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संडे व्यू: आक्रामक हो चली है भारतीय राजनीति, अमेरिका में चुनौती बने हैं ट्रंप

पढ़ें इस इतवार आदिति फडणीस, प्रताप भानु मेहता, करन थापर, आसिम अमला और प्रभु चावला के विचारों का सार

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आक्रामक हो चली है भारतीय राजनीति

आदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों को निराशा में खुद से यह पूछने के लिए माफ किया जा सकता है कि उन्हें अच्छी खबर कब मिलेगी. पार्टी लोकसभा चुनावों में पिछले चुनाव में मिली 303 सीटों से घटकर 240 पर आने के बावजूद साझेदारों की मदद से केंद्र में सरकार बनाने में सफल रही. बीजेपी के पास राज्यसभा में 245 में से 90 सीटों के साथ राज्यसभा में अब बहुमत नहीं है. जुलाई में हुए उपचुनाव में 13 में से बीजेपी को महज दो पर जीत मिली. 36 में से 18 राज्यों में बीजेपी अपने दम पर या फिर गठबंधन में सरकार में है और पूरी आक्रामकता दिखा रही है. कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन भी अब पहले की तुलना में अधिक आक्रामक है. राजनीतिक और नीतिगत संघर्ष अचानक तेज हो गया है.

आदिति आगे लिखती हैं कि राजस्थान में लोकसभा चुनाव में बीजेपी 25 में से केवल 14 सीटें जीत सकी. 4 जुलाई से आरंभ विधानसभा के बजट सत्र में कांग्रेस की ओर से अप्रत्याशित आक्रामकता दिखाई जा रही है. ओडिशा में बीजू जनता दल ने आक्रामक तेवर अपनाया है. राज्यसभा में बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया है. बीजेपी सरकार के मंत्रियों के कामकाज पर नजर रखने के लिए शैडो मंत्री भी बीजू जनता दल ने नियुक्त किए हैं. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर उत्साहित है. वहीं, पंजाब में पार्टी ने चुनाव हारने के बावजूद रवनीत बिट्टू को केंद्र में मंत्री बनाया है. हालांकि बीजेपी अपनी स्थिति कैसे मजबूत बनाती है, यह देखना दिलचस्प होगा.

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चुनौती बन चुके हैं ट्रंप

प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि डोनाल्ड ट्रंप की हत्या का भयानक प्रयास अमेरिकी राजनीति के ध्रुवीकरण को और तेज कर देगा. सुरक्षा चूक पहले से ही षडयंत्र के सिद्धांतों के लिए एक बड़ा कारण है. वरिष्ठ रिपब्लिकन निष्कर्ष पर पहुंच गये और तुरंत इसका दोष जो बाइडेन पर मढ़ दिया. डेमोक्रेटिक राजनेताओं ने हत्या के प्रयास की निंदा की है. दक्षिणपंथी झुकाव के बावजूद रिपब्लिकन पार्टी वामपंथ के अधिकांश हिस्से पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है. अमेरिकी राज्य की दो आलोचनाएं हैं : वामपंथी आलोचना कि अमेरिका ने राज्य में कम निवेश किया है. और, दक्षिणपंथी आलोचना कि विनियामक मुश्किलें हैं. समस्या यह है कि दोनों आलोचनाओं में सच्चाई है.

रिपब्लिकन पार्टी चरमपंथियों का गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है. यह सुपर अमीरों के लिए कर कटौती की वकालत करती है लेकिन यह खुद को एक ऐसी पार्टी के रूप में भी पेश कर रही है जिसकी सहज पहचान श्रमिक वर्ग के साथ है. कुछ मायनों में ट्रंप ने श्वेत श्रमिक वर्ग के उन वर्गों के बीच अपने व्यक्तित्व के साथ अलग पहचान बनाई है जो लंबे समय से मुख्य धारा की राजनीति द्वारा उपेक्षित महसूस कर रहे थे. जेडी वेंस का चयन केवल इस घटना को रेखांकित करता है. जेडी वेंस बहुत स्पष्टवादी हैं और 39 वर्ष की आयु तक उनके पास चार सफल करियर हैं.

