ADVERTISEMENTREMOVE AD

संडे व्यू: US से क्या लाए मोदी? राष्ट्रवाद जरूरी, पत्रकारिता भी

अंग्रेजी-हिंदी के बड़े अखबारों के खास आर्टिकल एकसाथ, एक जगह

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

कूटनीति का डंका पर मिला क्या?

सागरिका घोष ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि ह्यूस्टन में हाउडी मोदी शो मीडिया इवेंट बनकर रह गया. लाइम लाइट में आने को पसंद करने वाले दो मजबूत शो मैन का शो बनकर रह गया. प्राइम टाइम पर कब किस एंगल से दिखना है, कितनी भीड़ दिखानी है सबकुछ तय दिखा. टीवी ही नहीं, सोशल मीडिया भी मिनट दर मिनट इवेंट को कवर करता रहा. मगर, हासिल क्या हुआ?

लेखिका याद करती हैं कि जब मनमोहन सिंह और जॉर्ज बुश की मुलाकात हुई थी, न्यूक्लियर डील पर हस्ताक्षर हुए थे. तब मनमोहन सिंह का यह कहना भी सनसनी थी कि प्रेजिडेन्ट बुश, “भारत के लोग आपको प्यार करते हैं.”

लेखिका ने जसवंत सिंह-स्ट्रोब टॉलबॉट वार्ता का भी जिक्र किया है जिसकी वाजपेयी सरकार में दुनिया भर में चर्चा हुई थी. मगर, तब टीवी और साउन्ड बाइट का यह क्रेज नहीं था.

लेखिका ने 1994 में पीवी नरसिम्हा राव के उस भाषण को भी याद किया है जब यूएन ने उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन दिया था. इससे पहले जॉन एफ केनेडी स्वयं गुट निरपेक्ष देशों के नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू का एअरपोर्ट पर स्वागत करने पहुंचे थे. लेखिका ने पूछा है कि ‘मोदी इज इंडियाज फादर’ और ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ जैसी बातें हेडलाइन तो बनीं, लेकिन महत्वपूर्ण क्या हासिल हुआ? स्वतंत्र व्यापार, एच1बी वीजा जैसी बातों पर कोई उपलब्धि नहीं दिखी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

देशभक्ति जरूरी, असली पत्रकारिता भी

तवलीन सिंह जनसत्ता में लिखती हैं कि पाकिस्तान किसी हाल में भारत की बराबरी नहीं कर सकता. मगर, उसकी कोशिश यही रही है. यह कोशिश कभी सफल नहीं हुई, किन्तु अब ‘राष्ट्रवादी’ टीवी चैनलों ने पाकिस्तान को इतनी अहमियत दे दी है कि उसे भारत के स्तर पर पहुंचा दिया है. ‘हाउडी मोदी’ के बहाने नरेंद्र मोदी और इमरान खान के बीच मानो मीडिया ने मुकाबला करा दिया. मोदी के लिए एयरपोर्ट पर लंबा लाल कालीन और इमरान खान के लिए छोटा-सा लाल पायदान! लेखिका सवाल करती हैं कि क्या यह भी कोई कूटनीतिक जीत है?

लेखिका ने आश्चर्य जताया कि पत्रकारों ने इस किस्म के सवालों को भी तवज्जो दी कि डोनाल्ड ट्रंप ने इमरान खान के साथ वक्त अधिक गुजारा या नरेंद्र मोदी के साथ! महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे अमेरिका-ईरान में संभावित टकराव और अमेरिका-चीन ट्रेड वार के बीच भारत की भूमिका, जलवायु परिवर्तन की अनदेखी कर दी गयी. मोदी-ट्रंप जब पत्रकारों से मुखातिब हुए, तो यहां भी ज्यादातर सवाल इमरान और पाकिस्तान केंद्रित रहे.

लेखिका कहती हैं कि जो काम पाकिस्तानी जनरल नहीं कर पाए, वह काम भारतीय पत्रकार कर गये. पाकिस्तान के बराबर भारत को ला खड़ा कर दिया.

लेखिका का मानना है कि जितनी अहमियत देशभक्ति की है उतनी है असली पत्रकारिता की. मीडिया अगर अपना दायित्व निभा रहा होता तो ईमानदारी से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अमन-शांति बहाली पर सवाल जरूर पूछता. जब हम भारतीय पत्रकार यह नहीं पूछते हैं तो विदेशी पत्रकार यही काम करने लग जाते हैं. लेखिका ने लिखा है कि कश्मीर पर पत्रकारों के राष्ट्रवाद ने पाकिस्तान की मदद ज्यादा की है. पत्रकारिता का मिश्रण राष्ट्रवाद से नहीं होना चाहिए.

