सुप्रीम कोर्ट से रियल एस्टेट की दिग्गज कंपनी सुपरटेक को बड़ा झटका लगा है. सुपरटेक एमराल्ड केस (Supertech emerald court demolition case) में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सुपरटेक के 40 मंजिला ट्विन टावर्स को गिराया जाएगा, क्योंकि नियमों का उल्लंघन कर इन्हें बनाया गया. इस दौरान नोएडा अथॉरिटी को भी जमकर फटकार लगाई गई.
ये मामला एक मिसाल की तरह बन चुका है, क्योंकि कुछ आम लोगों ने एक दिग्गज कंपनी के खिलाफ लड़ाई शुरू की और आखिरकार अब उसे जीत लिया. हालांकि ये लड़ाई पहले ही याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में जीत ली थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार था. जानिए क्या है सुपरटेक एमराल्ड केस की पूरी कहानी.
ग्रीन बेल्ट में बन गई थी बिल्डिंग
मामला तब शुरू हुआ जब सुपरटेक ने 40-40 मंजिल वाले अपने दो टावर खड़े करने शुरू किए. इसे लेकर वहां के रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने विरोध करना शुरू कर दिया. क्योंकि उनकी सोसाइटी के ठीक सामने, जिसे नोएडा अथॉरिटी ने पहले ग्रीन बेल्ट बताया था, वहां ये विशालकाय टावर खड़े हो रहे थे.
याचिकाकर्ता ने कहा- ऐतिहासिक फैसला
आमतौर पर लोग ऐसे किसी बड़े प्रोजेक्ट को लेकर आपत्ति तो जताते हैं, लेकिन उसके खिलाफ कानून लड़ाई लड़ने के बारे में कभी नहीं सोचते, क्योंकि उन्हें लगता है कि अरबों के पैसे से टावर बनाने वाली कंपनी के सामने वो कहां टिक पाएंगे. लेकिन RWA से जुड़े लोगों ने फैसला किया कि वो इस प्रोजेक्ट के खिलाफ लड़ेंगे. कुल 660 लोगों ने एक साथ कोर्ट का रुख किया और बताया कि कैसे अथॉरिटी और कंपनी की मिलीभगत के चलते ये टावर खड़े किए जा रहे हैं.
क्विंट ने सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले के बाद याचिकाकर्ता RWA के जनरल सेक्रेट्री पंकज वर्मा से बात की. जिसमें उन्होंने पूरी कहानी बताई और इस फैसले को ऐतिहासिक करार दिया. उन्होंने कहा,
"ये पूरे भारत में जितने भी बिल्डरों के सताए गए लोग हैं, उन सभी के लिए एक लैंडमार्क फैसला है. हम 660 रेजिडेंट्स ने ये केस लड़ने का फैसला किया था. हमारी सोसाइटी के सामने ये विशालकाय टावर इन लोगों ने बना दिए थे. जिसके चलते हमारी हवा-पानी सब कुछ रुक गया था. लेकिन अब हमने जंग जीत ली है."
11 साल की लंबी लड़ाई, अब जाकर मिली जीत
पंकज वर्मा ने बताया कि- ''करीब 11 सालों से हम लोग ये लड़ाई लड़ रहे थे. हमने 2009 में कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया था, जिसके बाद 2010 में हमने याचिका दायर की थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला सुनाया.
2014 में हाईकोर्ट ने इन दोनों टावरों को गिराने का फैसला सुनाया था, साथ ही आरोपी नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी. लेकिन इसके बाद सुपरटेक ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. हालांकि हाईकोर्ट के फैसले के बाद से ही प्रोजेक्ट पर स्टे लग चुका था.
660 परिवारों ने मिलकर दी चुनौती
जब हमने पूछा कि इतनी बड़ी कंपनी के खिलाफ केस लड़ने के दौरान क्या-क्या मुश्किलें आईं और क्या कभी ये नहीं लगा कि हम नहीं टिक पाएंगे, तो पंकज ने बताया कि, हम लोगों ने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. सभी रेजिडेंट्स ने इसके लिए पूरा समर्थन किया. सभी ने मिलकर फंडिंग भी की.
''पहले कुल 15 टावर थे, जिनमें हम 660 परिवार रहते थे. वहां मिलने वाली सारी सुविधाएं हम लोगों की थीं. लेकिन बिल्डर ने ये दो टावर बनाने के बाद ये सारी सुविधाएं ही नए खरीदारों को दिखा दीं. अब जो दो टावर थे, उनमें करीब 900 फ्लैट थे. अब अगर हमें मिला दिया जाए तो जो सुविधाएं 660 फ्लैट के लिए थीं, वो अब 1500 से ज्यादा फ्लैट के लिए होतीं. अगर ऐसा होता तो ये एक चॉल की तरह बन जाता. इनिशियल प्लान में ये बिल्डिंग कभी थी ही नहीं, ये तो ग्रीन एरिया था. जिस पर टावर खड़े कर दिए गए. इसीलिए हमने तय किया कि हम इसके लिए लड़ाई लड़ेंगे.''
सुपरटेक और नोएडा अथॉरिटी की मिलीभगत?
इस पूरे मामले से यही सामने आ रहा है कि ये साफ तौर पर एक दिग्गज कंपनी और नोएडा अथॉरिटी के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत का नतीजा था. क्योंकि जिस एरिया को सुपरटेक ने अपने ग्राहकों को पहले ग्रीन एरिया में दिखाया था, बाद में धोखे से उसी में दो बड़ा टावर खड़े कर दिए गए. ब्रॉशर में ग्रीन एरिया देखकर घर खरीदने वालों के लिए ये एक ठगी से कम नहीं था.
इस पूरे खेल में नोएडा अथॉरिटी का भी अहम रोल रहा है, जो अंतिम समय तक सुपरटेक के पक्ष में बयान देती रही. इसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ी फटकार लगाते हुए नोएडा अथॉरिटी को कहा कि आपको निष्पक्ष होना चाहिए था, लेकिन आप से भ्रष्टाचार टपकता है. कोर्ट ने कहा कि आपने ग्राहकों से बिल्डिंग के प्लान को छिपाया और हाईकोर्ट के आदेश के बाद इसे दिखाया गया. आप सुपरटेक के साथ मिले हुए हैं.
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