अधिक दिलचस्प बात यह है कि उनके पास विचारों का एक ऐसा समूह है जो वामपंथियों के प्रदर्शनों की सूची का एक बहुत बड़ा हिस्सा है. अमेरिका के पुन: औद्योगिकीकरण की परियोजना और उसके माध्यम से श्रमिक वर्ग का पुनरुद्धार. अंत में, बाइड प्रशासन को ट्रंप के बहुत से संकेतों का पालन करना होगा. खासकर दक्षिणी सीमा पर जिससे दोनों दलों के बीच का अंतर धुंधला हो जाएगा.

21वीं सदी की भव्य शादी जिसने मुगलों को पीछे छोड़ दिया

आसिम अमला ने टेलीग्राफ में इतिहासकार अब्राहम एराली की पुस्तक द मुगल वर्ल्ड के हवाले से लिखा है कि राजाओं और कुलीनों के बीच शादियां भव्य होती थीं. उस पर बहुत ज्यादा खर्चा होता था. उदहरण के तौर पर दारा की परवेज की बेटी से शादी में इनायत खान के अनुसार शाहजहां ने कुल 3.2 मिलियन रुपये खर्च किए थे. मुगल कुलीनों की शादियां सगाई के कुछ हफ्ते बाद होती थीं ताकि उत्सव मनाने के लिए पर्याप्त समय मिल सके. भारत के शीर्ष व्यवसायी मुकेश अंबानी द्वारा आयोजित सात महीने लंबे विवाह समारोह की तुलना में यह बहुत मामूली लगता है. इस शादी पर अनुमानित लागत आधे बिलियन डॉलर से ज्यादा है.

आसिम अमला लिखते हैं कि दुनिया भर में लाइव स्ट्रीम किए गये इस दिखावटी धन-दौलत के बारे मे दो उल्लेखनीय पहलू हैं. पहला किसी भी तरह के सामाजिक आक्रोश या सांस्कृतिक घृणा का अभाव. नवीनतम घरेलू व्यय सर्वेक्षण से पता चला है कि औसत भारतीय परिवार के कुल व्यय का लगभग आधा हिस्सा अभी भी खाद्य पदार्थों की खरीद पर खर्च होता है. आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि अधिकांश लोगों की वास्तविक मजदूरी स्थिर है. शुद्ध घरेलू बचत पिछले पांच दशकों में अपने सबसे निचले स्तर पर आ गयी है. भारत की आबादी के सबसे अमीर 1% लोगों के पास केंद्रित धन छह दशकों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है जो देश की कुल संपत्ति का 40% से ज्यादा है. दूसरा उल्लेखनीय पहलू यह है कि विवाह समारोह को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करते हुए बढ़ती असमानता के मंच पर राजनीतिक लामबंदी का कोई प्रयास नहीं किया गया. विपक्षी इंडिया समूह के प्रमुख लोगों ने प्रधानमंत्री की तरह ही कर्त्तव्य निष्ठा से विवाह समारोह में भाग लिया. इनमें ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, शरद पवार और डीके शिवकुमार से लेकर कमलनाथ तक कई कांग्रेस नेता समारोह में शामिल रहे.

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निरंतरता के साथ जनता, मोदी भी

प्रभु चावला ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि निरंतरता और परिवर्तन को आपस में टकराने के लिए मजबूर किया तो वे विनाशकारी विरोधाभास को व्यक्त करते हैं. भारतीय राजनीति के क्वांटम वर्ल्ड में श्रोडिंगर्स कैट सबसे पहले दिमाग में आती है- एक ही समय में मृत भी, जीवित भी. 2024 के आम चुनाव ने निरंतरता के लिए मतदान किया जिससे नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार सिंहासन मिला. इस फैसले ने शासन के पिछले मॉडल को भी बदल दिया जिसमें एकल दलीय शासन से लेकर गठबंधन तक शामिल था, जहां मोदी एनडीए के बराबर के लोगों में पहले स्थान पर हैं. पिछले कुछ हफ्तों में मोदी सरकार के फैसले और कार्रवाई से संकेत मिलता है कि रूपक बदल गये हैं. निरंतरता ने बदलाव को ग्रहण कर लिया है.

