सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों के एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) वाले मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वो बैंकरप्ट कंपनियों से इंसॉल्वेंसी के तहत ड्यूज की रिकवरी करने के योजना बताए. वहीं टेलीकॉम कंपनियों को अगले 15 साल में किश्तों में अपने AGR बकाए चुकाने के प्रस्ताव पर अभी भी फैसला नहीं हो सका है. अब मामले की सुनवाई 14 अगस्त को होगी.
सुप्रीम कोर्ट में एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) पर 10 अगस्त को काफी अहम सुनवाई हुई. इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 20 जुलाई को अपना निर्देश सुरक्षित कर लिया था जिसमें कोर्ट ने वोडाफोन आइडिया को AGR बकाया 15 साल तक किश्तों में चुकाने को कहा था.
वोडाफोन आइडिया को करीब 50,399 करोड़ और एयरटेल को 25,976 करोड़ के AGR बकाए का भुगतान करना है. 20 जुलाई की सुनावाई में दोनों कंपनियों ने अपनी 20 साल तक भुगतान करने की मांग को कम करके 15 साल कर लिया था.
क्या है AGR?
AGR यानी Adjusted gross revenue दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूसेज और लाइसेंसिग फीस है. इसके दो हिस्से हैं- स्पेक्ट्रम यूसेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस. DOT का कहना है कि AGR की गणना किसी टेलीकॉम कंपनी को होने वाले संपूर्ण आय या रेवेन्यू के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपोजिट इंटरेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल है. दूसरी तरफ, टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि AGR की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए.
AGR पर विवाद क्या था?
AGR के कैलकुलेशन को लेकर टेलीकॉम विभाग और टेलीकॉम कंपनियों के बीच विवाद था. टेलीकॉम विभाग का कहना था कि AGR कंपनी की कुल आय पर लगना चाहिए. मतलब ब्याज से कमाई, एसेट बिक्री से कमाई जैसे नॉन टेलीकॉम आय पर भी टैक्स लगना चाहिए. वहीं टेलीकॉम कंपनियों का कहना था कि AGR का कैलकुलेशन सिर्फ टेलीकॉम सर्विसेज से होने वाली आय के आधार पर होना चाहिए न कि पूरी आय पर. कंपनियों और टेलीकॉम विभाग के बीच ये विवाद 2005 से चला आ रहा है तब टेलीकॉम कंपनियों के संगठन ने टेलीकॉम विभाग के दावे को चुनौती दी थी. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)