दुनिया को लेकर भारत का नजरिया

चाणक्य ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले हफ्ते भारतीय विदेश नीति के मोर्चे पर अमेरिका में सक्रिय रहे. यह साफ हुआ है कि दुनिया को भारत किस नजरिए से देखता है. आर्थिक प्राथमिकताएं, रणनीति, अहम देशों से संबंध और दुनिया को भारत के संदेश के लिहाज से बीता हफ्ता महत्वपूर्ण रहा.

प्रधानमंत्री का ह्यूस्टन में भाषण, डोनाल्ड के साथ 50 हजार भारतीयों के बीच प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी, संयुक्त राष्ट्र में मोदी का भाषण, ब्लूमबर्ग में निवेशकों को संबोधन, विदेश मंत्री एस जयशंकर की पूर्व राजनयिक फ्रैंक विजनर और पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन रूड से बातचीत और मोदी व जयशंकर के ट्विटर टाइमलाइन पर गौर करने से यह बात साफ होती है कि भारत विश्व शक्तियों के साथ किस तरह संवाद कर रहा है.

भारत ने विकास की गाथा सामने रखकर विदेश नीति के लक्ष्य को साधने की कोशिश की. शौचालय से लेकर गैस कनेक्शन तक की उपलब्धियों को शो केस कर भारत ने यह जताया है कि वह समावेशी विकास की ओर अग्रसर है. निवेशकों के लिए भारत अहम बना रहेगा. जलवायु परिवर्तन से जुड़ी जिम्मेदारियों को लेकर भी भारत ने गंभीरता दिखलायी.

भारत ने यह जताया कि वह पूंजी, तकनीक का स्रोत बने रहने के साथ-साथ व्यापारिक सहयोगी भी बना बना रहेगा. कश्मीर पर मध्यस्थता की बात को भी भारत ने साफ तौर पर नकार दिया. वहीं, यह साफ किया कि उसका विकास केंद्रित रुख जारी रहने वाला है. खाड़ी में अस्थिरता है, जापान की भूमिका साफ नहीं है और रूस अपने पुराने स्वरूप में लौट रहा है. ऐसे में दिल्ली ने एक के साथ न जुड़कर सबके साथ जुड़े रहने का रास्ता चुना है. यह भी साफ हुआ कि चीन के साथ भारत आगे बढ़ेगा, लेकिन उसकी आक्रामकता को भी नियंत्रित करेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

महाभियोग से ट्रंप को ही होगा फायदा

डेविड ब्रूक्स ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति को फोन कर डोनाल्ड ट्रंप ने अपराध किया है मगर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर डेमोक्रैट वास्तव में उनकी ही मदद कर रहे हैं. महाभियोग की प्रक्रिया से कुछ हासिल नहीं होगा. उल्टे जब यह विफल हो जाएगी तो ट्रंप खुद को विजेता की तरह पेश करेंगे. लेखक का कहना है कि करोड़पतियों से भरी सीनेट डोनाल्ड ट्रंप पर कोई फैसला करे, इससे महत्वपूर्ण है कि आम मतदाता अंतिम निर्णय दे. वास्तव में महाभियोग की प्रक्रिया मतदाताओं को ही प्रभावित करेगी.

ब्रूक्स लिखते हैं कि एक समय नेन्सी पलोसी ने कहा था कि वह महाभियोग की प्रक्रिया तब तक आगे नहीं बढ़ाएंगी जब तक कि डेमोक्रैट और रिपब्लिक के बीच व्यापक सहमति नहीं हो. मगर, अब वह अपनी ही घोषणा से पीछे हट रही हैं. वास्तव में डेमोक्रैट ट्रंप के ही राजनीतिक जाल में उलझ रहे हैं.

