दो पाटों के बीच ट्रंप
हिन्दुस्तान टाइम्स में मार्क टुली ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत की वजहों और उसके बाद के हालात का अंदाजा लगाते हुए टिप्पणी है. टुली कहते हैं कि
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के नजरिये से कम ही देखा गया है. इन नीतियों ने अमेरिका में असमानता बढ़ाई है और इसने वोटरों को ट्रंप के समर्थन में बड़ी भूमिका निभाई है. धनतंत्र के बढ़ता वर्चस्व वोटरों की एक और शिकायत थी. ट्रंप के वोटरों को लगता है कि वह संरक्षणवाद की नीति अपनाएंगे और अमेरीकियों के छिनते रोजगार बचाएंगे. ब्रिटेन में ब्रेग्जिट के पक्ष में वोट देने वालों की भी शिकायत थी उनकी कोई नहीं सुनता. कहने का मतलब यह कि नव उदारवादी आर्थिक नीतियों में राज्य की संरक्षक की भूमिका खत्म हो जाती है और निजी क्षेत्र हावी हो जाता है. और यह निजी क्षेत्र मुनाफे के चक्कर में अमानवीय होता जाता है. यही असंतोष ट्रंप की जीत की वजह बना. लेकिन ट्रंप के सामने एक नई चुनौती है. अगर वे अपने वादे निभाते हैं तो बाजार को नाराज करेंगे और अगर वह नव उदारवादी नीतियों (जिसकी समर्थक रिपब्लिकन पार्टी है.) का समर्थन करेंगे तो उन्हें अपने समर्थकों का गुस्सा झेलना होगा.
अब गोल्ड में होगा काले धन का कारोबार
द टाइम्स ऑफ इंडिया में स्वामीनाथन अंकलसरैया ने 500 और 1000 रुपये के नोटो को बंद कर काला धन निकाल लाने की योजना पर टिप्पणी की है। स्वामी का मानना कि
इस योजना से काले धन का कारोबार अब गोल्ड के तौर पर होगा. मोदी की इस योजना से आयातित सोने की मांग काफी बढ़ जाएगी और इससे भुगतान संतुलन की स्थिति पर दबाव पड़ेगा. स्वामी लिखते हैं, 2000 के नोटों से भरी एक ब्रीफकेस की तुलना में सोने के सिक्कों से भरी एक ब्रीफकेस की कीमत कई करोड़ों में होगी. गोल्ड को ले जाने और रखने में आसानी की वजह से बड़े सौदों में इसका महत्व काफी बढ़ जाएगा. बड़ी परियोजनाओं में अक्सर रिश्वत पर्सेंटेज के तौर पर मिलती है. जैसे-जैसे इकोनॉमी बढ़ेगी रिश्वत की साइज भी बढ़ेगी. बड़े पेमेंट तब गोल्ड या डॉलर के तौर पर होंगे. स्वामी पूछते हैं कि क्या बीजेपी को पहले ही डीमोनेटाइजेशन की भनक लग गई थी? क्या इसने अपना कैश छोटे नोटों और गोल्ड में बदल लिया होगा. क्या दूसरी पार्टियां इसमें पीछे रह गईं. आपको इस बारे में खोजी रिपोर्टों का इंतजार करना होगा कि क्या राज्य चुनावों में बीजेपी इसका फायदा उठाएगी.
मोदी का मास्टर स्ट्रोक
इंडियन एक्सप्रेस में मेघनाद देसाई ने पीएम मोदी के 500 और 1000 के नोटों को बंद करने के फैसले की तारीफ करते हुए कहा है कि
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दिन उन्होंने एक ही झटके में लाखों करोड़ रुपये के नकदी को कागज के टुकड़ों में बदल दिया. सरकार ने इससे पहले ब्लैक मनी इकट्ठा करने वालों के खिलाफ माफी योजना लाकर 66000 करोड़ जमा कर लिए थे. इस योजना से विदेश में जमा करोड़ों की रकम देश लाई गई. लेकिन असली कैंसर तो देश में जमा काला धन है. मोदी का यह फैसला पिछले 70 साल की सबसे बड़ी री-डिस्ट्रीब्यूशन पॉलिसी है. पुराने नोटों को बंद करने का फैसला बड़ी तादाद में जमा काला धन एक ही झटके में बेकार हो गया. हमें यह तो पता नहीं चला कि काला धन जमा कर रखने वालों को कितना झटका लगा कि लेकिन आने वाले दिनों में हम देखेंगे कि लग्जरी आइटमों, ज्वैलरी और रियल एस्टेट का कारोबार घट गया है. ये ऐसी चीजें हैं, जिनमें अब तक खूब काला धन छिपाया जाता रहा है. मोदी का यह फैसला बेहद क्रांतिकारी है. अब जरूरत इस बात है कि ब्लैक मनी साइकिल के रीजेनरेशन को रोका जाए. काला धन जमा करने वालों के दिल में यह चीज बिठानी होगी, सरकार जब चाहे बड़े नोटों को बंद कर सकती है. ऐसे लोगों के दिल में यह डर बना रहना चाहिए ताकि काले धन का धंधा न सिर्फ गैरकानूनी बल्कि घाटे का सौदा भी बन जाए.
इस हालात में बुलेट ट्रेन ?
