भारत के लिए वर्ल्ड लीडर बनने का मौका
जलवायु परिवर्तन से जुड़े पेरिस समझौते से अमेरिका के हटने का ऐलान कर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को झटका दे दिया है. अब तक अमेरिका से दुनिया के नेतृत्व की जो उम्मीदें की जाती रही थीं, अब वे झूठी साबित होने लगी हैं. लिहाजा भारत के लिए सही अवसर है कि वह इस मामले में दुनिया का नेतृत्व करे.
टाइम्स ऑफ इंडिया में आकार पटेल लिखते हैं कि मोदी के लिए इस मामले में भारत को वर्ल्ड लीडर बनाने का सुनहरा मौका है. यह हमारे लिए आसान है.
भारतीय सांस्कृतिक से प्रकृति के करीब रहे हैं. जब भारत के पेरिस समझौते के प्रति कमिटमेंट पर सवाल उठाया गया तो सुषमा स्वराज ने सही कहा कि, हम 5000 साल से नदियों, पेड़ों और पहाड़ों की पूजा करते आ रहे हैं
अगर कोई कहता है कि हमने पैसों के लिए या किसी दबाव में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं तो यह गलत है. अमेरिका समझौते से अलग हो या नहीं हो लेकिन भारत पेरिस समझौते के साथ बना रहेगा. भारतीय वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करते हैं. पूरी दुनिया एक परिवार है और परिवार आज संकट में है. हमारी इस धरती को एक लीडर की जरूरत है. मोदी के सामने दुनिया का नेतृत्व करने का सुनहरा अवसर है. उन्हें आगे बढ़ कर यह भूमिका निभानी चाहिए.
फ्लॉप शो बन कर रह गया है मेक इन इंडिया
दैनिक जनसत्ता में पी. चिदंबरम में मोदी सरकार की अहम योजनाओं में से एक मेक इन इंडिया की सफलता पर संदेह जारी किया और इसे फ्लॉप करार दिया है.
चिदंबरम लिखते हैं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिलकुल सही थे जब उन्होंने कहा कि उनकी सरकार का लक्ष्य मेक इन इंडिया को सर्वोच्च प्राथमिकता देना है, और उन्होंने दुनिया की मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों का आह्वान किया था कि वे यहां आएं और मेक इन इंडिया कार्यक्रम में भागीदार बनें.
दो साल बाद, ‘मेक इन इंडिया’ की दशा क्या है? मेक इन इंडिया की घोषणा 15 अगस्त 2015 को हुई, तब से मैन्युफैक्चरिंग के गति पकड़ने का कोई प्रमाण नहीं है. इसके विपरीत, ऐसा लगता है कि मैन्युफैक्चरिंग ने अपना जोश-खरोश खो दिया है, और 2016-17 में काफी कमजोर हो गया है.
मैंने ‘मेक इन इंडिया’ का स्वागत किया था. यह नवाचारी और महत्त्वाकांक्षी था. ऐसा लगता है कि पहले बहुत मामूली तैयारी की गई थी और बाद में नीतिगत समर्थन व्यावहारिक स्तर पर नहीं मिला. नतीजतन, ‘मेक इन इंडिया’ एक खोखला नारा होकर रह गया है.
नए भी पुरानी लीक पर
दैनिक जनसत्ता के अपने कॉलम में वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने मोदी सरकार के मंत्रियों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इन्हें सत्ता का इतना घमंड हो गया है कि वे अपने आप को अजेय समझ रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में शानदार जीत हासिल करने के बाद नरेंद्र मोदी के मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के आला अधिकारी ऐसे पेश आ रहे हैं जैसे उनके पांव अब जमीन पर नहीं टिकते हैं. उनके होश ठिकाने तभी आएंगे जब उनको दिखने लगेगा कि विपक्ष पूरी तरह चित्त नहीं पड़ा है.
मोदी सरकार के मंत्रियों के तौर-तरीके बिलकुल वैसे हो गए हैं जैसे कांग्रेस के मंत्रियों के हुआ करते थे, बल्कि यह कहना गलत न होगा कि इनमें घमंड ज्यादा है, क्योंकि सत्ता में पहली बार आए हैं.
ऐसे कई मंत्रालय और हैं, जहां परिवर्तन की सख्त आवश्यकता है, लेकिन कोई परिवर्तन नहीं दिखा है. भारत की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं इतनी रद्दी हैं कि गरीब भारतीय भी प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने और प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हैं.
मोदी के मंत्रियों को यकीन है कि महागठबंधन अगर बन भी जाता है तो विपक्षी दलों का 2019 के आम चुनावों से पहले, तो वह भारतीय जनता पार्टी को हरा नहीं सकेगा, क्योंकि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता पिछले तीन वर्षों में बढ़ती गई है, कम होने के बदले. यह बात सही भी है, लेकिन राजनीति में कब हवा बदल सकती है, कोई नहीं कह सकता.
पुडुचेरी का संकट
दैनिक अमर उजाला में वरिष्ठ पत्रकार आर राजगोपालन ने पुडुचेरी में एलजी किरण बेदी और सीएम वी नारायणसामी के चरम की ओर बढ़ते टकराव का जिक्र किया है. राजगोपालन लिखते हैं कि इस टकराव की आहट दिल्ली तक पहुंच चुकी है.
पीएम नरेंद्र मोदी सुदूर दक्षिण छोर पर चल रहे इस धारावाहिक का कब तक आनंद उठाएंगे? आखिर इस नाटक का पटाक्षेप कब और कैसे होगा? है.
