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SC ने नवनीत राणा का जाति प्रमाणपत्र ठहराया वैध, बॉम्बे HC का फैसला रद्द, क्या है मामला?

नवनीत राणा पर आरोप था कि उन्होंने मोची जाति का प्रमाण पत्र फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करके धोखाधड़ी से हासिल किया था.

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महाराष्ट्र की अमरावती से सांसद नवनीत कौर राणा (Navneet Rana) को सुप्रीम कोर्ट ने 4 अप्रैल को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए उनका अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र को वैध ठहराया है. ये फैसला नवनीत राणा के नामांकन भरने से कुछ घंटे पहले ही आया है. फैसला सुनाते हुए जस्टिस जेके माहेश्वरी और संजय करोल की खंडपीठ ने कहा कि स्क्रूटनी कमेटी ने उचित जांच और प्रासंगिक दस्तावेजों की जांच और विचार करने के बाद नवनीत राणा के जाति प्रमाण पत्र को बरकरार रखा है. चलिए जानते हैं कि पूरा मामला क्या है?

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अमरावती अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के सदस्यों के लिए एक आरक्षित सीट है. नवनीत राणा पर इस सीट से 2019 के लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए फर्जी दस्तावेज के जरिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र बनवाने का आरोप था.

अमरावती सांसद का जाति प्रमाण पत्र मुंबई डिप्टी कलेक्टर द्वारा जारी किया गया था. इससे पहले, आनंदरा विठोबा अडसुल की शिकायत पर भी मुंबई उपनगरीय जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति ने जाति प्रमाणपत्र को मान्य ठहराया था.

शिवसेना नेता और पूर्व सांसद आनंदरा विठोबा अडसुल ने उनके जातिप्रमाण पत्र को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 8 जून 2021 नवनीत राणा के मोची जाति का प्रमाण पत्र फर्जी बताया था. कोर्ट ने कहा था कि राणा ने इसे धोखाधड़ी से हासिल किया था. कोर्ट ने ये भी कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह सिख-चमार जाति से थीं. इसके लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने अमरावती की सांसद पर 2 लाख का जुर्माना भी लगाया था.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि 'चमार' और 'सिख चमार' शब्द पर्यायवाची नहीं हैं, यह भारत के संविधान (अनुसूचित जाति), आदेश 1950 की अनुसूची II की प्रविष्टि 11 के तहत निर्धारित 'मोची' शब्द का पर्याय नहीं है."

बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसले के दौरान कहा "जांच समिति के पास संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 की अनुसूची में प्रविष्टियों के विपरीत किसी भी दस्तावेज की व्याख्या करने की कोई शक्ति नहीं है. यदि जांच समिति की ऐसी व्याख्या कानून के विपरीत पाई जाती है, पता चलता है विकृति और यदि किसी आवेदक द्वारा संविधान के साथ धोखाधड़ी की जाती है, तो इस न्यायालय के पास ऐसे गड़बड़ी और धोखाधड़ी से प्राप्त आदेश में हस्तक्षेप करने और उसे रद्द करने की पर्याप्त शक्ति और कर्तव्य है."

बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ नवनीत राणा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने तर्क दिया कि उनके पूर्वज सिख-चमार जाति से थे, जिसमें 'सिख' एक धार्मिक उपसर्ग है और इस जाति से संबंधित नहीं है. वे चमार जाति से आती हैं.

अब सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने राणा की याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को राणा के जाति प्रमाण पत्र के मुद्दे पर जांच समिति की रिपोर्ट में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था.

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा..

"मौजूदा मामले में, जांच समिति ने अपने समक्ष दस्तावेजों पर विधिवत विचार किया और सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए अपना निर्णय दिया. यह अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप नहीं था. चर्चा और फैक्ट्स को देखते हुए तत्काल अपील की अनुमति दी जाती है और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया जाता है.''

हाल ही में, नवनीत राणा बीजेपी में शामिल हुई हैं. बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नवनीत राणा को अमरावती से चुनावी मैदान में उतारा है.

इससे पहले, वे 2019 में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के समर्थन से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीतकर लोकसभा पहुंची थीं.

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