सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 22 नवंबर को आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) में एक 17 वर्षीय दलित लड़के के लिए एक सीट क्रिएट कर एडमिशन लेने का निर्देश दिया है. यह छात्र आईआईटी परीक्षा में क्वॉलिफाई कर चुका था, लेकिन तकनीकी खराबी के कारण समय पर 'सीट स्वीकृति शुल्क' जमा नहीं कर पाया और उसका एडमिशन नहीं हो सका था.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत मिली अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण (JOSAA) को छात्र के लिए एक सीट निर्धारित करने का निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी अन्य छात्र के एडमिशन को बाधित किए बिना IIT बॉम्बे में इस छात्र को एक सीट आवंटित की जाए. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई अन्य सीट खाली हो जाती है तो छात्र का रेगुलर एडमिशन होगा.
JOSAA ने आज कोर्ट को सूचित किया कि सभी सीटें भर गई हैं और कोई खाली सीट उपलब्ध नहीं है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने यह आदेश पारित किया गया
“न्याय का एक बड़ा उपहास होगा”
कोर्ट ने माना कि यह न्याय का एक बड़ा उपहास होगा यदि लड़का अपनी गलती के बिना प्रवेश से चूक जाता है.
“इस कोर्ट के सामने एक युवा दलित छात्र है जो आईआईटी बॉम्बे में आवंटित एक मूल्यवान सीट खोने के कगार पर है. यह न्याय का एक बड़ा उपहास होगा यदि युवा दलित छात्र को ऐसा करने की कोशिश करने के बाद भी IIT बॉम्बे में फीस का भुगतान न करने के लिए प्रवेश से वंचित कर दिया जाता है. इसलिए हमारा मानना है कि यह अंतरिम चरण में अनुच्छेद 142 का उपयुक्त मामला है."सुप्रीम कोर्ट
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट छात्र के बचाव में तब आया जब यह बताया गया कि छात्र तकनीकी खराबी के कारण समय पर फीस का भुगतान करने में असमर्थ था जिसके लिए वह जिम्मेदार नहीं था.
याचिकाकर्ता ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) 2021 पास की थी और ऑल इंडिया रैंक 25,894 और एससी (अनुसूचित जाति) रैंक 864 हासिल की थी. लेकिन याचिका के अनुसार तकनीकी खराबी के कारण वह निर्धारित समय सीमा के भीतर फीस का भुगतान करने में असमर्थ रहा.
याचिकाकर्ता ने JOSAA को कॉल करने का प्रयास किया और उन्हें ईमेल भी भेजा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. बाद में वह खुद IIT खड़गपुर गया और उनसे भुगतान का एक वैकल्पिक तरीका स्वीकार करने और उसे एक सीट अलॉट करने का अनुरोध किया, लेकिन कॉलेज ने अपनी अक्षमता व्यक्त की.
याचिकाकर्ता ने राहत के लिए बंबई हाई कोर्ट का रुख किया लेकिन कोर्ट ने उसकी रिट याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जहां से आखिरकार उसे राहत मिली है.
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