एक सर्वे के हवाले से लेखक ने लिखा है कि आम लोगों को महाभियोग की प्रक्रिया में बहुत दिलचस्पी नहीं है. लेखक का मानना है कि महाभियोग की प्रक्रिया का परिणाम जन हताशा को बढ़ाएगी. इससे देश की सबसे पुरानी पार्टी में ट्रंपवाद हावी हो जाएगा. डेमोक्रैट चुनाव में ट्रंप को हरा सकते हैं मगर महाभियोग की प्रक्रिया से उसकी क्षमता को नुकसान होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पाकिस्तान ने संप्रभुत्ता गिरवी रख दी

खालेद अहमद ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि पाकिस्तान ने जेहादियों को समर्थन देकर देश की संप्रभुत्ता से समझौता किया. लाहौर के बीकन हाऊस नेशनल यूनिवर्सिटी में डीन तारिक रहमान के जेहाद पर विस्तृत काम की चर्चा करते हुए लेखक ने बताया है कि जेहाद रक्षात्मक युद्ध होता है. इसका मकसद किसी पर फतह हासिल करना नहीं होता. लेखक ने जेहाद के नाम पर मुसलमानों और गैर मुसलमानों की हत्याओं का जिक्र करते हुए इसके मकसद पर सवाल उठाया है.

लेखक ने लिखा है कि जेहादी आम लोगों के बीच रहें और उन्हें कानूनी छूट दी जाए ताकि वे हथियारों का दुरुपयोग करें तो यह सरकार का गलत कदम है. यह आंतरिक संप्रभुत्ता से समझौता करने के बराबर है.

बलूचिस्तान की स्थिति का जिक्र करते हुए क्या वे लिखते है कि पाकिस्तान यहां भी संघीय प्रशासन देने में नाकाम रहा है. तारिक रहमान की पुस्तक यही सवाल उठाती है कि क्या वास्तव में देश की जनता भी वही चाहती है जो जेहादी चाहते हैं? या जेहादियों की सोच का कोई असर आम जनता पर पड़ा है? लेखक का मानना है कि सरकार ने जेहादियों के नाम पर जो कुछ किया है उससे जनता इत्तफाक नहीं रखती.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आरएसएस और महात्मा

रामचंद्र गुहा ने द टेलीग्राफ में लिखा है कि 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के 150वें जन्म दिन पर संघ प्रचारकर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनसे जुड़े आरएसएस के लोग बापू की तारीफ करेंगे. पाठकों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि जब महात्मा जिंदा थे, तो उनकी आरएसएस के बारे में और आरएसएस की उनके बारे में क्या राय थी.

कलेक्टेड वर्क्स फॉर महात्मा गांधी के हवाले से लेखक बताते हैं कि महात्मा गांधी ने अप्रैल महीने में एक प्रार्थना सभा में हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते हुए बताते हैं कि उन्हें आरएसएस का एक पत्र मिला है जिसमें कहा गया है कि कुरान की आयतें और गीता एक साथ पढ़ने को लेकर उनका कोई विरोध नहीं है. लेखक ने संघ कार्यकर्ताओं से गांधी और गोलवलकर की मुलाकात का भी जिक्र किया है. गोलवलकर ने गांधी को भरोसा दिलाया था कि आरएसएस का किसी धर्म से कोई विरोध नहीं है. मगर, लेखक ने यह भी बताया है कि गांधी के कलकत्ता में उपवास पर रहने के दौरान संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने लिखा था, ‘जब रोम जल रहा था नीरो बंसी बजा रहा था.’ इसी में आगे लिखा गया था कि कलकत्ता से महात्मा गांधी इस्लाम की तारीफ करते हैं और अल्ला हू अकबर की आवाज लगाते हैं और हिन्दुओं से भी ऐसा करने को कहते हैं जबकि देश के बाकी हिस्सों में इसी नाम से शर्मनाक बर्बर हिंसा हो रही है.

लेखक ने दिल्ली पुलिस के रिकॉर्ड्स के हवाले से बताया है कि कलकत्ता के बाद जब गांधी दिल्ली आए तब भी आरएसएस के लोग महात्मा गांधी और मुसलमानों के लिए बुरे शब्द बोल रहे थे. उनका मानना था कि मुसलमान तभी भारत छोड़ेंगे जब महात्मा गांधी को दिल्ली से दूर किया जाएगा. ‘बंच ऑफ थॉट्स’ के हवाले से लेखक ने बताया है कि गोलवलकर ने किसी से दुश्मनी नहीं होने का जो भरोसा महात्मा गांधी को दिया था, वह भी गलत था. गोलवलकर ने मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्ट के रूप में तीन दुश्मनों की पहचान की थी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×