आधार पर सुप्रीम कोर्ट में सबसे बड़ी सुनवाई शुरू हो गई है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच में सुनवाई चल रही है. बेंच में जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविल्कर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूढ़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं.
बायोमीट्रिक डाटा की बुनियाद वाले 12 अंकों के यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर का इस आधार पर विरोध हो रहा है इससे लोगों की सिक्यूरिटी और प्राइवेसी में सेंध लग सकती है. हाल में ‘दि ट्रिब्यून’ ने आधार डाटाबेस में सेंधमारी का सनसनी खुलासा किया था. आइए जानते हैं आधार को लेकर चल रही कानूनी रस्साकशी से जुड़ी दस अहम बातें
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- आधार को छह साल पहले पहली बार अदालत में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट में 17 जनवरी, 2018 से से जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच इस पर सुनवाई करेगी.
- आधार को सबसे पहले 2012 में हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस के पुत्तस्वामी ने चुनौती दी. उनका कहना था कि आधार प्राइवेसी के अधिकार का हनन करता है. लेकिन सरकार ने कहा कि संविधान में प्राइवेसी मौलिक अधिकार ही नहीं है.
- 2015 में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि अदालत पहले यह फैसला करे कि प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं. नौ सदस्यीय बेंच ने कहा कि प्राइवेसी मौलिक अधिकार है. संविधान में इसकी गारंटी है.
- सरकार की ओर से जरूरी बनाए गए कल्याणकारी स्कीमों, पैन, मोबाइल नंबर और बैंक अकाउंट को आधार से लिंक करने के आदेश को चुनौती दी गई थी. 9 जून 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने पैन को आधार से जोड़ने की अनुमति दे दी लेकिन प्राइवेसी के अधिकार के मद्देजनजर इसे जरूरी नहीं बनाया. अदालत में चुनौती मिली तो लिंकिंग की तारीख अब 31 मार्च, 2018 तक बढ़ा दी गई है.
- आधार के खिलाफ याचिका दायर करने वालों का कहना है कि आधार प्राइवेसी के मौलिक अधिकारों का हनन करता है. यह सीमित सरकार की अवधारणा के खिलाफ है और राज्य अगर चाहे तो यह नागरिकों की निगरानी कर सकता है.
- कल्याणकारी स्कीमों और सार्वजनिक आधार लिंकिंग को चुनौती देने वालों का कहना है कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करता है क्योंकि अंतिम फैसला आने तक इसने इसे स्वैच्छिक करार दिया था. यूआईडीएआई की वेबसाइट में भी कहा गया है कि आधार अनिवार्य नहीं है. यह स्वैच्छिक है.
- याचिका दायर करने वालों का कहना है कि फिंगरप्रिंट समेत बायोमैट्रिक डाटा एक सेंट्रल डिपॉजटरी में होने की वजह से राज्य नागरिक के मुकाबले काफी ताकतवर बन जाता है. राज्य इस डाटा का इस्तेमाल नागरिकों को दबाने या दमन में कर सकता है.
- नागरिकों को आधार न होने के आधार पर कल्याणकारी स्कीमों के लाभ से वंचित किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट श्याम दीवान ने हाल में मीडिया की उस खबर का उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया था कि झारखंड की एक महिला की मौत इसलिए हो गई क्योंकि आधार कार्ड न होने के वजह से उसे पीडीएस दुकान से अनाज नहीं दिया गया.
- सरकार का कहना है कि आधार प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता. इसका डाटाबेस पूरी फूलप्रूफ और सुरक्षित है. सरकार के मुताबिक यूआईडीएआई या किसी भी सर्वर से एक भी डाटा की हैकिंग नहीं हुई है. सरकार का कहना है आधार साइबर क्राइम को भी रोकेगा. इसके साथ यह सब्सिडी लीकेज को रोकेगा और नकली पैन कार्ड जैसी समस्याओं को भी खत्म करेगा.
- सरकार ने अपने शपथपत्र में आधार न होने पर अनाज न मिलने से भूख से हुई किसी भी मौत से इनकार किया है.
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टॉपिक: सुप्रीम कोर्ट प्राइवेसी आधार
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