सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश, जिसमें किशोर लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं को "नियंत्रित" करने के लिए कहा गया था, पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह गलत संकेत भेजता है. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने गुरुवार, 4 जनवरी को संक्षेप में उस तरीके पर भी चिंता जताई, जिस तरह से न्यायाधीश इस तरह की टिप्पणियां करने में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियां आम तौर पर वे शक्तियां हैं जो स्पष्ट रूप से सिविल प्रक्रिया संहिता द्वारा प्रदान नहीं की जाती हैं, लेकिन संहिता द्वारा स्पष्ट रूप से प्रदान की गई शक्तियों के अतिरिक्त न्यायालय को प्रदान की जाती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
शीर्ष अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा, "आदेश बिल्कुल गलत संकेत भेजता है. जज धारा 482 के तहत किस तरह के सिद्धांत लागू कर रहे हैं."
अदालत कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के मद्देनजर शुरू किए गए एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें किशोर लड़कियों को "दो मिनट के आनंद" के बजाय अपनी यौन इच्छाओं को "नियंत्रित" करने के लिए कहा गया था.
कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला क्या था?
हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) पर चिंता व्यक्त की थी, जिसमें किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन कृत्यों को यौन शोषण के साथ जोड़ दिया गया था और 16 साल से ऊपर के किशोरों के साथ सहमति से किए गए यौन कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का आह्वान किया था.
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कम उम्र में यौन संबंधों से उत्पन्न होने वाली कानूनी जटिलताओं से बचने के लिए किशोरों के लिए व्यापक अधिकार-आधारित यौन शिक्षा का भी आह्वान किया.
हालांकि, हाईकोर्ट के फैसले ने विवाद को जन्म दिया क्योंकि इसने किशोरों के लिए 'कर्तव्य/दायित्व आधारित दृष्टिकोण' का भी प्रस्ताव रखा और सुझाव दिया कि किशोर महिलाओं और पुरुषों के अलग-अलग कर्तव्य हैं.
अन्य 'कर्तव्यों' के अलावा, किशोर महिलाओं को सलाह दी गई कि वे "यौन आग्रह/आवेग पर नियंत्रण रखें क्योंकि जब वह मुश्किल से दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाती हैं तो समाज की नजर में वह कमजोर होती हैं."
इस बीच, किशोर लड़कों को युवा लड़कियों या महिलाओं के कर्तव्यों का सम्मान करने और महिलाओं, उनके आत्म-मूल्य, गरिमा, गोपनीयता और स्वायत्तता के अधिकार का सम्मान करने के लिए अपने दिमाग को प्रशिक्षित करने के लिए कहा गया.
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2023 में आदेश पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा था कि हाई कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां व्यापक, आपत्तिजनक, अप्रासंगिक, उपदेशात्मक और अनुचित थीं.
अदालत ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया और अधिवक्ता लिज मैथ्यू को उनकी सहायता करने के लिए कहा गया.
बंगाल सरकार के वकील ने क्या कहा?
4 जनवरी को मामले की सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश हुए और अदालत को सूचित किया कि सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील दायर की है.
अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार की भी राय है कि हाईकोर्ट की टिप्पणियां "गलत" थीं.
कोर्ट ने जवाब दिया, "ऐसी अवधारणाएं कहां से आती हैं, हम नहीं जानते. हम मुद्दे का समाधान करना चाहते हैं."
12 जनवरी को मामले की सुनवाई
न्यायालय ने यह रिकॉर्ड किया कि वह इस मामले में स्वत: संज्ञान मामले और राज्य की अपील दोनों पर एक साथ सुनवाई करेगा. मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी.
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