प्रभु चावला कहते हैं कि भले ही कांग्रेस की राजनीति तीन बार पराजित रही हो लेकिन अर्थशास्त्र और कूटनीति की इसकी शैली नई व्यवस्था में भी गर्व का स्थान पाती है. नेहरूवादी शासन के प्रति निष्ठा और प्रसिद्धि रखने वाले अर्थशास्त्रियों को पिछली सरकारों की तुलना में अधिक महत्व दिया गया है.

उदाहरण के लिए पिछले सप्ताह जब प्रधानमंत्री ने नीति आयोग के पुनर्गठन की घोषणा की तो यह प्रशासनिक विचार प्रक्रिया की निरंतरता का उदाहरण था. इसके सभी पांच पूर्णकालिक सदस्यों को बरकरार रखा गया- उपाध्यक्ष सुमन बेरी, विजय कुमार सारस्वत, अरविंद विरमानी, रमेश चंद और डॉ वीके पॉल. नीति आयोग के दायरे में 75 वर्ष की उम्र सीमा की भी अनदेखी की गयी. लेखक का मानना है कि नीति आयोग के संचालन परिषद के सदस्य के रूप में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू गेमचेंजर होंगे. मोदी की तरह नायडू भी विचारों वाले व्यक्ति हैं और बड़ा सोचते हैं. नीति आयोग के अलावा मोदी ने अपने कार्यालय और राजनयिक असाइनमेंट में भी प्रमुख पदों में बदलाव के बजाए निरंतरता को चुना है.

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क्लिप-क्लॉप कहते हैं हम क्लॉप-क्लिप क्यों नहीं कहते

करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि वे अपनी तुलना हेनरी हिगिंस से नहीं कर सकते लेकिन अंग्रेजी भाषा के मजेदर नियम हमेशा उन्हें आकर्षित करते रहते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि हम टिक-टॉक क्यों कहते हैं और टॉक-टिक नहीं, या डिंग-डोंग क्यों कहते हैं डोंग-जिंग नहीं या किंग-कोंग क्यों कहते हैं और कोंग-किंग क्यों नहीं? बीबीसी के एक लेख में बताया गया है कि अगर तीन शब्द हैं तो क्रम I, A, O होना चाहिए. अगर दो शब्द हैं तो पहला I है और दूसरा A या O है. हम बहुत आराम से मिश-मैश, चिट-चैट, डिली-डैली, शिली-शैली, टिप-टॉप, हिप-हॉप, फ्लिप-फ्लॉप, टिक-टैक, सिंग-सॉंग और पिंग-पोंग क्यों कहते हैं. अगर हम डिली-डिली, सॉन्ग-सिंग, चै-चिट, मैश-मिश..कहना चाहें तो यह बहुत परेशानी भरा होता है.

एब्लाट रि-डुप्लिकेशन के नियम का एक और पहलू है. यह निर्धारित करता है कि आपको किस क्रम में कई विशेषणों का उपयोग करना चाहिए. उदाहरण के लिए यह लिटिल रेड राइडिंग हूड है न कि रेड लिटिल राइडिंग हूड या लिटिल ग्रीन मेन है न कि ग्रीन लिटिल मेन. एक और उदाहरण पर गौर करें. हम ‘बिग बैड वोल्फ’ कहते हैं. ‘बैड बिग वोल्फ’ नहीं कहते. बीबीसी ने बहुत सटीक ढंग से कहा है, “घोड़े के चारों पैर बिल्कुल एक जैसी आवाज निकालते हैं. लेकिन हम हमेशा, हमेशा क्लिप क्लॉप कहते हैं, कभी क्लॉप-क्लिप नहीं.” लेखक का मानना है कि इन्हीं कारणों से अंग्रेजी भाषा आकर्षक लगती है. शायद यही कारण है कि यह दुनिया की पसंदीदा भाषा है. फिर भी हममें से बहुत से लोग इसे कभी भी ठीक से नहीं बोल पाते. अंत में लेखक कहते हैं कि पंजाबियों पर अबलाट रि-डुप्लिकेशन का नियम लागू नहीं होता है जो अतिरिक्त जोर देने के लिए अपने शब्दों को तुकबंदी में लिखते हैं. उनके लिए खाना-शाना, पीना-शंक और पैसा-वासा हमेशा सही रहेगा.

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