वीजा नहीं दिया गया क्योंकि एबीसी(ऑस्ट्रेलियाई ब्रॉडकास्टर, जिससे एडम्स जुड़े हैं) ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में अडानी समूह के कारोबार पर एक टीवी डॉक्यूमेंट्री तैयार की थी. इस डॉक्यूमेंट्री में आरोप लगाया गया था कि अडानी समूह ने टैक्स चोरी के लिए अवैध रास्ते का इस्तेमाल किया और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं को आगे बढ़ाया.
गुहा लिखते हैं- क्या हम इतने कमजोर, इतने मति भ्रम मैं या इतने असुरक्षित हैं कि अठहत्तर साल के एक ऑस्ट्रेलियाई को भारत प्रवास की इजाजत नहीं दे सकते, जिसके पास अधिक से अधिक एक टेप रिकार्डर के अलावा और कोई ऐसी चीज नहीं है, जिससे इस देश को कोई खतरा हो सके.
2019 में मोदी पीएम नहीं बनेंगे?
और आखिर में कूमी कपूर की बारीक नजर. इंडियन एक्सप्रेस के अपने कॉलम में वह लिखती हैं- पिछले दिनों पार्लियामेंट में विपक्ष के सांसद उत्साहित दिखे. कुछ सांसदों का कहना था कि 2019 में बीजेपी 220 से ज्यादा सीटें नहीं जीतेगी.
इसका मतलब यह होगा कि नरेंद्र मोदी पीएम नहीं होंगे. दिलचस्प यह है कि कांग्रेस सांसद यह नहीं कह रहे थे कि राहुल पीएम होंगे. यूपीए के एक प्रमुख सांसद ने कहा कि ममता बनर्जी या नवीन पटनायक पीएम हो सकते हैं. एक ने कहा कि ज्यादा आर्टिकुलेट और लोगों की पसंद राजनाथ सिंह भी पीएम हो सकते हैं. त्रिशंकु संसद की स्थिति में राजनाथ लोगों की पसंद हो सकते हैं.
अगर बीजेपी अपने दम पर 240 सीट लाती है तो सरकार बना सकती है. जब सोनिया गांधी से 2019 के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इतने शुरुआती दौर में कोई कमेंट करने स मना कर दिया.
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