सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र की वो याचिका खारिज कर दी है जिसमें शीर्ष अदालत से पांच मई के एक फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया था. उस फैसले में कहा गया था कि संविधान में 102वें संशोधन के बाद नौकरियों और दाखिलों के लिए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने की शक्ति राज्यों के पास नहीं रही है.
जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने कहा, ‘‘हमने पांच मई के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका का अध्ययन किया है... पुनर्विचार याचिका का जो आधार बताया गया है, वह उस सीमित आधार के दायरे में नहीं आता जिसकी बुनियाद पर पुनर्विचार याचिका पर विचार किया जा सकता है.’’
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट की भी भागीदारी वाली बेंच ने कहा, ‘‘हमें पुनर्विचार याचिका पर विचार करने का कोई पर्याप्त आधार दिखाई नहीं देता. पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है.’’
शीर्ष अदालत ने मामले में खुली अदालत में सुनवाई के केंद्र के आवेदन को भी खारिज कर दिया. पांच जजों ने मामले पर 28 जून को ‘चैंबर’ में विचार किया था.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 13 मई को एक विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि केंद्र ने शीर्ष अदालत के पांच मई के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है.
पांच जजों की संविधान बेंच ने मराठाओं को आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र के कानून को पांच मई को बहुमत से दरकिनार कर दिया था और आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा तय करने संबंधी 1992 के मंडल निर्णय को बड़ी पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था.
बेंच ने 3:2 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि संविधान का 102वां संशोधन केंद्र को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने की विशेष शक्ति प्रदान करता है क्योंकि केवल राष्ट्रपति ही सूची को अधिसूचित कर सकते हैं.
(PTI के इनपुट्स सहित)
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