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"लड़ाई यहीं खत्म नहीं होती": सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सेम-सेक्स मैरिज के याचिकाकर्ता

द क्विंट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उनके लिए आगे की राह के बारे में चार याचिकाकर्ताओं से बात की.

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गुस्सा, सदमा, निराशा और उदासी.

जब मंगलवार, 17 अक्टूबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriages) को वैध बनाने के खिलाफ फैसला सुनाया, तो याचिकाकर्ताओं ने अपनी भावनाओं को कुछ इस तरह जाहिर किया.

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हैदराबाद स्थित अभय डांग, जो अपने साथी सुप्रियो चक्रवर्ती के साथ थे, उन्होंने द क्विंट से कहा कि, "जब हम आज अदालत परिसर में दाखिल हुए, तो हमें कुछ महत्वपूर्ण और ठोस होने की बेहद उम्मीद थी. लेकिन जब हम बाहर आए, तो हम हताश और निराश थे."

सुप्रियो चक्रवर्ती, उन 21 याचिकाकर्ताओं में से हैं, जिन्होंने भारत में विवाह समानता (Same Sex Marriage) की मांग की है.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी फैसला सुनाया कि गैर-विषमलैंगिक जोड़ों (non-heterosexual couples) के विवाह के अधिकार को मौजूदा कानूनों में नहीं लिया जा सकता है, और इस नए कानून को संहिताबद्ध करने का काम विधायिका पर छोड़ दिया गया है.

"यह सुनकर निराशा हुई कि कोर्ट ने कहा कि शादी मौलिक अधिकार नहीं है"

अमेरिका स्थित वकील उदित सूद, एक अन्य याचिकाकर्ता, जिन्होंने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग की थी, उन्होंने अचानक फैसला लिया और मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए समय पर पहुंचने के लिए लॉस एंजिल्स से 20 घंटे की लंबी उड़ान फ्लाइट ले ली.

"जब मैं उड़ान भर रहा था, मैं बेहद आशावादी था. लेकिन यह सुनकर निराशा हुई. (एससी) का फैसला भ्रमित करने वाला रहा है... सीजेआई (डीवाई चंद्रचूड़) उतना आगे नहीं गए जितना हम चाहते थे."
उदित सूद ने द क्विंट को बताया

उदित सूद ने कहा कि उनके साथी एंड्रयू और वह फैसले का इंतजार कर रहे थे क्योंकि वे "भारत में शादी करने के लिए उत्साहित थे."

उदित सूद ने द क्विंट से कहा,

"हमने अपने गृह देश (भारत) में ज्यादा समय बिताने का सपना देखा था, जिसे मैंने बहुत दुख के साथ पीछे छोड़ दिया, क्योंकि असमानताओं को झेलने के लिए समलैंगिक भारतीयों को मजबूर होना पड़ता है. दुर्भाग्य से, ऐसा लगता है कि हमें अपनी योजनाओं को फिलहाल स्थगित करना होगा."

उदित सूद के लिए और भी निराशाजनक बात तब हुई जब अदालत ने कहा कि "विवाह मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) नहीं है."

उदित सूद ने द क्विंट को बताया,

"विषमलैंगिक जोड़ों से जुड़े पहले के फैसलों में, अदालत ने कहा था कि शादी एक मौलिक अधिकार है. लेकिन समलैंगिक जोड़ों के मामले में, उन्होंने (CJI) कहा कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है..."

इस मामले में एक अन्य याचिकाकर्ता, दिल्ली स्थित बिजनेसमैन उदय राज आनंद ने फैसले को "उम्मीद से भी बदतर" बताया.

उन्होंने आगे कहा, "फैसले से पहले, उम्मीद में कमी थी और हमें कुछ और ठोस होने की उम्मीद थी. लेकिन यह उम्मीद से ज्यादा बुरा लगा."

"SC ने पुष्टि की कि समलैंगिक लोग दोयम दर्जे के नागरिक हैं"

नॉन-बाइनरी समलैंगिक अधिकारों के एक्टिविस्ट और वकील रोहिन भट्ट ने कहा कि फैसले की शुरुआत "बहुत अच्छे नोट" पर हुई, लेकिन पहले पांच मिनट के बाद, यह "अंत में एक झटका" जैसा लगा.

उन्होंने द क्विंट को बताया कि,

"आज, अदालत ने फिर से पुष्टि की है कि समलैंगिक लोग दोयम दर्जे के नागरिक हैं, चाहे कितनी भी न्यायिक बातें इससे अलग कहीं जाए. यह अब स्पष्ट रूप से साफ हो गया है कि हमें एक कार्यपालिका के हवाले किया जा रहा है, जो न केवल कठोर है, बल्कि उदासीन भी है. और एक ऐसी विधायिका के हवाले जिसे समलैंगिक अधिकारों की कोई चिंता नहीं है... हम गुस्से और विरोध में उठ खड़े होंगे.''

उदित सूद ने द क्विंट को बताया, "यह एक स्पष्ट संदेश है कि दुनिया के अन्य हिस्सों में, आपके साथ एक समान व्यवहार किया जाएगा, लेकिन भारत में, माफ करें, आपको इंतजार करना होगा. यह बड़े हो रहे क्वीर (Queer) बच्चों के लिए संदेश है. संदेश सिर्फ इतना ही नहीं है. संदेश है: आप समलैंगिक होने पर भी शादी कर सकते हैं. आपको बस अपने आप से, अपने साथी से, अपने परिवार से और समाज से झूठ बोलना है. यह बेहद निराशाजनक है.''

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क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला समान अधिकारों की दिशा में एक कदम है?

