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ये समय ‘राजद्रोह’ की सीमा को परिभाषित करने का है: सुप्रीम कोर्ट

राजद्रोह का आरोप कब लगाया जाए कब नहीं? इस पर लंबी चौड़ी बहस होती आई हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है

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राजद्रोह का आरोप कब लगाया जाए कब नहीं? इस पर लंबी चौड़ी बहस होती आई हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के दो न्यूज चैनलों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाते हुए 'राजद्रोह' पर बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब वक्त है कि राजद्रोह की सीमा को परिभाषित किया जाए.

दरअसल, ABN आंध्र ज्योति और टीवी5 न्यूज पर राजद्रोह का आरोप लगाते हुए आंध्र प्रदेश की पुलिस ने FIR दर्ज किया था. इस FIR को रद्द कराने के लिए दोनों चैनलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

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न्यूज चैनलों की तरफ से पेश हुए एडवोकेट ने ये तर्क दिया कि YSCRP के एक बागी सांसद के प्रेस स्टेटमेंट को पब्लिश करनी वजह से ये FIR दर्ज की गई है.जस्टिस डीवाई चंदचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भट की पीठ ने प्रथम दृष्टया ये कहा कि 'FIR मीडिया की आजादी' को दबाने की कोशिश है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये वक्त है जब राजद्रोह की सीमा को परिभाषित किया जाए.

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हमारा मानना है कि आईपीसी की धारा 124A और 153 के प्रावधानों की व्याख्या की जरूरत है, खासकर प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर. 

क्या है राजद्रोह कानून?

इस कानून को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124ए के तहत परिभाषित किया गया है. इसके तहत, ''कोई जो भी बोले या लिखे गए शब्दों से, संकेतों से, दृश्य निरूपण से या दूसरों तरीकों से घृणा या अवमानना पैदा करता है या करने की कोशिश करता है या भारत में कानून सम्मत सरकार के प्रति वैमनस्य को उकसाता है या उकसाने की कोशिश करता है, तो वह सजा का भागी होगा.''

भारत में इस कानून की नींव रखने वाले ब्रिटेन ने भी 2009 में अपने यहां राजद्रोह के कानून को खत्म कर दिया. जो लोग इस कानून के पक्ष में नहीं हैं, उनकी सबसे बड़ी दलील है कि इसे अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता रहा है.

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