ADVERTISEMENTREMOVE AD

हरिद्वार धर्म संसद की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका पर SC ने जारी किया नोटिस

जर्नलिस्ट कुर्बान अली और पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज, जस्टिस अंजना प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

Updated
भारत
2 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

हरिद्वार धर्म संसद (Haridwar Hate Speech) में भड़काऊ भाषणों की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया किया है.

जर्नलिस्ट कुर्बान अली और पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज, जस्टिस अंजना प्रकाश ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी, जिसपर चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने सुनवाई की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कोर्ट से राज्य और केंद्र के अधिकारियों को जल्द से जल्द जवाब देने के लिए कहने का अनुरोध किया, ताकि कार्यक्रम के आयोजकों द्वारा इस तरह के और 'धर्म संसद' की घोषणा की गई है, उन्हें रोका जा सके.

"इस तरह के अगले आयोजन की योजना अलीगढ़ में है. अगर जल्द ही कदम नहीं उठाए गए, तो इन 'धर्म संसदों' का आयोजन पूरे देश में किया जाएगा, ऊना में, डासना में. पूरे देश का वातावरण दूषित हो जाएगा. ये इस देश के लोकाचार और मूल्यों के विपरीत है, ये हिंसा को भड़काने वाला है."
कपिल सिब्बल ने कोर्ट को कहा
0

याचिका में कहा गया है, "नफरत फैलाने वाले भाषणों में जातीय सफाई हासिल करने के लिए मुसलमानों के नरसंहार के लिए खुले आह्वान शामिल थे. ये ध्यान रखना उचित है कि उक्त भाषण केवल घृणास्पद भाषण नहीं हैं, बल्कि एक खुले आह्वान के समान हैं. इस प्रकार उक्त भाषण न केवल हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा हैं, बल्कि लाखों मुस्लिम नागरिकों के जीवन को भी खतरे में डालते हैं."

याचिका के मुताबिक, विवादित यति नरसिंहानंद द्वारा हरिद्वार में आयोजित दो कार्यक्रमों में और दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी के रूप में स्वयंभू संगठन द्वारा, पिछले साल 17-19 दिसंबर के बीच भारतीय नागरिकों के एक महत्वपूर्ण वर्ग के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने का नफरत भरे भाषण दिए गए थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
याचिका में कहा गया है कि लगभग तीन हफ्ते बीत जाने के बावजूद, पुलिस अधिकारियों द्वारा उक्त घृणास्पद भाषणों के लिए आईपीसी की धारा 120 बी, 121 ए और 153 बी को लागू न करने सहित कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है.

इसने आगे बताया कि पुलिस अधिकारियों ने हरिद्वार धर्म संसद में भाग लेने वाले 10 लोगों के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की हैं, लेकिन उक्त प्राथमिकी में भी, केवल आईपीसी की धारा 153 ए, 295 ए और 298 लागू की गई हैं.

याचिका में कहा गया, "पुलिस द्वारा घोर निष्क्रियता तब भी सामने आई जब एक पुलिस अधिकारी का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया, जिसमें उपरोक्त घटनाओं के वक्ताओं में से एक ने धर्म संसद के आयोजकों और वक्ताओं के साथ अधिकारी की निष्ठा को खुले तौर पर स्वीकार किया."

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×