इसमें कोई दो राय नहीं की पुडुचेरी के लोग राज्य में चल रहे भारी भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं, लेकिन जिस तरह उपराज्यपाल बेदी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ जंग छेड़ रखी है, वे उससे भी खुश नहीं हैं. किरण बेदी कहती हैं- मैं उदार और पारदर्शी हूं और राज्य सरकार के किसी भी अधिकारी से मिलने में मुझे कोई परेशानी नहीं
इसके साथ ही वह कहती हैं कि मैं राष्ट्रपति की प्रतिनिधि हूं. उनकी आंख और कान हूं. ऐसे में क्या भ्रष्टाचार को नजरअंदाज कर दूं? पुडुचेरी जैसे छोटे राज्यों के लिए यह दुखद है कि वहां दो शीर्ष संवैधानिक पदों के बीच टकराव चल रहा है. पुडुचेरी की तुलना दिल्ली से नहीं की जा सकती मगर इस टकराव ने दिल्ली के पूर्व राज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच जंग की याद दिला दी है.
असली नुकसान ब्रिटेन को
ब्रिटेन के चुनाव में कंजरवेटिव पार्टी के खराब प्रदर्शन पर हिन्दुस्तान टाइम्स में वरिष्ठ पत्रकार स्वप्न दासगुप्ता लिखते हैं- नतीजों से कंजरवेटिव पार्टी या पीएम थेरेसा मे की हार से ज्यादा चिंताजनक बात ब्रिटेन की हार है. इस चुनाव से ब्रिटेन को नुकसान हुआ है.
एक ऐसे वक्त में जब इस देश को स्पष्टता, दिशा और राजनीतिक प्रतिबद्धता का जरूरत थी तो मतदान के नतीजे ऐसे आए, जिससे पूरी तरह भ्रम की स्थिति की पैदा हुई है. लगता है कि इस देश को अपना आत्मविश्वास लौटाने के लिए एक साल के अंदर ही दूसरे चुनाव की जरूरत पड़ेगी.
दरअसल जब जरूरत नहीं थी तो थेरेसा का स्नैप पोल कराने का फैसला उनके अहंकार को ही दिखाता है. ब्रेग्जिट पर रायशुमारी ने उन लोगों के बीच गहरे फासले को जाहिर कर दिया था, जो कॉस्मोपोलिटन कल्चर में रहना चाहते थे और जो इस कल्चर में खुद को पीछे छूट गया महसूस करते थे.
इस चुनाव के नतीजों ने ब्रिटेन के भविष्य के दो संकेत दिए हैं. ब्रिटेन के मौजूदा जनादेश का दो चीजों पर सीधा असर पड़ेगा. एक, ब्रेग्जिट से जुड़ी इसकी सौदेबाजी और दो इमिग्रेशन और टेररिज्म से जूझने की इसकी रणनीति पर. बहरहाल, ब्रिटेन अभी संकट में है. संभव है इसे इससे निकलने में ज्यादा वक्त नहीं लगे. लेकिन संकट थोड़े दिन भी रहा तो इस देश को जबरदस्त नुकसान पहुंचा सकता है.
हिंदू राष्ट्र की अवधारणा सफल नहीं
इंडियन एक्सप्रेस में हर पखवाड़े छपने वाले कॉलम ‘गेन्ड इन ट्रांसलेशन’ में भारत की अलग-अलग भाषाओं के पत्रकारों, साहित्यकारों,सामाजिक कार्यकर्ताओं और आंदोलनकारियों से कॉलम लिखवाए जाते हैं. इस बार महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स के संस्थापकों में से एक अर्जुन डांगले लिखते हैं- 25 साल पहले मैंने मराठी दलित साहित्य के इतिहास पर लिखते हुए कहा था कि आने वाले दिनों में राजनीति और धर्म का गठजोड़ दिखेगा.
जो साहित्यकार, बुद्धिजीवी सेक्यूलर, लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं उन्हें आने वाले कल की चुनौती का सामना करना होगा. यूपी में योगी आदित्यनाथ के सत्तारोहण ने ऐसी ही चुनौतियां पैदा की हैं. धर्म और राजनीति के इस मेल से सामंतवाद पैदा होता है.
भारत में नस्ल आधारित फांसीवाद न हो लेकिन धर्म आधारित अधिनायकवाद मजबूत होगा. इस देश में हिंदू राष्ट्र की प्रयोगशाला गुजरात में शुरू हुई थी. अब संघ परिवार ने यूपी में ऐसी प्रयोगशाला शुरू की है लेकिन अब यह धारणा ने आउटडेटेड हो चुकी है बल्कि यह असंभव है. नेपाल में यह कॉन्सेप्ट खारिज हो चुका है और खुद को एक मात्र हिंदू राष्ट्र बताने वाला यह देश अब धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के आदर्शों को लेकर आगे बढ़ रहा है.
राहुल के ट्यूटर
और अब अंत में कुमी कपूर का खुलासा. इंडियन एक्सप्रेस के अपने कॉलम इनसाइड ट्रैक में वह लिखती हैं- जब से राहुल गांधी ने यह कहा है कि वह आरएसएस के प्रोपगंडा से मुकाबले के लिए वेद और उपनिषद पढ़ रहे हैं तब से हर ओर यह जानने की दिलचस्पी है कि उनका ट्यूटर कौन है?
कइयों को लगा कि यह जयराम रमेश हो सकते हैं. क्योंकि उन्हें संस्कृत का काफी अच्छा ज्ञान है और गीता के सभी 18 अध्याय रटे हुए हैं. लेकिन राहुल के ट्यूटर बीएचयू के एक संस्कृत प्रोफेसर निकले. ये प्रोफेसर अक्सर राहुल के दफ्तर में देखे जाते हैं. कहा जा रहा है कि वे उन्हें गीता के उद्धरणों को अंग्रेजी में ट्रांसलेट करा कर राहुल को उपलब्ध करा रहे हैं.
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