एशियन एज में आकार पटेल ने बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर सवाल उठाया है. पटेल लिखते हैं कि
इस परियोजना पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे. यह रकम भारत सरकार के हेल्थ बजट से तीन गुना बड़ी है . भारत के 38 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और दो साल की उम्र में ही उनके कम शारीरिक और मानसिक ग्रोथ की स्थिति पैदा हो जाती है. इसका मतलब यह है कि वे उनका मानसिक और शारीरिक विकास स्वस्थ बच्चों से कम होगा . वे कभी भी एक मुक्कमल जिंदगी नहीं जी पाएंगे. बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की कुल लागत भारत के सालाना एनुअल बजट से ज्यादा है. और आपको पता ही है हम दुनिया के सबसे कम साक्षरता दर वाले देशों में से एक हैं. बुलेट ट्रेन अहमदाबाद से मुंबई के बीच दौड़ेगी. जबकि इस वक्त अहमदाबाद से मुंबई के बीच 200 ट्रेनें दौड़ती हैं. पहली ट्रेन ठीक आधी रात के बाद खुलती है आखिरी आधी रात के ठीक पहले. यानी 524 किलोमीटर की इस दूरी को नापने के लिए दिन भर ट्रेनें चलती हैं. अहमदाबाद एयरपोर्ट से मुंबई के लिए हर दिन 10 फ्लाइट्स हैं. अहमदाबाद और मुंबई स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का हिस्सा हैं. छह लाइनों वाली एक्सप्रेस के जरिये यह देश की बेस्ट कनेक्टेड रूट है. ऐसे में आप सरकार की प्राथमिकताओं को बेहतर समझ सकते हैं.
नोट बदलने से हालात नहीं बदलेंगे
पी चिदंबरम ने अमर उजाला में नोट बदलने से नहीं बदलेंगे हालात शीर्षक से लिखे लेख में लिखा है कि
कुछ दिनों पहले सरकार ने घोषणा की कि पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों का डीमोनेटाइजेशन कर दिया गया है. लेकिन डीमोनेटाइजेशन या विमुद्रीकरण तो हुआ ही नहीं है. विमुद्रीकरण का विशेष अर्थ होता है. इसका मतलब है कि खास तरह के करेंसी नोट अब महज कागज का टुकड़ा रह जाएंगे. ऐसा तो कुछ हुआ नहीं. सरकार ने दो खास तरह के नोटों की वैधानिकता वापस ले ली मगर यह स्पष्ट किया कि रिजर्व बैंक के किसी कार्यालय या किसी भी बैंक की शाखा में जाकर इन नोटों के बदले नए नोट लिए जा सकते हैं. या इन्हें खातों में जमा करवाया जा सकता है. इसलिए हमें साफ हो जाना चाहिए की विमुद्रीकरण नहीं हुआ. चिदंबरम का का कहना है कि सरकार ने जो कदम उठाए उसे विमुद्रीकरण नहीं कहा जा सकता. उन्होंने सरकार के इस फैसले को कठघरे में खड़ा किया है और आठ सवाल पूछे हैं... और अंत में लिखा है मुझे उपहासपूर्ण तरीके से स्तंभकार कहा जाता है. मंत्रियों के रूप में न सही, ब्लॉगरों के रूप में ही इस स्तंभकार के प्रश्नों का उत्तर देंगे?
भारतीय पुलिस – भ्रष्ट, नाकारा और राजनीतिक गुलाम
द टेलीग्राफ में रामचंद्र गुहा ने भोपाल मुठभेड़ कांड का हवाला देकर भारत में पुलिस के चरित्र का पोस्टमार्टम किया है.
गुहा ने अपने लेख में सेना और पुलिस की तुलना की है. गुहा ने भारतीय सेना को प्रोफेशनल, सेक्यूलर, राजनीतिक में दखल से दूर, प्राकृतिक आपदाओं में मददगार और युद्ध में माहिर करार दिया है. गुहा ने फर्जी मुठभेड़ों, यूनिफॉर्म पहने सुरक्षाकर्मियों पर सवाल न करने की राजनीतिक नेताओं की हिदायत और पुलिस महकमे की अक्षमता और भ्रष्टाचार का सवाल उठाते हुए कहा है कि देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को महज तीन शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है – भ्रष्ट, नाकारा और राजनीतिक गुलाम. एक दुर्लभ आत्मस्वीकृति में मुंबई पुलिस ने जुलाई 2014 में कहा था कि उसे यह अनुभव हुआ है कि मुस्लिमों के बीच उनकी साख नहीं है. वे पुलिस को सांप्रदायिक, पूर्वाग्रही और संवेदनही मानते हैं. साथ ही उनकी नजर में पुलिस जानकारी विहीन, भ्रष्ट और गैर प्रोफेशनल है. गुहा लिखते हैं कि कॉलम की शुरुआत में मैंने भोपाल मुठभेड़ कांड (इसमें सिमी के आठ कार्यकर्ताओं को जेल से भागते हुए मार डाला गया था) में भाजपा के प्रवक्ताओं और टीवी एंकरों की ओर से देशभक्ति पर सवाल न करने का मुद्दा उठाया था. लेकिन संविधान के मुताबिक यह गृह मंत्रालय, इसके मंत्रियों और अधिकारों का कर्तव्य है कि पुलिस फोर्स के काम करने तरीके की गड़बड़ियों को ठीक करें. इस काम में पिछली सरकारें फेल रही हैं और जैसा कि रिजिजू (गृह राज्य मंत्री ने भोपाल मुठभेड़ कांड पर सवाल उठाने वालों की आलोचना की थी) के बयान से लगता कि मौजूदा सरकार भी इसमें फेल रहेगी.
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