फैसला पढ़ते हुए, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर 1954 के विशेष विवाह अधिनियम को रद्द कर दिया जाता है, तो "यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा...न्यायालय कानून में अर्थ पढ़ने की ऐसी कवायद करने के लिए तैयार नहीं है."

उन्होंने कहा कि एसएमए (SMA) के शासन में बदलाव का फैसला "संसद को करना है" और अदालत को सावधान रहना चाहिए कि वह विधायी क्षेत्र का अतिक्रमण न करे.

अभय डांग और सुप्रियो चक्रवर्ती का मानना था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को "एक कदम आगे" नहीं माना जा सकता, लेकिन उदय राज आनंद ने कुछ अलग कहा.

"कुछ भी मौलिक रूप से नहीं बदला है. लेकिन हां, सभी न्यायाधीशों ने इस मुद्दे के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की है. उन्होंने क्वीर (Queer) लोगों को एक कानूनी फ्रेमवर्क दिए जाने की इच्छा व्यक्त की है. इस अर्थ में, उन्होंने सरकार से इसका फ्रेमवर्क बनाने की प्रक्रिया का पालन करने का आग्रह किया है."
उदय राज आनंद

समलैंगिक विवाह याचिका में याचिकाकर्ता उदय राज आनंद ने द क्विंट को बताया, "पांच लोगों को समझाने के बजाय, एक अरब से ज्यादा लोगों को समझाने की जरूरत है. लेकिन हम लड़ाई के लिए तैयार हैं और हम ऐसा करेंगे." इस बीच, वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने कहा कि शीर्ष अदालत के पास कुछ मौके थे जिन्हें "विधायकों के लिए छोड़ दिया गया है और केंद्र सरकार ने विवाह के संबंध में अपना रुख साफ कर दिया है."

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अदालत द्वारा उठाए गए कदमों पर, नंदी ने कहा, "ट्रांस विवाह (जब एक व्यक्ति एक पुरुष के रूप में और दूसरा एक महिला के रूप में पहचान करता है) को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दी जाती है. मद्रास एचसी का पहले से ही एक निर्णय था जिसे हम में से कुछ ने प्रस्तुत किया था अदालतें ऐसे विवाहों को मान्यता देती हैं. इसलिए यह महत्वपूर्ण है."

नंदी ने कहा, "इसके अलावा, मुख्य न्यायाधीश ने समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षा निर्धारित की है, जो अपने परिवार से कानूनी खतरे में हैं, या उनपर अनुचित तरीके से एफआईआर दर्ज की गई है, या किसी और द्वारा उनपर हमला किया गया है, पुलिस को इसमें कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और जोड़ों की सुरक्षा के लिए कदम उठाना चाहिए. यह बेहद मददगार होगा.''

हालांकि, उदित सूद को इस पर शक था.

"इसे वास्तव में समझने के लिए हमें विशिष्ट निर्देशों और निर्णय को पढ़ना होगा. यह हो सकता है कि (अदालत द्वारा) केवल एक अपेक्षा हो कि सरकार ने इस मामले को सही दिशा में देखने के लिए समिति का गठन किया हो. लेकिन इसका कोई उल्लेख नहीं है. सूद ने द क्विंट को बताया, ''समिति अपने निष्कर्ष कब जारी करेगी, इसकी कोई समय सीमा नहीं है... मैं उस विशेष हिस्से पर बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं लगा रहा हूं.''

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"लेकिन लड़ाई खत्म नहीं होती..."

हालांकि, चारों याचिकाकर्ताओं ने उम्मीद नहीं छोड़ी है.

सुप्रियो चक्रवर्ती ने कहा, "मैं तब निराश हो गया जब मुझे एहसास हुआ कि हमने जो मांगा था वह नहीं मिल रहा है. लेकिन कुछ पलों के बाद, मुझे एहसास हुआ कि लड़ाई यहीं खत्म नहीं होती है. हमें आगे बढ़ते रहने की जरूरत है, हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहने की जरूरत है. एक बात यह है कि अभी हमें दृढ़ता की भावना की जरुरत है...मैं इससे भरा हुआ हूं. आज के फैसले से यही मेरी सीख है."

"जब पूछा गया कि याचिकाकर्ताओं के लिए अगला कदम क्या है, तो उदय राज आनंद ने द क्विंट से कहा, "यह कहना जल्दबाजी होगा कि अगला कदम क्या है...अब निराशा का समय नहीं है. अब समय है कि हम कहें कि हम अधिकारों वाले व्यक्ति हैं, प्यारे परिवार, और समान नागरिक के रूप में रहने की इच्छा रखने वाले. हमें इस बातचीत को जितना हो सके उतने अधिक लोगों तक ले जाना चाहिए और राय को अपनी ओर मोड़ना चाहिए. यही एकमात्र तरीका है."

उदित सूद ने कहा कि यह बेहतर भविष्य के लिए पुनर्मूल्यांकन और पुन: संगठित होने का समय है.

उन्होंने द क्विंट से कहा कि, "समुदाय को पहले एक कदम पीछे हटना चाहिए और इससे निपटना चाहिए. जैसा कि हमने दशकों से किया है. यह कोई नई लड़ाई नहीं है. हमें यह आकलन करने की जरूरत है कि हम कहां खड़े हैं. हमारे पास सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कुछ विकल्प मौजूद हैं. हम बहुत कम जानते हैं. हमें फैसला पढ़ने की जरूरत है. हमें फिर से संगठित होने की जरूरत है, आगे बढ़ने का रास्ता तलाशने की जरूरत है.''

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